1 प्रभु के आदेशानुसार एक मच्छ योना को निगल गया और योना तीन दिन और तीन रात मच्छ के पेट में पडा रहा।

2 योना ने मच्छ के पेट से ही प्रभु, अपने ईश्वर से प्रार्थना की। उसने कहाः

3 मैंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी और उसने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली; मैंने अधोलोक में से तुझे पुकारा और तूने मेरी सुनी।

4 तूने मुझे गहरे महासागर में फेंक दिया था, बाढ़ ने मुझे घेर लिया था। तेरी उमड़ती लहरें मुझे डुबा कर ले गयी थीं।

5 मैंने अपने मन में कहा, “तूने मुझे अपने सामने से निकाल दिया। मैं तेरे पवित्र मन्दिर फिर कैसे देख पाऊँगा?

6 मैं समुद्र में डूब रहा था, मेरे चारों ओर जल ही जल था;

7 मैंने पर्वतों की जड तक पहुँच गया था और मेरे सिर में सिवार लिपट गया था।

8 जब मैं निराशा में डूबा जा रहा था, तो मैंने प्रभु को याद किया और मेर प्रार्थना तेरे पवित्र मन्दिर में तेरे पास पहुँची।

9 जो मिथ्या देवताओं की पूजा करते हैं, वे भले ही सच्ची भक्ति त्याग दें,

10 किन्तु मैं तेरा ही गुणगान गाते हुए तुझ को बलि चढाऊँगा। मैं अपनी मन्नत पूरी करूँगा। प्रभु-ईश्वर ही उद्धारक है।

11 इसके बाद प्रभु ने मच्छ को आदेश दिया और उसने योना को तट पर उगल दिया।