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पठन योजना में आज पढ़ें :(यिरमियाह का ग्रन्थ 4 ),( एज़ेकिएल का ग्रन्थ 31-32), (सूक्ति-ग्रन्थ 14: 17-20)

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यिरमियाह 4

1 प्रभु यह कहता है, “इस्राएल! यदि तुम लौटते हो, तो तुम्हें मेरे पास लौटना चाहिए। यदि तुम अपने सामने से अपनी देवमूर्तियों को दूर करोगे, तो तुम फिर नहीं भटकोगे।

2 यदि तुम सच्चाई, न्याय और निष्कपट हृदय से जीवन्त ईश्वर की शपथ खाओगे, तो राष्ट्रों को प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होगा और वे उस पर गौरव करेंगे।“

3 क्योंकि प्रभु यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों से यह कहता हैः “अपनी पड़ती ज़मीन को जोतो और काँटों में बीज मत बोओ।

4 यूदा के लोगों और येरुसालेम के निवासियों! प्रभु के लिए अपने शरीर और अपने हृदय का ख़तना करो। नहीं तो तुम्हारे कुकर्मों के कारण मेरा क्रोध आग की तरह भड़क उठेगा और कोई उसे बुझाने में समर्थ नहीं होगा।

5 “यूदा में प्रकट करो और येरुसालेम में यह घोषित करोः ’देश भर में तुरही बजाओ! पुकार-पुकार कर यह कहो; ’हम सब मिल कर किलाबन्द नगरों की शरण लें’।

6 सियोन जाने का झण्डा फहराओ! अविलम्ब रक्षा के लिए भाग जाओ; क्योंकि मैं उत्तर की ओर से तुम्हारे लिए विपत्ति और संहार लाने वाला हूँ।“

7 सिंह अपनी माँद से निकला है, राष्ट्रों का विध्वंसक चल पड़ा है। वह तुम्हारा देश उजाड़ने अपने यहाँ से बाहर निकला है। तुम्हारे नगर उजड़ जायेंगे, उन में कोई निवासी नहीं रह पायेगा।

8 इसलिए टाट के वस्त्र ओढ़ कर शोक मनाओ और विलाप करो; क्योंकि प्रभु का भीषण क्रोध हम पर से दूर नहीं हुआ है।

9 प्रभु यह कहता है, “उस दिन राजा और अधिकारियों का साहस जाता रहेगा। याजक स्तब्ध रह जायेंगे और नबी विस्मित हो उठेंगे।“

10 इस पर मैंने कहा, “हाय, प्रभु-ईश्वर! तूने इस प्रजा और येरुसालेम को यह कहते हुए धोखा दिया कि ’तुम्हें शान्ति प्राप्त होगी’ और अब हमें तलवार के घाट उतारा जायेगा’।

11 (11-12 उस समय इस प्रजा और येरुसालेम से यह कहा जायेगाः “मरुभूमि के उजाड़ पहाड़ों की ओर से मेरी प्रजा पर लू चलेगी। किन्तु वह प्रचण्ड लू छानने या ओसाने के लिए नहीं आयेगी। मैं तुम्हें दण्ड देने के लिए उसे तुम पर भेज रहा हूँ।“

13 वह घने बादल की तरह आ रहा है। उसके रथ बवण्डर की तरह हैं। उसके घोड़े गरुड़ से भी तेज हैं। हाय! हमारा विनाश हो जायेगा।

14 येरुसालेम! अपने हृदय से बुराई निकाल दे, जिससे तू बच सके! तेरे बुरे विचार तुझ से कब निकलेंगे?

15 दान से, एफ्राईम के पहाड़ी प्रदेश से एक वाणी विपत्ति के आगमन की घोषणा कर रही है।

16 “यूदा को सूचित करो, येरुसालेम को सुना दोः ’शत्रु दूर देश से आक्रमण करने आ रहा है वह यूदा के नगरों को ललकार रहा है।

17 वह खेत के रखवालों की तरह उसे चारों ओर से घेर रहा है।“ यह प्रभु की वाणी है।

18 “यह सब तेरे आचरण और कुकर्मों के कारण हो रहा है। यह तेरी दुष्टता का फ़ल है। यह कितना कटु है! यह तेरा हृदय, छेद रहा है!

19 ओ, मेरे हृदय, मेरे हृदय! मैं पीड़ा से तड़पता हूँ! ओ! मेरे हृदय की प्राणपीड़ा, मेरे हृदय की धड़कने! मैं चुप नहीं रह सकता, क्योंकि रणसिंघे की आवाज और युद्ध का कोलाहल सुन रहा हूँ।

20 विपत्ति-पर-विपत्ति का समाचार आ रहा है। सारा-का-सारा देश उजाड़ हो रहा है। मेरा शिविर अचानक उठाया गया और क्षण भर में मेरे तम्बू!

21 मैं कब तक युद्ध का झण्डा देखता रहूँ? मैं कब तक रणसिंघे की आवाज सुनता रहूँ?

22 “मेरी प्रजा निश्चय ही मूर्ख है। वे मुझे नहीं जानते। वे नासमझ बच्चे हैं और कुछ नहीं समझते। वे कुकर्मों में बहुत कुशल हैं, किन्तु भलाई करना नहीं जानते।“

23 मैं पृथ्वी की ओर देखता हूँ- वह उजाड़ और निर्जन है। मैं आकाश की ओर देखता हूँ- उसका प्रकाश लुप्त हो गया है।

24 मैं पहाड़ों की ओर देखता हूँ- वे काँपते हैं और सब पहाड़ियाँ हिल रही हैं।

25 मैं देख रहा हूँ- मनुष्य नहीं रहे और सभी पक्षी भाग गये।

26 मैं देख रहा हूँ- उपजाउ भूमि उजाड़ पड़ी है, सभी नगर जलाये गये हैं। यह प्रभु के प्रज्वलित क्रोध का परिणाम है।

27 प्रभु यह कहता हैः “पूरा देश उजाड़ हो जायेगा, किन्तु मैं उसका पूरा विनाश नहीं करूँगा।

28 पृथ्वी इसके कारण शोक मनायेगी और आकाश में अँधेरा छा जायेगा। मैंने यह कहा और मेरा कथन पूरा हो कर रहेगा। मैंने यह निर्णय किया और मैं उसे वापस नहीं लूँगा।“

29 घुड़सवारों और धनुर्धारियों को आते सुन कर नगरों के सब निवासी भाग जाते हैं। वे झाड़ियों में छिपते हैं; वे चट्टानों पर चढ़ते हैं। हर नगर निर्जन हो गया है, वहाँ अब कोई नहीं रहता।

30 तू क्या कर रही है? तू लाल वस्त्र धारण कर स्वर्ण आभूषण पहनती और अपनी आँखों में काजल लगाती है। तू व्यर्थ ही अपना श्रृंगार करती है, क्योंकि तेरे प्रेमी तेरा तिरस्कार करते और तेरा वध करना चाहते हैं।

31 मैं प्रसवपीड़िता की-सी कराह, प्रथम बार जन्म देने वाली का चीत्कार सुनता हूँ। यह सियोन की हाँफती हुई पुत्री की आवाज़ है, जो यह कहते हुए हाथ पसारती है: “हाय! मैं बेहोश हो रही हूँ। मैं हत्यारों के हाथ में पड़ी हूँ।”

एज़ेकिएल 31

1 ग्याहरवें वर्ष के तीसरे महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः

2 “मानवपुत्र! मिस्र के राजा फ़िराउन और उसके जनसमुदाय से यह कहो- तुम अपनी महानता में किसके सदृश हो?

3 मैं तुम्हारी तुलना लेबानोन के देवदार से करूँगा, जिसकी शाखएँ सुन्दर और छाया जंगल जैसी थी, जो बहुत ऊँचा था, जिसकी चोटी बादलों का स्पर्श करती थी।

4 जलस्त्रोत उसे सींचते थे, अगाध गर्त ने अपनी नदियों को उसे लगाने के स्थान के चारों ओर प्रवाहित कर, अपनी जलधाराओं के वन के सभी वृक्षों के पास भेज कर, उसे ऊँचा बनाया था।

5 अपनी टहनियों को मिलने वाले प्रचुर जल के कारण वह वन के सभ वुक्षों से लम्बा हो गया उसकी शाखाएँ बड़ी और उसकी डालियाँ लंबी हो गयी।

6 आकाश से सभी पक्षियों ने उसकी शाखाओं में अपने घोंसले बनाये उसकी डालियों के नीचे मैदान के सभी पशुओं ने अपने बच्चों को जन्म दिया और उसकी छाया में सभी राष्ट्र निवास करते थे।

7 वह अपनी विशालता में, अपनी शाखाओं के विस्तार में सुन्दर दिखाई देता था; क्योंकि उसकी जडे़ं प्रचुर जलधाराओं तक नीचे चली गयी थीं।

8 ईश्वर की वाटिका के देवदार उसकी समता नहीं कर सकते थे; सनोवर वुक्ष उसकी शाखाओं की बराबरी करने में असमर्थ थे; उसकी शाखाओं की तुलना में चिनार वुक्ष तुच्छ थे। ईश्वर की वाटिका का कोई भी वृक्ष उसके समान सुन्दर नहीं था।

9 मैंने उसे शाखाओं की विपुलता में सुन्दर बनाया था और अदन के वे सभी वुक्ष, जो ईश्वर की वटिका में थे, उस से ईर्या करते थे।

10 “इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है: उसकी ऊँचाई बहुत बढ़ गयी थी, उसकी चोटी बादलों तक पहुँच गयी थी और अपनी ऊचाई के कारण उसका हृदय घमण्ड से भर गया था;

11 इसलएि मैं उसे सब से शक्तिशाली राष्ट्र के हाथ कर दूँगा। वह उसे निश्चय ही उसकी दुष्टता के अनुरूप दण्ड देगा; मैंने उसका परित्याग कर दिया है।

12 राष्ट्रों में सब से क्रूर विदेशी लोग उसे काट कर छोड़ देंगे। उसकी शाखाएँ पर्वतों पर और सभी घाटियों में गिर जायेंगी और उसकी टहनियाँ टूट कर देश के सभी जलमार्गों पर पड़ी रहेंगी। पृथ्वी की सभी जातियाँ उसकी छाया त्याग कर चली जायेंगी।

13 उसके ठूँठ पर आकाश के सभी पक्षी बसेरा करेंगे और उसकी शाखाओं पर मैदान के सभी पशु निवास करने लगेंगे।

14 यह सब इसलिए है कि जलस्रोत के निकट का कोई भी वुक्ष बहुत ऊँचाई तक न बढ़ सके, उसकी चोटी गगनचुम्बी न हो और जल से सिंचित कोई भी वृक्ष ऊँचाई में उसके पास तक न पहुँचे; क्योंकि वे सभी मृत्यु के अधीन कर दिये गये हैं – नश्वर मानवों के बीच अधोलोक के अधीन उन लोगों के साथ, जो गर्त में उतरते हैं।

15 “प्रभु-ईश्वर यह कहता है: जब वह अधोलोक में उतरेगा, तो मैं गर्त से उस पर विलाप कराऊँगा, उसकी नदियों को बहने से रोकूँगा और जलाशयों को सुखा दूँगा। मैं उसके कारण लेबानोन पर शोक फैलाऊँगा और मैदान के सभी वृक्ष उसके कारण मुरझा जायेंगे।

16 जब मैं उसे उन लोगों के साथ, जो गर्त में उतरते हैं, अधोलोक में ढकेलूँगा, तो उसके गिरने की आवाज से राष्ट्रों को कँपा दूँगा। अदन के सभी वृक्ष, लबानोन के चुने हुए और सर्वात्तम वृक्ष जो जल से सिंचित होते हैं, अधोलोक में प्रसन्न होंगे।

17 उसके साथ वे लोग भी उनके पास अधोलोक जायेंगे, जिन्हें तलवार के घाट उतारा गया है। वे, जो राष्ट्रों के बीच उसकी छाया में निवास करते थे, नष्ट हो जायेंगे।

18 तो तुम महिमा और महानता में अदन के वृक्षों में किसके सदृश हो? तुम अदन के वुक्षों के साथ अधोलोक में ढकेल दिये जाओगे। तुम बेखतना और तलवार के घाट उतारे हुए लोगों के बीच पड़े रहोगे। “फिराउन और उसकी विशाल प्रजा का हाल यही होगा। -यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।”

एज़ेकिएल 32

1 बाहरवें वर्ष के बारहवें महीने के पहले दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी:

2 “मानवपुत्र! मिस्र के राजा फ़िराउन के विषय में यह शोकगीत गाते हुए उस से कहोः तुम अपने को राष्ट्रों में युवा सिंह समझते हो; तुम समुद्र के पंखदार सर्प-जैसे हो। तुम अपनी ही नदियों में छपछपाते हो, अपने पैरों से जल कँपाते और उनकी नदियों को गँदला करते हो।

3 प्रभु-ईश्वर यह कहता है: विभिन्न जातियों के समूह के बीच मैं तुम पर अपना जाल फैलाऊँगा और तुम्हें फन्दे में फँसा कर खींच लूँगा।

4 मैं तुम्हें ज़मीन पर पटक दूँगा, खुले खेतों में फेंक दूँगा। मैं आकाश के सभी पक्षियों को तुम पर बैठाऊँगा और समस्त पृथ्वी के पशुओं को तुम्हें खा कर तृप्त हो जाने दूँगा।

5 मैं तुम्हारा मांस पर्वतों पर बिखेर दूँगा और तुम्हारे शव से घाटियों को भर दूँगा।

6 मैं पर्वतों के ऊपर तक की भूमि को तुम्हारे बहते हुए रक्त से सींच दूँगा और जलमार्ग तुम से भर जायेंगे।

7 तुम्हें मिटान के बाद आकाश को ढ़ँक दूँगा और उसके तारों को ज्योतिहीन बना दूँगा; मैं सूर्य को मेघों से आच्छादित करूँगा और चन्द्रमा प्रकाशहीन हो जायेगा।

8 मैं आकाश के सभी ज्येतिपिण्डों को तुम्हारे कारण धुँधला दूँगा। और तुम्हारे देश पर अन्धकार फैलाऊँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

9 “जब मैं राष्ट्रों में, तुम्हारे लिए अनजान देशों में, तुम को बन्दी बना कर ले जाऊँगा, तो मैं अनेकानेक जातियों के हृदय में बेचैनी भर दूँगा

10 जब मैं उनके सामने अपनी तलवार चलाने लगूँगा, तो तुम को देख कर बहुत-सी जातियाँ डर जायेंगी और तुम्हारे कारण उनके राजा काँपने लगेंगे। तुम्हारे पतन के दिन उन में से प्रत्येक अपनी प्राणों के भय से हर क्षण काँपेगा।

11 प्रभु-ईश्वर का यह कहना है: तुम पर बाबुल के राजा की तलवार टूट पडेगी।

12 मैं उन शक्तिशाली लोगों की तलवार से, जो राष्ट्रों में सब से अधिक भयानक हैं, तुम्हारे जनसमूह का वध कराऊँगा। वे मिस्र का घमण्ड धूल में मिला देंगे और उसके सभी जनसमूह नष्ट हो जायेंगे।

13 मैं जलाश्यों के पास रहने वाले सब पशुओं का विनाश करूँगा। न तो मनुष्य के पाँव उन्हें फिर कभी हिलायेंगे और न पशुओं के खुर उन को आन्दोलित करेंगे।

14 तब मैं उनके जल को स्वच्छ बना दूँगा और उनकी नदियों को तेल की तरह बहने दूँगा। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

15 जब मैं मिस्र को उजाड़ बना दूँगा और उस में से कुछ भी हैं, उस से उस देश को ख़ाली कर दूँगा, और उस में निवास करने वालों पर आघात करूँगा, तो वे यह जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

16 “यह शोकगीत है, जो गाया जायेगा। इसे राष्ट्रों की पुत्रियाँ गायेंगी। वे इसे मिस्र और इसकी विशाल प्रजा के विषय में गायेंगी यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।“

17 बाहरवें वर्ष के पहले महीने के पन्द्रहवें दिन मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः

18 “मानव पुत्र! मिस्र की विशाल प्रजा के लिए विलाप करो और उन को – उस को और वैभवशाली राष्ट्रों की पुत्रियों को – अधोलोक में उनके साथ उतार दो, जो गर्त्त में चले गये हैं।

19 तुम सौन्दर्य में किस से बढ़ कर हो? नीचे जा कर बेख़तना लोगों के बीच पड़े रहो।’

20 वे उन लोगों के बीच रहेंगे, जो तलवार से मारे गये है और उसके सभी लोग उसके साथ गिर जायेंगे।

21 शक्तिशाली योद्धा और उनके सहायक अधोलोक के भीतर से उनके विषय में यह बोलेंगे, ’वे नीचे आ गये हैं; तलवार से मारे हुए बेख़तना लोग मृत पड़े हैं’।

22 “वहाँ अस्सूर और उसके सभी साथी पड़े हैं; उसके चारों ओर उनकी क़ब्रें हैं, जो तलवार के घाट उतारे जा कर मृत पड़े हैं।

23 जिनकी कब्रें गर्त्त के सुदूर भागों में बनायी गयी हैं और उसके साथी उसकी क़ब्र के चारों ओर रहते हैं। उन में सब-के-सब तलवार के घाट उतारे जा कर मृत पड़े हैं, जो जीवलोक में आतंक मचाये हुए थे।

24 “उसकी कब्र के चारों ओर एलाम और उसकी प्रजा हैं। उन में सब-के-सब तलवार के घाट उतारे जा कर मृत पड़े हैं। वे बेख़तना हो कर अधोलोक जा चुके हैं। वे जीवलोक में आतंक मचाने और गर्त में प्रवेश करने वालों के साथ उपयक्ष भोग रहे हैं।

25 उन्होंने उस को वध किये हुए लोगों के बीच लिटा दिया है, उसके प्रजाजनों के बीच, जिनकी कब्रें उसके चारों ओर हैं। वे सभी बेख़तना हैं और तलवार से मारे गये हैं, क्योंकि उन्होंने जीवलोक में आतंक मचा रखा था। वे उन लोगों के साथ अपयश भोग रहे है,

26 वहाँ मेशक और तूबल अपने सभी लोगों के साथ विद्यमान हैं। उनकी कब्रें उनके चारों ओर हैं। वे सब-के-सब बेख़तने हैं, जो तलवार से मारे गये हैं। वे जीवितों के देश में आतंक मचाते थे।

27 उन्हें प्राचीन काल के मृत महाबली लोगों के बीच स्थान नहीं मिला है, जो अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ अधोलोक गये थे, जिनकी तलवारें उनके मस्तक के नीचे रखी गयी थीं और जिनकी ढालें उनकी अस्थियों के ऊपर रखी हुई हैं; क्योंकि उन महाबली लोगों ने जीवलोक में आतंक मचा रखा था।

28 किन्तु तुम बेखतने लोगों के बीच टुकड़े-टुकड़े किये जाओगे और तलवार से वध किये लोगें के साथ पड़े रहोगे।

29 वहाँ एदोम, उसके राजा और उसके सभी पदाधिकारी हैं, जो अपनी समस्त वीरता के बावजूद उन लोगों के साथ पड़े हैं, जो तलवार से मारे गये थे। वे बेख़तना लोगों के साथ, उन लोगों के साथ पड़े हैं, जो गर्त्त में जाते हैं।

30 “वहाँ उत्तर के सभी पदाधिकारी हैं और सभी सीदोनवासी भी, जो वध किये गये लोगों के साथ अपनी शक्ति द्वारा फैलाये गये आंतक के कारण नीचे गये हैं। वे तलवार से मारे गये लोगों के साथ बेखतना पड़े हैं और उनका अपयश भोगते हैं, जो गर्त्त में जाते हैं।

31 “फिराउन उन्हें देखेगा, तो उसे अपने सभी लोगों के विषय में सान्त्वना मिलेगी – फ़िराउन और उसकी सभी सैनिक तलवार से मारे जायेंगे। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

32 उसने जीवलोक में अपना आंतक फैला रखा था, इसलिए वह-अपने सभी सैनिकों-सहित फिराउन-बेख़तना और तलवार से मारे गये लोगों के बीच डाल दिया जायेगा। यह प्रभु ईश्वर की वाणी है।“

सूक्ति-ग्रन्थ 14: 17-20

17 क्रोधी व्यक्ति मूर्खतापूर्ण आचरण करता है। लोग कपटी मनुष्य से बैर रखते हैं।

18 भोले के भाग्य में मूर्खता बदी है, किन्तु समझदार के सिर पर ज्ञान का मुकुट है।

19 बुरे लोग भलों के सामने झुकेंगे। दुष्ट धर्मियों के फाटकों को दण्डवत् करेंगे।

20 दरिद्र अपने पड़ोसी द्वारा तुच्छ समझा जाता है, किन्तु धनवान् के बहुत मित्र होते हैं।