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पठन योजना में आज पढ़ें :(इसायाह का ग्रन्थ 65 ),( एज़ेकिएल का ग्रन्थ 23-24), (सूक्ति-ग्रन्थ 13: 21-25)

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इसायाह 65

1 “मैंने उन लोगों पर अपने को प्रकट किया, जो मुझ से परामर्श नहीं लेते थे। जो लोग मेरी खोज नहीं करते थे, मैं उन्हें नहीं मिला। जो राष्ट्र मेरा नाम नहीं लेता, मैंने उस से कहा, ’देखो, मैं प्रस्तुत हूँ‘।

2 मैं दिन भर एक ऐसे विद्रोही राष्ट्र की ओर अपने हाथ फैलाये रहा, जो कुमार्ग पर चलता और मनचाहे रास्ते पर भटकता है-

3 एक ऐसा राष्ट्र, जो मेरे मुँह पर मुझे निरन्तर चिढ़ाता रहता है। वे लोग अपनी वाटिकाओं में चढ़ावे अर्पित करते और ईंटों पर धूप चढ़ाते हैं।

4 वे कब्रों के बीच बैठते और गुफाओं में जागरण करते हैं। वे सूअर का माँस खाते और अपने बरतनों में घृणित रस भरते हैं।

5 वे दूसरों से कहते हैं, ’सावधान रहो, मेरे पास मत आओ। मैं तुम्हारे लिए परमपवित्र हूँ।’ ऐसे लोग धूएँ की तरह, दिन भर जलती अग्नि की तरह, मेरी नाक में दम करते हैं।

6 (6-7 “देखो, मेरे सामने यह लिखा हआ हैः मैं तब तक मौन नहीं रहूँगा, जब तक मैं उन से उनके अधर्म का, उनकी अपनी और उनके पूर्वजों की दुष्टता का पूरा-पूरा बदला नहीं चुकाऊँगा।“ यह प्रभु का कथन है। “जो पहाड़ों पर सुगन्धित धूप चढ़ाते और पहाड़ियों पर मेरा उपहास करते हैं, मैं उन से उनके पुराने कुकर्मों का पूरा-पूरा बदला चुकाऊँगा।”

8 प्रभु यह कहता हैः “जब तक अंगूर के गुच्छे में रस होता है, लोग कहते हैं- ’उसे नष्ट मत करो, उस में अब तक आशिष मौजूद हैं’। मैं अपने सेवकों के कारण ऐसा ही करूँगा। मैं सबों का विनाश नहीं करूँगा।

9 मैं याकूब से वंशजों को उत्पन्न करूँगा और यूदा से अपने पर्वतों के अधिकारियों को। वे मेरी चुनी हुई प्रजा को विरासत के रूप में मिलेंगे, मेरे सेवक वहाँ निवास करेंगे।

10 जो प्रजा मेरी खोज करती रही, उसके लिए शारोन का मैदान भेड़-बकरियों का चरागाह बनेगा और आकोर की घाटी गाय-बैलों का विश्राम-स्थान।

11 “परन्तु तुम लोग, जिन्होंने प्रभु का परित्याग किया और मेरा पवित्र पर्वत भुला दिया, जो भाग्य-देवता गद को अन्न अर्पित करते और नियति-देवी मेनी को अर्घ चढ़ाते हो,

12 मैं तुम्हें तलवार को अर्पित करूँगा। वध के लिए सब को अपनी गरदन झुकानी होगी; क्योंकि मैंने तुम को बुलाया और तुमने उत्तर नहीं दिया। तुमने वही किया, जो मेरी दृष्टि में बुरा है; तुमने वही चुना, जो मुझे अप्रिय है।“

13 इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः “मेरे सेवकों को भोजन मिलेगा, किन्तु तुम लोग भूखे रहोगे। मेरे सेवकों को पीने को मिलेगा, किन्तु तुम प्यास से तड़पोगे। मेरे सेवक आनन्द मनायेंगे, किन्तु तुम को नीचा दिखाया जायेगा।

14 मेरे सेवक आनन्दित हो कर जयकार करेंगे, किन्तु तुम लोग दुःखी हो कर रोओगे और निराशा में विलाप करोगे।

15 मेरे चुने हुए लोग तुम्हारा नाम ले कर अभिशाप देंगे। प्रभु-ईश्वर तुम्हारा वध करेगा किन्तु वह अपने सेवकों का नया नाम रखेगा।

16 जो व्यक्ति देश में अपने लिए आशीर्वाद माँगेगा, या शपथ खायेगा, वह सत्य के ईश्वर के नाम पर ऐसा करेगा; क्योंकि अतीत के कष्ट भुला दिये गये हैं; वे मेरी आँखों से ओझल हो गये हैं।

17 “मैं एक नये आकाश और एक नयी पृथ्वी की सृष्टि करूँगा। पुरानी बातें भुला दी जायेंगी, उन्हें कोई याद नहीं करेगा।

18 मेरी उस सृष्टि में सदा आनन्द और उल्लास रहेगा। मैं  येरुसालेम को आनन्दित और उसकी प्रजा को उल्लसित करूँगा।

19 तब  येरुसालेम मुझे आनन्द प्रदान करेगा और मेरी प्रजा मेरे उल्लास का कारण बनेगी। उस में फिर न तो रुदन सुनाई देगा और न विलाप।

20 वहाँ न तो कोई ऐसा शिशु मिलेगा, जो थोड़े ही दिनों तक जीवित रहे और न कोई ऐसा वृद्ध, जो अपने दिन पूरे न कर पाये। हर युवक सौ वर्ष तक जीवित रहेगा- जो उस उमर तक नहीं पहुँचता, वह शापित माना जायेगा।

21 वे घर बनायेंगे और उन में निवास करेंगे; वे दाखबारियाँ लगायेंगे और उनके फल खायेंगे।

22 अब ऐसा नहीं होगा कि वे घर बनायें और दूसरे उन में निवास करें, वे पौधे लगायें और दूसरे उसके फल खायें; क्योंकि मेरी प्रजा के पुत्र वृक्षों की तरह दीर्घायु होंगें। मेरे चुने हुए लोग स्वयं अपने परिश्रम का फल खायेंगे।

23 वे अब व्यर्थ परिश्रम नहीं करेंगे, उनकी सन्तति दुर्दिन नहीं देखेगी। प्रभु का आशीर्वाद उन पर और उनके वंशजों पर बना रहेगा।

24 उनके दुहाई देने से पहले ही, मैं उन्हें उत्तर दूँगा; उनकी प्रार्थना पूरी होने से पहले ही, मैं उसे स्वीकार करूँगा।

25 भेड़िया और मेमना साथ-साथ चरेंगे। सिंह बैल की तरह चारा खायेगा। साँप मिट्टी खा कर पेट भरेगा। मेरे समस्त पवित्र पर्वत पर कोई हानि या विनाश नहीं करेगा।“ यह प्रभु का कथन है।

एज़ेकिएल 23

1 मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः

2 “मानवपुत्र! दो स्त्रियाँ, एक ही माता की दो पुत्रियाँ थीं।

3 वे मिस्र में व्यभिचार करती थीं। वे अपनी युवावस्था से ही व्यभिचार करती थीं। वहाँ उनका उरोजमर्दन होता था, उनके अक्षत स्तन सहलाये जाते थे।

4 बड़़ी का नाम ओहोला था और उसकी बहन का नाम ओहोलीबा। मैंने उन्हें अपना लिया और उनके पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न हुए। ओहोला नाम समरिया का है और ओहोलीबा, येरूसालेम का।

5 “जब ओहोला मेरे अधीन थी, तो उसने व्यभिचार किया। वह अस्सूरियों पर मोहित हो गयी,

6 उस बैंगनी वस्त्रधारी योद्धाओं क्षतप्रों और सेनापतियों पर, जो सभी अश्वारोही सुन्दर नवयुवक थे।

7 उसने अपने आप को सभी सर्वोत्म अस्सूरियों को व्यभिचार के लिए अर्पित किया और वह जिनके प्रति आसक्त थी, उनकी मूर्तियों की पूजा द्वारा अपने को दूषित किया।

8 उसके मिस्र में रहते समय किये गये व्यभिचार का परित्याग नहीं किया था; क्योंकि उसकी तुरुणाई में लोग उसके साथ सोये थे, उन्होंने उसके अक्षत उरोज सहलाये और अपनी वासना शान्त की थी।।

9 इसलिए मैंने उस को अपने प्रेमी अस्सूरियों के हाथ दे दिया, जिन पर वह आसक्त थी।

10 उन्होंने उसे निर्वस्त्र कर उसके पुत्र-पुत्रियों को बन्दी बनाया और उसे तलवार के घाट उतार दिया। दण्डित किये जाने के बाद वह स्त्रियों के बीच दृष्टान्त बन गयी।

11 “उसकी बहन ओहोलीबा ने यह सब देखा, तब भी वह उस से कहीं अधिक भ्रष्ट बनी रही और व्यभिचार में उस से भी आगे रही।

12 वह अस्सूरियों पर मोहित हो गयी- क्षतप्रों, सेनापतियों, अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित योद्धाओं, अश्वारोहियों पर जो सभी मोहक नवयुवक थे।

13 मैंने यह देखा कि वह शीलभ्रष्ट हो गयी; दोनों का आचरण एक जैसा था।

14 किन्तु वह व्यभिचार में और भी आगे बढ़ गयी। जब उसने भित्ति पर अंकित लोगों को, लाल रंग से बने हुए खल्दैयियों के वे चत्रि देखे,

15 जो अपनी कमर में बन्दकसे, अपने सिर पर साफे पहने, सब-के-सब सैनिक अधिकारियों-जैसे थे, खल्दैया में रहने वाले बाबुलवासियों के चत्रि जैसे,

16 तो वह उन पर मोहित हो गयी। उसने खल्देया में उनके यहाँ दूत भेजे।

17 बाबुलवासी उसके प्रेम की सेज के समीप आ गये और उन्होंने अपनी वासना द्वारा उसे भ्रष्ट कर दिया। उनके द्वारा अपवित्र किये जाने पर घृणा के कारण वह उन से विमुख हो गयी।

18 जब उसने खुले आम व्यभिचार किया और अपनी निर्लज्जता प्रकट की, तो घृणा के कारण मैं उस से उसी तरह विमुख हो गया, जिस तरह मैं उसकी बहन से विमुख हुआ था।

19 तब भी वह अपनी तरुणाई के उन दिनों की याद कर, जब वह मिस्र देश में व्यभिचार करती थी, और अधिक व्यभिचार करती गयी।

20 वह वहाँ अपने प्रेमियों पर मोहित हो गयी, जिनके कामांग गधों-जैसे थे और जिनका स्राव घोड़ों के सदृश था।

21 इस तरह तुम अपनी उस तरुणाई के व्यभिचार के लिए लालायित हो गयी, जब मिस्रवासी तुम्हारे स्तन सहलाते और तुम्हारा उरोज-मर्दन करते थे।

22 “इसलिए ओहोलीबा! प्रभु-ईश्वर यह कहता है, ’मैं तुम्हारे प्रेमियों को, जिन से तुम विमुख हो गयी हो, तम्हारे विरुद्ध उकसाऊँगा और हर दिशा से उन को तुम पर आक्रमण करने लाऊँगा-

23 बाबुलवासियों, सभी खल्दैदियों, पकोद, शोआ और कोआ के निवासियों तथा उनके साथ सभी अस्सूरियों को मोहक, नवयुवकों, उनके समस्त क्षतप्रों, सेनापतियों, पदाधिकारियों और सैनिकों को, जो सभी अश्वारोही हैं।

24 वे रथों, वाहनों और विशाल जनसमूह के साथ उत्तर की ओर से तुम पर आक्रमण करेंगे। वे फरी, ढाल और शिरस्त्राण धारणा कर तुम को हर ओर से घेर लेंगे। मैं उन को तुम्हारे न्याय का अधिकार दे दूँगा और वे अपने विधान के अनुसार तुम्हारा न्याय करेंगे।

25 मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना कोप प्रकट करूँगा, जिससे वे तुम्हारे साथ रोषपूर्ण व्यवहार करें। वे तुम्हारे नाक-कान काटदेंगे और तुम्हारे बीच जीवित रह गये लोग तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे। वे तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों को पकड़ कर ले जायेंगे और तुम्हारे बीच जीवित रह गये लोग आग में जला दिये जायेंगे।

26 वे तुम्हारे वस्त्र तक उतार लेंगे और तुम्हारे बहुमूल्य आभूषण छीन लेंगे।

27 मैं मिस्र देश में शुरू हुए तुम्हारे दुराचरण और व्यभिचार का अन्त कर दूँगा, जिससे तुम न तो मिस्रियों की ओर देखोगी और न कभी उनका स्मरण करोगी।

28 क्योंकि प्रभु-ईश्वर यह कहता है: मैं तुम्हें उन लोगों के हाथ कर दूँगा, जिन से तु घृण करती हो- उन लोगों के हाथ, जिन से तुम घृणा के कारण विमुख हो गयी हो।

29 तुम्हारे प्रति उनका व्यवहार घृणा का होगा। वे तुम्हारे श्रम का समस्त लाभ हड़प लेंगे, तुम्हें निर्वस्त्र और नग्न छोड़ देंगे और तुम्हारे व्यभिचार की निर्लज्जता प्रकट हो जायेगी। तुम्हारे दुराचरण और व्यभिचार के कारण ही

30 तुम पर यह बीती है, क्योंकि तुमने राष्ट्रों के साथ व्यभिचार किया और उनकी दूवमूर्तियों की पूजा द्वारा अपने को अपवित्र बनाया।

31 तुमने अपनी बहन का अनुसरण किया; इसलिए मैं उसका प्याला तुम्हारे हाथ दे दूँगा।

32 प्रभु-ईश्वर यह कहता है- तुम अपनी बहन का प्याला पियोगी जो गहरा और बड़ा है। तुम्हारी हँसी होगी और तुम्हारा उपहास किया जायेगा, क्योंकि उस में बहुत समाता है।

33 तुम नशे और उदासी से भर जाओगी। तुम्हारी बहन समारिया का प्याला सन्त्रास और विध्वंस का प्याला है।

34 तुम इसे पियोगी और अंतिम बूँद तक पीती रहोगी; तुम अपने केश नोचोगी और अपनी छाती चीरोगी; क्योंकि यह मैंने कहा है- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

35 “इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः तुमने मुझे भुला दिया है और अपने आप से ओझ कर दिया है, इसलिए तुम अपनी दुश्चरत्रिता और व्यभिचार के फल भोगो।“

36 प्रभु ने मुझ से यह कहा, “मानवपुत्र! क्या तुम ओहोला और ओहोलीबा का न्याय करोगे? तो उनके घृणित कार्यों की घोषणा उनके सामने कर दो।

37 उन्होंने व्यभिचार किया है और उनके हाथ खून से रँगे हैं। उन्होंने अपनी दूवमूर्तियों के साथ व्यभिचार किया है, यहाँ तक कि उन्होंने मेरे लिए उत्पन्न अपने पुत्रों को उन्हें बलि के लिए अर्पित किया है।

38 यही नहीं, उन्होंने मेरे विरुद्ध यह कार्य किया है: उन्होंने उसी दिन मेरा मन्दिर अपवित्र किया है और मेरे विश्राम-दिवस अपवित्र किये हैं।

39 उन्होंने जिस दिन अपनी देवमूर्तियों पर चढ़ाने के लिए अपनी सन्तानों का वध किया था, उसी दिन उन्होंने मेरे मन्दिर को अपवित्र करने के लिए उस में प्रवेश किया था। उन्होंने यह कार्य मेरे घर में किया।

40 उन्होंने दूर-दूर के लोगों को बुलाया, यहाँ तक कि उनके यहाँ दूत भेजा और वे आ गये। तुमने उनके लिए स्नान कर अपनी आँखों के काजल लगाया और आभूषण सजाये।

41 तुम एक सुसज्जित आसन पर बैठ गयीं, उसके सामने एक मेज़ रखी थी, जिस पर तुमने मेरा लोबान और मेरा तेल रख दिया था।

42 उसके चारों ओर बेफिक्र लोगों का कोलाहल सुनाई दे रहा था और सामान्य लोगों के साथ उजाड़खण्ड से पियक्कड़ भी आये थे। उन्होंने इन स्त्रियों की कलाइयों में कंगन और इनके माथे पर सुन्दर मुकुट पहनाये थे।

43 “इस पर मैं यह बोलाः क्या जब लोग उसके साथ संसर्ग करते हैं, तो वे व्यभिचार नहीं करते?

44 वे उसके यहाँ उसी प्रकार गये हैं, जिस प्रकार लोग वेश्या के यहाँ जाते हैं। ठीक उसी प्रकार वे ओहोला और ओहोलीबा के यहाँ व्यभिचार के लिए गये थे।

45 किन्तु धर्मी लोग उनका न्याय करेंगे, जैसे व्यभिचारिणियों और रक्त बहाने वाले लोगों का विचार करते हैं; क्योंकि वे व्यभिचारिणी हैं और उनके हाथ खून से रँगे हैं।

46 “प्रभु-ईश्वर यह कहता है: उनके विरुद्ध जनसमूह को एकत्रित करो और उन को आतंक और लूट का शिकार बनने दो।

47 वह जनसमूह उन्हें पत्थरों से मारेगा और तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर देगा। वह उनके पुत्र-पुत्रियों का वध करेगा और उनके घर जला डालेगा।

48 इस प्रकार मैं इस देश के व्यभिचार को मिटा दूँगा, जिससे सभी स्त्रियाँ सचेत हो जायें और तुम्हारी तरह दुराचरण न करें।

49 तुम्हें अपने दुराचरण का प्रतिफल मिलगा और अपनी पापपूर्ण मूर्तिपूजा का दण्ड भोगना होगा। तब तुम यह जान जाओेगी कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।“

एज़ेकिएल 24

1 नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,

2 “मानवपुत्र! तुम आज ही आज की यह तिथि लिख लो। आज के दिन ही बाबुल के राजा ने येरूसालेम का घेरा डाला है।

3 तुम इस विद्रोही घराने को यह दृष्टान्त सुनाओ और उस से बोलोः ’प्रभु-ईश्वर यह कहता है- बटलोई रखो, उसे रख दो; उस में पानी डाल दो।

4 उस में मांस के टुकड़े, सब अच्छे टुकड़े, जाँघ और कन्धा डाल दो; उसे अच्छी-अच्छी हड्डियों से भर दो।

5 रेवड़ की सब से अच्छी भेड़ ले लो; उसके नीचे लकड़ियाँ लगा दो। उस में उसके टुकड़े उबालो और उसकी हड्डियाँ सिझाओ’।

6 “प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः धिक्कार उस खूनी नगर को, उस बटलोई को, जिस में जंग लगा है और जिसका जंग साफ़ नहीं किया जा सका! उसका एक-एक टुकड़ा बिना किसी भेद-भाव के, बाहर निकाल लो।

7 उसने जो रक्त बहाया है, वह उनके बीच अब भी है। उसने उसें नंगी चट्टान पर डाल दिया था, उसने उसे धूल से ढकने के लिए जमीन पर नहीं डाला था।

8 अपना क्रोध भड़काने और प्रतिशोध लेने के लिए मैंने उसके द्वारा बहाये गये रक्त को नंगी चट्टान पर डाल दिया है, जिससे उसे ढका नहीं जा सके।

9 इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- उस खूनी नगर को धिक्कार! मैं भी लकड़ियों का एक बड़ा ढेर लगाऊँगा।

10 लडकियों का ढेर लगाओ, आग जला दो, अच्छी तरह मांस पकाओ, शोरबा निकाल लो और हड्डियों को जलने दो।

11 इसके बाद उसे ख़ाली कर आग पर रख दो, जिससे वह गर्म हो जाये और उसका ताँबा जलने लगे, जिससे उसका मैल गल जाये और उसका जं़ग भस्म हो जाये।

12 मैने व्यर्थ ही परिश्रम किया है। उसका गाढ़ा जंग आग से भी दूर नहीं होता।

13 तुम्हारा व्यभिचार ही उसका जंग है। मैंने तुम्हें शुद्ध कर दिया होता, किन्तु तुम्हारी मलिनता शुद्ध नहीं की जा सकी; इसलिए तुम फिर तब तक शुद्ध नहीं हो सकोगी, जब तक मैं तुम पर अपना क्रोध न उतार लूँ।

14 यह मैं, प्रभु ने कहा है। यह हो कर रहेगा, मैं इसे पूरा करूँगा। मैं अपना निश्चय नहीं बदलूँगा। मैं किसी को नहीं छोडूँगा, मैं कोई दया नहीं दिखाऊँगा। मैं तुम्हारा न्याय तुम्हारे आचरण और कर्मों के अनुसार करूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।“

15 प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,

16 “मानवपुत्र! तुम जिसे प्यार करते हो, मैं उसे आकस्मिक मृत्यु द्वारा तुम से अलग कर दूँगा। किन्तु तुम न तो शोक मनाओ, न विलाप करो और न रोओ।

17 तुम अपना दुःख पी कर चुप रहो और मृतक के लिए मातम मत मनाओ। तुम पगड़ी बाँधो, जूते पहनो, अपना मुँह मत ढको और जो रोटी लोग देने आते हैं, उसे मत खाओ।“

18 मैंने प्रातः लोगों को सम्बोधित किया और उसी शाम मेरी पत्नी चल बसी। दूसरे दिन, जो मुझ से कहा गया था, मैंने वही किया।

19 लोगों ने मुझ से कहा, “हमें बताइए कि हमारे लिए आपके आचरण का क्या अर्थ है“।

20 मैंने उत्तर दिया, “प्रभु ने मुझ से यह कहा:

21 इस्राएलियों से कहो- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है। मैं अपने मन्दिर को अपवित्र कर दूँगा, जो तुम्हारे घमण्ड का कारण है। वह तुम्हारी आँखों की ज्योति और तुम्हारी आत्माओं को प्रिय है। तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ, जिन्हें तुम छोड़ गये हो, तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे।

22 तब तुम लोगों को वही करना होगा, जो मैंने किया। तुम अपना मुँह मत ढको और लोग जो रोटी तुम्हें देने आते हैं, उसे मत खाओे।

23 अपनी पगड़ी बाँधे रखो और जूते पहने रहो। तुम शोक नहीं मनाओ और नहीं रोओ। तुम अपने पापों के कारण गल जाओगे और एक दूसरे के सामने कराहते रहोगे।

24 एजे़किएल तुम्हारे लिए एक चिह्न है। उसने जैसा किया, तुम लोग ऐसा ही करोगे। उस समय तुम जान जाओगे कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।

25 “और तुम मानवपुत्र! जिस दिन मैं उन से उनका आश्रय, उनका उल्लास और गौरव, उनकी आँखों की ज्योति, उनके हृदय का आनंद और उनके पुत्र-पुत्रियाँ छीन लूँगा,

26 उस दिन एक भगोड़ा तुम्हारे यहाँ समाचार देने आयेगा।

27 उस दिन तुम अपना मूँह उस भगोड़े के सामने खोलोगे, तुम बोलोगे, गूँगे नहीं रह जाओगे। इस प्रकार तुम उन लोंगों के लिए एक चिह्न होगे और वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

सूक्ति-ग्रन्थ 13: 21-25

21 विपत्ति पापियों का पीछा करती है, किन्तु सुख-शान्ति धर्मियों का पुरस्कार है।

22 भला मनुष्य अपने पौत्रों के लिए विरासत छोड़ जाता है, किन्तु पापी की सम्पत्ति धर्मी के हाथ लगती है।

23 दरिद्रों का खेत भरपूर फ़सल पैदा करता है, किन्तु अन्याय उसे चौपट कर देता है।

24 जो छड़ी नहीं लगाता, वह अपने पुत्र का शत्रु है। जो अपने पुत्र को प्यार करता है, उसे दण्ड देने में हिचक नहीं।

25 धर्मी भरपेट भोजन करता, किन्तु पापी भूखा रहता है।