पास्का का तीसरा सप्ताह
आज की संत: कनोसा की संत मगदलेना
📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 8: 26-40
26 ईश्वर के दूत ने फि़लिप से कहा, “उठिए, येरूसालेम से गाज़ा जाने वाले मार्ग पर दक्षिण की ओर जाइए”। यह मार्ग निर्जन है।
27 वह उठ कर चल पड़ा। उस समय एक इथोपियाई ख़ोजा, येरूसालेम की तीर्थयात्रा से लौट रहा था। वह इथोपिया की महारानी कन्दाके का उच्चाधिकारी तथा प्रधान कोषाध्यक्ष था।
28 वह अपने रथ पर बैठा हुआ नबी इसायस का ग्रन्थ पढ़ रहा था।
29 आत्मा ने फि़लिप से कहा, “आगे बढि़ए और रथ के साथ चलिए”।
30 फि़लिप दौड़ कर उसके पास पहुँचा और उसे नबी इसायस का ग्रन्थ पढ़ते सुन कर पूछा, “आप जो पढ़ रहे हैं, क्या उसे समझते हैं?”
31 उसने उत्तर दिया, “जब तक कोई मुझे न समझाये, तो मैं कैसे समझूँगा?” उसने फि़लिप से निवेदन किया कि वह चढ़ कर उसके पास बैठ जाये।
32 वह धर्मग्रन्थ का यह प्रसंग पढ़ रहा था-
33 वह मेमने की तरह वध के लिए ले जाया गया। ऊन करतने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुख नहीं खोला। उसे अपमान सहना पड़ा, उसके साथ न्याय नहीं किया गया। उसकी वंशावली की चर्चा कौन कर सकेगा? उसका जीवन पृथ्वी पर से उठा लिया गया है।
34 खोजे ने फि़लिप से कहा, “आप कृपया मुझे बताइए, नबी किसके विषय में यह कह रहे हैं? अपने विषय में या किसी दूसरे के विषय में?”
35 आत्मा ने फि़लिप से कहा, “आगे बढि़ए और रथ के साथ चलिए”।
36 (36-37 यात्रा करते-करते वे एक जलाशय के पास पहुँचे। खोजे ने कहा, “यहाँ पानी है। मेरे बपतिस्मा में क्या बाधा है?“
38 उसने रथ रोकने का आदेश दिया। तब फिलिप और खोज़ा, दोनों जल में उतरे और फि़लिप ने उसे बपतिस्मा दिया।
39 जब वे जल से बाहर आये, तो ईश्वर का आत्मा फि़लिप को उठा ले गया। खोज़े ने उसे फिर नहीं देखा; फिर भी वह आनन्द के साथ अपने रास्ते चल पड़ा।
40 फि़लिप ने अपने को आज़ोतस में पाया और वह कैसरिया पहुँचने तक सब नगरों में सुसमाचार का प्रचार करता रहा।
📙 सुसमाचार- योहन 6: 44-51
44 कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा, उसे आकर्षित नहीं करता। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूंगा।
45 नबियों ने लिखा है, वे सब-के-सब ईश्वर के शिक्षा पायेंगे। जो ईश्वर की शिक्षा सुनता और ग्रहण करता है, वह मेरे पास आता है।
46 “यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है; जो ईश्वर की ओर से आया है, उसी ने पिता को देखा है
47 मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – जो विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है।
48 जीवन की रोटी मैं हूँ।
49 तुम्हारे पूर्वजों ने मरुभूमि में मन्ना खाया, फिर भी वे मर गये।
50 मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता।
51 स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी में दूँगा, वह संसार के लिए अर्पित मेरा मांस है।”