
पठन योजना में आज पढ़ें :(उत्पत्ति ग्रन्थ 25 & 26 ), (अय्यूब 15 & 16) (सूक्ति 2:20-22)
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उत्पत्ति 25
1 इब्राहीम ने कटूरा नामक एक दूसरी पत्नी से विवाह किया।
2 उस से ये पुत्र हुए : जिम्रान, योकशान, मदान, मिदयान, यिशबाक और शूअह।
3 योकशान के पुत्र थेः शबा और ददान। ददान के वंशज हुए : अशूरी, लटूशी और लउम्मी लोग।
4 मिदयान के पुत्र थे : एफा, एफेर, हनोक, अबीदा और एल्दआ। ये सब कटूरा के वंशज हैं।
5 इब्राहीम ने अपनी सारी सम्पत्ति इसहाक को दे दी।
6 अपनी उप-पत्नियों के पुत्रों को इब्राहीम ने केवल धन, वस्त्र आदि दिये और अपने जीवनकाल में ही उन्हें अपने पुत्र इसहाक से दूर पूर्व देश में भेजा।
7 इब्राहीम कुल मिला कर एक सौ पचहत्तर वर्ष तक जीवित रहने के बाद मरा।
8 सुखी वृद्धावस्था में, अच्छी पकी उमर में उसका देहान्त हुआ और वह अपने पूर्वजों से जा मिला।
9 उसके पुत्र इसहाक और इसमाएल ने मामरे के पूर्व हित्ती सोहर के पुत्र एफ्रोन के खेत में, मकपेला की गुफा में उसे दफ़नाया।
10 इब्राहीम ने वह खेत हित्तियों से ख़रीदा था। वहाँ इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को दफ़न किया गया।
11 इब्राहीम के मरने के बाद ईश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को आशीर्वाद दिया। इसहाक बएर-लहय-रोई नामक कुएँ के पास रहता था।
12 इब्राहीम के पुत्र इसमाएल की, जो सारा की मिस्री दासी हागार से इब्राहीम के यहाँ पैदा हुआ था, वंशावली यह है :
13 इसमाएल के पुत्रों के नाम उनके जन्म के क्रमानुसार ये हैं : इसमाएल का सब से बड़ा पुत्र नबायोत, फिर केदार, अदबेएल, मिबसाम,
14 मिशमा, दूमा, मस्सा,
15 हदद, तेमा, यटूर, नाफीश और केदमा।
16 ये ही इसमाएल के पुत्र थे। इनके नामों के आधार पर इनकी बस्तियों और शिविरों के नाम पड़ गये और ये बारह वंशों के मूलपुरुष हैं।
17 इसमाएल कुल मिला कर एक सौ सैंतीस वर्ष तक जीवित रहने के बाद मरा और अपने पूर्वजों से जा मिला।
18 उसके वंशज हवीला से ले कर शूर तक, जो मिस्र के पूर्व और अस्सूर की दिशा में अवस्थित है, बस गये। वे अपने सब भाई-बन्धुओं के विरोधी थे।
19 यह इब्राहीम के पुत्र इसहाक की वंशावली है। इब्राहीम इसहाक का पिता था।
20 इसहाक चालीस वर्ष का था, जब उसने पद्दन-अराम के निवासी अरामी बतूएल की पुत्री और अरामी लाबान की बहन रिबेका के साथ विवाह किया था।
21 रिबेका को कोई सन्तान नहीं हुई, इसलिए इसहाक ने प्रभु से प्रार्थना की कि उसकी पत्नी को पुत्र उत्पन्ना हो। प्रभु ने उसकी प्रार्थना सुन ली। उसकी पत्नी रिबेका गर्भवती हुई।
22 गर्भ में बच्चे एक दूसरे को धक्का देते थे, इसलिए उसने कहा, ”मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?” इसलिए वह प्रभु से पूछने गयी।
23 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ”तुम्हारे गर्भ में दो प्रजातियाँ है। तुम से दो राष्ट्र उत्पन्न होंगे और वे अलग-अलग हो जायेंगे। एक अपने भाई से शक्तिशाली होगा और बड़ा छोटे के अधीन हो जायेगा।”
24 जब जन्म का समय आया, तो मालूम हुआ कि उसके गर्भ में जुड़वा बच्चे हैं।
25 जो पहले दिखाई दिया, वह लाल था और उसका सारा शरीर कम्बल की तरह रोयेंदार था। इसलिए उसका नाम एसाव रखा गया
26 इसके बाद उसका भाई दिखाई दिया। वह अपने हाथ से एसाव की एड़ी पकड़े हुए था। इसलिए उसका नाम याकूब पड़ा। इन बच्चों के जन्म के समय इसहाक की आयु साठ वर्ष की थी।
27 बड़ा हो कर एसाव वन में रहने वाला एक कुशल शिकारी बना, परन्तु याकूब शान्त स्वभाव का था और अपने तम्बुओं में रहा करता था।
28 इसहाक एसाव को बहुत चाहता था, क्योंकि उसके द्वारा शिकार किये हुए पशुओं का मांस उसे पसन्द था। परन्तु रिबेका याकूब को प्यार करती थी।
29 एक दिन, जब याकूब दाल बना चुका था, एसाव जंगल से लौटा। उस समय वह बहुत भूखा था।
30 एसाव ने याकूब से कहा, ”मुझे उस लाल दाल में से कुछ खिला दो। मैं भूख से मरा जा रहा हूँ।” (इस कारण वह एदोम अर्थात् लाल कहलाने लगा।)
31 याकूब ने उत्तर दिया, ”पहले तुम अपने पहलौठा होने का अधिकार मुझे दे दो”।
32 इस पर एसाव ने कहा, ”मैं मरने-मरने को हूँ, तो पहलौठा होने के अधिकार से मुझे क्या लाभ?”
33 याकूब बोला, ”तो पहले इस बात की शपथ खाओ”। इस पर उसने शपथ खा कर अपने पहलौठा होने का अधिकार याकूब को दे दिया।
34 इस पर याकूब ने एसाव को दाल रोटी खिलायी। खाने-पीने के बाद वह उठ कर चला गया। एसाव ने अपना पहलौठा होने का अधिकार इतना तुच्छ समझा।
उत्पत्ति 26
1 देश में अकाल पड़ा। यह वही नहीं था, जो पहले इब्राहीम के समय में पड़ा था। तब इसहाक गरार देश में फ़िलिस्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया।
2 प्रभु ने उसे दर्शन दे कर कहा, ”मिस्र देश मत जाओ। उस देश में रहना, जिसे मैं तुम्हें बताऊँगा।
3 प्रवासी की तरह उस देश में कुछ समय तक रहना। मैं तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम को आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को ये सब देश दे दूँगा और इस प्रकार मैं तुम्हारे पिता इब्राहीम के सामने की गयी अपनी शपथ पूरी करूँगा।
4 मैं तुम्हारे वंशजों की संख्या आकाश के तारों की तरह असंख्य बनाऊँगा। मैं यह सब देश तुम्हारे वंशजों को दूँगा और पृथ्वी की समस्त जातियाँ तुम्हारे वंशजों द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करेंगी;
5 क्योंकि इब्राहीम ने मेरे आदेश, मेरी आज्ञा, मेरे विधि-निषेध आदि सब का पूरी तरह पालन किया था।”
6 इसलिए इसहाक गरार देश में रह गया।
7 जब इस स्थान के लोग उसकी पत्नी के विषय में पूछते, तो वह कहता, ”वह मेरी बहन है”। वह यह कहने में डरता था कि ”वह मेरी पत्नी है”। उसे भय था कि उस स्थान के लोग रिबेका के लोभ में कहीं उसे मार न डालें, क्योंकि वह रूपवती थी।
8 जब वह वहाँ बहुत समय तक रह चुका, तब एक दिन फ़िलिस्तियों के राजा अबीमेलेक ने खिड़की से झाँक कर देखा कि इसहाक अपनी पत्नी का चुम्बन कर रहा है।
9 इस पर अबीमेलेक ने इसहाक को बुलवा कर कहा, ”अवश्य ही वह तुम्हारी पत्नी है। तुमने यह क्यों कहा कि वह तुम्हारी बहन है?” इसहाक ने उसे उत्तर दिया, ”मैं सोचता था कि कहीं उसके कारण मेरा वध न किया जाये”।
10 अबीमेलेक ने कहा, ”तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? यदि हम लोगों में से किसी का तुम्हारी पत्नी के साथ संसर्ग हुआ होता, तो तुमने हमारे सिर एक बड़ा दोष मढ़ा होता।”
11 इसलिए अबीमेलेक ने यह कहते हुए अपने सब लोगों को चेतावनी दी कि ”जो कोई इस पुरुष या इसकी पत्नी का स्पर्श करेगा, उसे मृत्युदण्ड मिलेगा”।
12 इसहाक ने उस देश की भूमि में अनाज बोया और उसी वर्ष उसने सौ गुनी फ़सल काटी। प्रभु के आशीर्वाद से वह धनसम्पन्न हो गया।
13 अधिकाधिक लाभ उठाते हुए वह बड़ा धनी बन गया।
14 उसके यहाँ भेड़-बकरी, गाय-बैल और बहुत-से नौकर-चाकर हो गये। इसलिए फ़िलिस्ती लोग उस से जलने लगे।
15 फ़िलिस्तियों ने उन सब कुओं को मिट्टी भर कर बन्द कर दिया था, जो उसके पिता इब्राहीम के समय उसके पिता के नौकरों द्वारा खोदे गये थे।
16 अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, ”हमारे यहाँ से चले जाओ, क्योंकि तुम हम लोगों से बहुत अधिक शक्तिशाली हो गये हो”।
17 इसलिए इसहाक वहाँ से चला गया और गरार के मैदान में अपने तम्बू डाल कर रहने लगा।
18 इसहाक ने उन कुओं को फिर से खोला, जो उसके पिता इब्राहीम के समय बनाये गये थे और जिन्हें इब्राहीम की मृत्यु के बाद फ़िलिस्तियों ने बन्द कर दिया था। उसने उन्हें फिर वही नाम दिये, जो उसके पिता ने रखे थे।
19 इसहाक के नौकरों ने घाटी में खोदा और उन्हें उस में बहते पानी का स्रोत मिला।
20 तब गरार के चरवाहे इसहाक के चरवाहों से यह कहते हुए लड़ने लगे, ”यह पानी हमारा है”। इसीलिए उसने उस कुएँ का नाम ऐसेक (झगड़ा) रखा, क्योंकि उन्होंने वहाँ उसके साथ झगड़ा किया।
21 तब उन्होंने एक दूसरा कुआँ खोदा और उसके बारे में भी झगड़ा हुआ। इसलिए उसने उसका नाम सिटना (विरोध) रखा।
22 वहाँ से आगे चल कर उसने एक और कुआँ खुदवाया। उसके लिए कोई झगड़ा नहीं हुआ। इसलिए उसने उसका नाम रहोबोत (विस्तार) रखा और कहा, ”प्रभु ने हमारे विस्तार के लिए हमें भूमि प्रदान की है। अब हम देश भर में बढ़ते जायेंगे।”
23 वहाँ से वह बएर-शेबा गया।
24 उसी रात प्रभु ने उसे दर्शन दे कर कहा, ”मैं तुम्हारे पिता इब्राहीम का ईश्वर हूँ। डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम को आशीर्वाद दूँगा और अपने सेवक इब्राहीम के कारण मैं तुम्हारे वंशजों की संख्या बढ़ाऊँगा।”
25 उसने वहीं एक वेदी बनायी, प्रभु से प्रार्थना की और वहीं उसने अपना तम्बू डाल लिया। इसहाक के नौकरों ने वहाँ एक कुआँ खोदा।
26 इसके बाद अबीमेलेक अपने मन्त्री अहुज्जत और अपने सेनापति पीकोल के साथ गरार से उसके पास आया।
27 इसहाक ने उन से पूछा, ”आप मेरे पास क्यों आये? आप लोग तो मेरा विरोध करते हैं और आपने मुझे अपने यहाँ से निकाल दिया है।”
28 उन्होंने उत्तर दिया, ”हमने अपनी आँखों से देखा कि प्रभु तुम्हारे साथ हैं। तभी हमने सोचा कि हमारे-तुम्हारे बीच शपथपूर्वक एक सन्धि होनी चाहिए। इसलिए हम तुम्हारे साथ सन्धि करना चाहते हैं।
29 तुम हमें कोई हानि नहीं पहुँचाओगे, क्योंकि हमने भी तुम्हारी कोई हानि नहीं की, बल्कि तुम को शान्तिपूर्वक विदा किया था। अब तो तुम को प्रभु की कृपा प्राप्त है।”
30 इसहाक ने उन्हें एक भोज दिया और उन्होंने खाया-पीया।
31 फिर दूसरे दिन बड़े सबेरे उठ कर उन्होनें आपस में सन्धि की शपथ खायी। इसहाक ने उन्हें विदा किया और वे शान्तिपूर्वक उसके वहाँ से चले गये।
32 उसी दिन इसहाक के नौकरों ने आ कर उस कुएँ के विषय में, जिसे वे खोद रहे थे, यह खबर दी कि ”हम को पानी मिल गया है”।
33 उसने उसे शेबा नाम दिया। इसलिए आज तक उस नगर का नाम बएर-शेबा है।
34 अब एसाव चालीस वर्ष का था, तो उसने हित्ती बएरी की यूदित नामक पुत्री के साथ और हित्ती एलोन की पुत्री बासमत के साथ विवाह किया।
35 इन पत्नियों ने इसहाक और रेबेका, दोनों का जीवन बड़ा दुःखी बना दिया।
अय्यूब 15
1 तब तेमानी एलीफ़ज ने उत्तर देते हुए कहाः
2 क्या बुद्धिमान बकवाद करता और अपना पेट पश्चिमी हवा से फुलाता है?
3 क्या वह खोखले तर्क देता और निरर्थक बातें बघारता है?
4 तुम तो ईश्वर पर श्रद्धा की जड़ काटते और ईश्वर की भक्ति में बाधा डालते हो।
5 तुम्हारा पाप तुम्हारे मुँह से बोलता है। तुम कपटियों-जैसी बातें करते हो।
6 इसलिए मैं नहीं, बल्कि तुम्हारा ही मुँह तुम को दोषी ठहराता, तुम्हारे ही होंठ तुम्हारे विरुद्ध गवाही देते हैं।
7 क्या मनुष्यों में सबसे पहले तुम्हारा ही जन्म हुआ था? क्या पहाड़ियों के पहले तुम्हारी ही उत्पत्ति हुई थी?
8 क्या तुम ईश्वर की सभा में बैठ कर प्रज्ञा प्राप्त कर चुके हो?
9 तुम क्या जानते हो, जो हम नहीं जानते? तुम क्या समझते हो, जो हम नहीं समझते?
10 हमारे पक्ष में ऐसे पके बाल वाले बूढ़े हैं, जिनकी उमर तुम्हारे पिता से भी अधिक है।
11 क्या तुम ईश्वर की सान्त्वना और हमारे सन्तुलित शब्दों का तिरस्कार करते हो?
12 तुम इस प्रकार उत्तेजित क्यों होते हो? तुम्हारी आँखें आवेश में क्यों चमकती है?
13 तुम क्यों ईश्वर के प्रति क्रोध व्यक्त करते और अपनी जीभ को ऐसे कटु शब्द कहने देते हो?
14 मनुष्य क्या है, जो वह शुद्ध होने का दावा करे! स्त्री की सन्तान क्या है, जो निर्दोषता का दावा करे!
15 यदि ईश्वर स्वर्गदूतों का विश्वास नहीं करता और आकाश उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं,
16 तो घृणित और भ्रष्ट मनुष्य की क्या बात, जो पानी की तरह पाप पीता हैं।
17 मेरी बात सुनो, मैं तुम्हें शिक्षा दूँगा! मैंने जो देखा है, वह तुम्हें बताऊँगा।
18 मैं ज्ञानियों की वह शिक्षा दोहराऊँगा, जो उन्हें अपने पूर्वजों से मिली थी और जिसे उन्होंने पूर्ण रूप से प्रकट किया।
19 उनके पूर्वजों को यह देश उस समय मिला था, जब उनके बीच कोई परदेशी नहीं रहता था।
20 दुष्ट का हृदय जीवन भर अशान्त रहता है। अत्याचारी को थोड़े ही वर्ष दिये जाते हैं।
21 जोखिम की ख़बरें उसे आतंकित करती रहती है; समृद्धि के दिनों में उस पर छापामार टूट पड़ते हैं।
22 उसे घोर अन्धकार से बच निकलने की आशा नहीं; उसके सिर पर तलवार लटकती रहती है।
23 वह मारा-मारा फिरता है, वह गीधों का शिकार है। वह जानता है कि उसके लिए अन्धकार निकट है।
24 वेदना और विपत्ति उसे आतंकित करती है। वे आक्रमक राजा की तरह उस पर टूट पड़ती हैं;
25 क्योंकि उसने ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, सर्वशक्तिमान् का सामना करने का साहस किया।
26 वह मोटी ढाल की आड़ में, सिर झुका कर उस पर टूट पड़ा।
27 उसके चेहरे पर मुटापा छा गया और उसके शरीर पर चरबी चढ़ गयी है।
28 वह उजड़े हुए नगरों में बस गया था, ऐसे टूटे-फूटे घरों में,जो खंडहर होने को हैं।
29 वह धनी नहीं बनेगा, उसकी सम्पत्ति उसके पास नहीं रहेगी। वह पृथ्वी पर नहीं फलेगा-फूलेगा।
30 वह अन्धकार से नहीं निकल पायेगा। आग उसकी टहनियों को मुरझा देगी, वे उस गरम हवा से नहीं बच पायेंगी।
31 वह मिथ्या बातों का भरोसा कर अपने को धोखा न दे, उसे निराश होना पड़ेगा।
32 उसकी टहनियाँ समय से पहले मुरझायेंगी और उसकी डालियाँ फिर हरी नहीं होंगी।
33 उसके कच्चे फल दाखलता की तरह झड़ जायेंगे, उसके फूल जैतून की तरह गिर जायेंगे;
34 क्योंकि दृष्ट की सन्तति निष्फल होती है, आग भ्रष्टाचारी मनुष्य के तम्बू भस्म कर देती है।
35 जो बुराई की कल्पना करते हैं, वे कुकर्म उत्पन्न करते हैं; उनके मन में छल-कपट की योजना बनती है।
अय्यूब 16
1 अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 मैं इस तरह की बहुत-सी बातें सुन चुका हूँ, तुम सब के सब दुःखदायी सान्त्वनादाता हो।
3 क्या हमारे बकवाद का कभी अन्त नहीं होगा? तुम मुझे उत्तर देने पर क्यों तुले हुए हो?
4 यदि तुम मेरे स्थान पर होते, तो मैं भी तुम्हारी तरह बोलता। मैं तुम्हारे विरुद्ध भाषण झाड़ता और तुम्हारी विरुद्ध सिर हिलाता।
5 मैं अपने शब्दों में तुम्हें सान्त्वना देता और अपनी चतुर बातों से तुम को शान्त करता।
6 मेरे बोलने पर मेरी वेदना दूर नहीं होती और मौन रहने पर बनी रहती है।
7 मैं टूट गया हूँ, निस्सहाय हूँ उसने मेरा समस्त परिवार नष्ट कर दिया।
8 वह मेरे विरुद्ध साक्ष्य देता है, मेरा परित्याग करता और मुझ पर अभियोग लगाता है।
9 वह क्रुद्ध हो कर मुझे फाड़ डालता और मेरे विरुद्ध दाँत पीसता है। मेरे विरोधी मुझ पर आँख गड़ाता है।
10 लोग मेरा उपहास करते और मुझे थप्पड़ मारते हैं। वे मेरे चारों ओर खड़े रहते हैं।
11 ईश्वर ने मुझे दुष्टों के हाथ दे दिया, मुझे विधर्मियों के पंजे में डाल दिया है।
12 मैं सुख-शान्ति से रहता था, किन्तु उसने मुझ झकझोरा। उसने मेरी गरदन पकड़ कर मुझे पछाड़ा और मुझे अपना निशाना बनाया है।
13 उसके बाण मुझे चारों ओर से मारते हैं, वह निर्दयता से मेरे गुरदे चीरता और मेरा पित्त भूमि पर बिखेरता है।
14 वह बार-बार मुझे छेदित करता और योद्धा की तरह मुझ पर टूट पड़ता है।
15 मैंने टाट सि कर कर पहन लिया और अपना माथा धूल में छिपाया
16 मेरा चेहरा रोते-रोते लाल हो गया है, मेरी आँखों पर मृत्यु की छाया पड़ गयी है।
17 फिर भी मेरे हाथों ने हिंसा नहीं की और मेरी प्रार्थना निष्कपट है।
18 पृथ्वी! मेरा बहाया रक्त मत ढको! मेरी दुहाई की आवाज़ शान्त न हो जाये!
19 अब भी स्वर्ग में मेरा साक्षी है, ऊँचाई पर मेरा समर्थक है।
20 मेरे मित्र भले ही मेरा उपहास करें, मैं ईश्वर के सम्मुख आँसू बहाता हूँ।
21 जिस तरह कोई व्यक्ति मनुष्य के सामने किसी का पक्ष लेता है, उसी तरह कोई समर्थक ईश्वर के सामने मनुष्य का पक्ष प्रस्तुत करे;
22 क्योंकि मुझे थोड़े ही वर्षों के बाद उस मार्ग पर जाना होगा, जहाँ से कोई नहीं लौटता।
सूक्ति 2:20-22
20 इसलिए तुम अच्छे लोगों के पथ पर चलोगे; तुम धार्मिकों के मार्ग से नहीं भटकोगे।
21 निष्कपट लोग देश के अधिकारी होंगे; निर्दोष लोग उस में निवास करेंगे।
22 किन्तु दुष्ट देश से निर्वासित होंगे; विधर्मी उस से निकाले जायेंगे।