सत्ताईसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत डेनिस और साथी संत योहन लियोनार्ड
📒पहला पाठ- मलआकी 3: 13-20
13 प्रभु कहता है: तुम लोगों ने मेरे विषय में कठोर शब्द कहे हैं। फिर भी तुम पूछते हो, ‘हमने आपस में तेरे विरुद्ध क्या कहा है?’
14 तुम लोगों ने यह कहा, ‘ईश्वर की सेवा करना व्यर्थ है। उसकी आज्ञाओं का पालन करने से और विश्वमण्डल के प्रभु के लिए टाट के कपड़े पहनने से हमें क्या लाभ?
15 हम तो घमण्डियों को धन्य समझते हैं – जो बुराई करते हैं, वे फलते-फूलते हैं और जो ईश्वर की परीक्षा लेते हैं, उन्हें कोई हानि नहीं होती’।
16 तब प्रभु-भक्तों ने आपस में बातें की। प्रभु ने ध्यान दे कर उनकी बातचीत सुनी और उसके सामने प्रभु-भक्तों और उसके नाम पर श्रद्धा रखने वालों के विषय में एक स्मारिका लिखी गयी।
17 विश्वमण्डल का प्रभु कहता है: “जो दिन मैंने निश्चित किया, उस दिन वे मेरे अपने होंगे और जिस तरह कोई अपनी सेवा करने वाले पुत्र पर दया करता है, उसी तरह मैं भी उन पर दया करूँगा।
18 तब तुम लोग धर्मी और विधर्मी, ईश्वर की सेवा करने और उसकी सेवा नहीं करने वाले, दोनों का भेद पहचानने लगोगे।
19 क्योंकि वह दिन आ रहा है। वह धधकती भट्टी के सदृश है। सभी अभिमानी तथा कुकर्मी खूँटियों के सदृश होंगे। विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है: वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड़ ही।
20 किन्तु तुम पर, जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी।
📙सुसमाचार- लूकस 11: 5-13
5 फिर ईसा ने उन से कहा, “मान लो कि तुम में कोई आधी रात को अपने किसी मित्र के पास जा कर कहे, ’दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ उधार दो,
6 क्योंकि मेरा एक मित्र सफ़र में मेरे यहाँ पहुँचा है और उसे खिलाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है’
7 और वह भीतर से उत्तर दे, ’मुझे तंग न करो। अब तो द्वार बन्द हो चुका है। मेरे बाल-बच्चे और मैं, हम सब बिस्तर पर हैं। मैं उठ कर तुम को नहीं दे सकता।’
8 मैं तुम से कहता हूँ – वह मित्रता के नाते भले ही उठ कर उसे कुछ न दे, किन्तु उसके आग्रह के कारण वह उठेगा और उसकी आवश्यकता पूरी कर देगा।
9 “मैं तुम से कहता हूँ – माँगो और तुम्हें दिया जायेगा; ढूँढ़ो और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जायेगा।
10 क्योंकि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूँढ़ता है, उसे मिल जाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाता है।
11 “यदि तुम्हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन है, जो उसे पत्थर देगा? अथवा मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप देगा?
12 अथवा अण्डा माँगे, तो उसे बिच्छू देगा?
13 बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीज़ें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?”