निर्गमन ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • पवित्र बाईबल
अध्याय 18
1 ईश्वर ने जो कुछ मूसा और अपनी प्रजा इस्राएल के लिए किया था और प्रभु किस प्रकार इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया था, उसके विषय में मूसा के ससुर, मिदयान के याजक, यित्रो ने सुना था।
2 मूसा का ससुर यित्रो मूसा की पत्नी सिप्पोरा को, जिसे मूसा ने उसके दो पुत्रों के साथ अपनी ससुराल भेज दिया था, अपने पास रखा था।
3 दोनों पुत्रों में एक का नाम गेरशोम था, क्योंकि मूसा ने कहा था, ”मैं विदेश में प्रवासी हूँ।”
4 दूसरे का नाम एलीएजर था, क्योंकि उसने कहा था, ”मेरे पिता का ईश्वर मेरा सहायक हुआ और उसने मुझे फिराउन की तलवार से बचा लिया।”
5 मूसा का ससुर यित्रो, उसके पुत्रों और उसकी पत्नी को ले कर उस निर्जन प्रदेश में मूसा के पास आया, जहाँ उसने ईश्वर के पर्वत के पास पड़ाव डाला था।
6 उसने मूसा को कहला भेजा, ”मैं, तुम्हारा ससुर यित्रो, तुम्हारी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को ले कर तुम से मिलने आया हूँ।”
7 मूसा अपने ससुर से मिलने गया। उसने उसे झुक कर प्रणाम किया और उसका चुम्बन किया। उन्होंने एक दूसरे का कुशल-क्षेम पूछा और तम्बू में आये।
8 तब मूसा ने अपने ससुर को वह सब बताया, जो प्रभु ने इस्राएलियों के लिए फिराउन और मिस्रियों के विरुद्ध किया था, मार्ग में किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और प्रभु ने किस प्रकार उनकी रक्षा की थी।
9 यित्रो प्रसन्न हुआ, जब उसने यह सुना कि प्रभु ने इस्राएलियों के साथ कैसे-कैसे उपकार किये और उन्हें किस प्रकार मिस्रियों के हाथ से छुड़ाया था।
10 यित्रो ने कहा, ”वह प्रभु धन्य है, जिसने तुम्हें मिस्रियों और फिराउन के हाथों से बचाया है।
11 मैं अब जान गया हॅँू कि प्रभु सब देवताओं से बड़ा है, क्योंकि उसने लोगों को उन मिस्रियों के हाथों से बचाया है, जिन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया था।”
12 तब मूसा के ससुर यित्रो ने प्रभु को आहुति और बलिदान चढ़ाये। इसके बाद हारून इस्राएलियों के नेताओं के साथ प्रभु के सामने मूसा के ससुर के साथ भोजन करने आया।
13 दूसरे दिन सबेरे मूसा लोगों का न्याय करने के लिए बैठा और लोग मूसा के आस-पास सबेरे से शाम तक खड़े रहे।
14 मूसा के ससुर ने जब यह देखा कि मूसा लोगों के लिए क्या कर रहा है, तो उसने कहा, ”तुम इन लोगों के लिए क्या कर रहे हो? तुम अकेले क्यों बैठे हो और सब लोग सबेरे से शाम तक तुम्हारे आसपास क्यों खड़े हैं?”
15 मूसा ने अपने ससुर को उत्तर दिया, ”ईश्वर क्या चाहता है, यह जानने के लिए लोग मेरे पास आते हैं।
16 उन में कोई झगड़ा हो, तो वे मेरे पास आते हैं और मैं उनका न्याय करता हूँ। मैं उन को ईश्वर के विधान और उसके निर्णय समझाता हूँ।”
17 इस पर मूसा के ससुर ने उस से कहा, ”तुम जो कर रहे हो, वह उचित नहीं हैं।
18 तुम और तुम्हारे आसपास के लोग थक जायेंगे, क्योंकि यह काम तुम्हारे लिऐ बहुत भारी है। तुम अकेले इसे नहीं कर सकते।
19 मेरी बात सुनो। मैं तुम्हें एक परामर्श देता हूँ। ईश्वर तुम्हारे साथ रहे! तुम ईश्वर के सामने लोगों के प्रतिनिधि हो और ईश्वर के सामने उनके मामले रख दिया करो।
20 तुम उन्हें विधियों और निर्णयों को समझा दो और वह मार्ग, जिस पर उन को चलना चाहिए और वे कार्य, जो उन्हें करना चाहिए।
21 लेकिन लोगों के बीच से तुम योग्य, ईश्वर पर श्रद्धा रखने वाले, विश्वासपात्र और घूस न लेने वाले व्यक्तियों को चुनो और उन्हें हज़ार-हज़ार, सौ-सौ, पचास-पचास और दस-दस मनुष्यों की टोली पर शासक के रूप में नियुक्त कर दो। वे हर समय लोगों का न्याय करते रहें।
22 वे हर बड़ा मामला तुम्हारे पास लायें और सब छोटे मामलों का निपटारा स्वयं कर लिया करें। इस तरह तुम्हारे काम में वे हाथ बँटायेगे और तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा।
23 यदि तुम ऐसा करो और ईश्वर की ऐसी आज्ञा हो, तो तुम काम सँभाल लोगे और लोग भी सन्तुष्ट हो कर अपने-अपने घर जायेंगे।”
24 मूसा ने अपने ससुर की सलाह मान ली और उसने जैसा कहा था, वैसा ही किया।
25 मूसा ने सारे इस्राएली लोगों में से योग्य पुरुषों को चुन लिया और उन्हें लोगों के ऊपर प्रधान नियुक्त कर दिया-हज़ार-हज़ार, सौ-सौ, पचास-पचास और दस-दस व्यक्तियों के शासक के रूप में।
26 वे हर समय लोगों का न्याय किया करते थे। वे मूसा के पास सब कठिन मामले लाते थे, लेकिन सब छोटे मामले स्वयं निपटाते थे।
27 इसके बाद मूसा ने अपने ससुर को विदा किया और वह स्वदेश लौट गया।