चालीसे का पहला रविवार बुध

आज के संत: रोम की संत फ्रांसिसका

📙 पहला पाठ : विधि विवरण 26: 4-10

4 “याजक तुम्हारे हाथ से टोकरी ले कर उसे तुम्हारे प्रभु-ईश्वर की वेदी के सामने रख देगा।

5 तब तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर के सामने यह कहोगे, ’हमारे पूर्वज अरामी यायावर थे। जब वे शरण लेने के लिए मिस्र देश में बसने आये, तो थोड़े थे; किन्तु वे वहाँ एक शक्तिशाली बहुसंख्यक तथा महान् राष्ट्र बन गये।

6 मिस्र के लोग हमें सताने, हम पर अत्याचार करने और हम को कठोर बेगार में लगाने लगे।

7 तब हमने प्रभु की, अपने पूर्वजों के ईश्वर की, दुहाई दी। प्रभु ने हमारी दुर्गति, दुःख-तकलीफ़ तथा हम पर किया जाने वाला अत्याचार देख कर हमारी पुकार सुन ली।

8 आतंक फैला कर और चिह्न तथा चमत्कार दिखा कर प्रभु ने अपने बाहुबल से हमें मिस्र से निकाल लिया।

9 उसने हमें यहाँ ला कर यह देश, जहाँ दूध अैर मधु की नदियाँ बहती हैं, दे दिया।

10 प्रभु! तूने मुझे जो भूमि दी है, उसकी फ़सल के प्रथम फल मैं तुझे चढ़ा रहा हूँ – यह कह कर तुम उन्हें अपने प्रभु-ईश्वर के सामने रखोगे और अपने प्रभु-ईश्वर को दण्डवत् करोगे।

📘दूसरा पाठ : रोमियों 10: 8-13

किन्तु धर्मग्रन्थ क्या कहता है?- वचन तुम्हारे पास ही हैं, वह तुम्हारे मुख में और तुम्हारे हृदय में है। यह विश्वास का वह वचन है जिसका हम प्रचार करते हैं।

9  क्योंकि यदि आप लोग मुख से स्वीकार करते हैं कि ईसा प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी।

10  हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धर्मी बनता है और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है।

11  धर्मग्रन्थ कहता है, “जो उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा”।

12  इसलिए यहूदी और यूनानी और यूनानी में कोई भेद नहीं है- सबों का प्रभु एक ही है। वह उन सबों के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते है;

13  क्योंकि जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।

📒सुसमाचार : लूकस 4: 1-13

1 ईसा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर यर्दन के तट से लौटे। उस समय आत्मा उन्हें निर्जन प्रदेश ले चला।

2 वह चालीस दिन वहाँ रहे और शैतान ने उनकी परीक्षा ली। ईसा ने उन दिनों कुछ भी नहीं खाया और इसके बाद उन्हें भूख लगी।

3 तब शैतान ने उन से कहा, “यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं, तो इस पत्थर से कह दीजिए कि यह रोटी बन जाये”।

4 परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, “लिखा है-मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है”।

5 फिर शैतान उन्हें ऊपर उठा ले गया और क्षण भर में संसार के सभी राज्य दिखा कर

6 बोला, “मैं आप को इन सभी राज्यों का अधिकार और इनका वैभव दे दूँगा। यह सब मुझे दे दिया गया है और मैं जिस को चाहता हूँ, उस को यह देता हूँ।

7 यदि आप मेरी आराधना करें, तो यह सब आप को मिल जायेगा।”

8 पर ईसा ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है-अपने प्रभु-ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो”।

9 तब शैतान ने उन्हें येरूसालेम ले जा कर मन्दिर के शिखर पर खड़ा कर दिया और कहा, “यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जाइए;

10 क्योंकि लिखा है-तुम्हारे विषय में वह अपने दूतों को आदेश देगा कि वे तुम्हारी रक्षा करें

11 और वे तुम्हें अपने हाथों पर सँभाल लेंगे कि कहीं तुम्हारे पैरों को पत्थर से चोट न लगे”।

12 ईसा ने उसे उत्तर दिया, “यह भी कहा है-अपने प्रभु-ईश्वर की परीक्षा मत लो”।

13 इस तरह सब प्रकार की परीक्षा लेने के बाद शैतान, निश्चित समय पर लौटने के लिए, ईसा के पास से चला गया।