निर्गमन ग्रन्थ

अध्याय : 12345678910111213141516171819202122 • 232425262728293031323334353637383940पवित्र बाईबल  

अध्याय 37

1 बसलएल ने बबूल की लकड़ी से मंजूषा बनायी। उसकी लम्बाई ढाई-हाथ और उसकी चौड़ाई तथा ऊँचाई डेढ़-डेढ़ हाथ थी।
2 उसने उसे भीतर-बाहर शुद्ध सोने से मढ़ा और उसके चारों ओर एक सोने की किनारी लगायी।
3 उसके चारों पायों में उसने सोने के चार कड़े ढलवा कर लगाये – दो कड़े एक ओर और दो कड़े दूसरी ओर।
4 फिर उसने बबूल की लकड़ी के डण्डे बनाये और उन्हें सोने से मढ़ा
5 और इन डण्डों को मंजुषा के किनारों के कड़ों में डाल दिया, जिससे मंजुषा उठायी जा सके।
6 उसने शुद्ध सोने का छादन-फलक बनाया। उसकी लम्बाई थी ढाई हाथ थी और चौड़ाई डेढ़ हाथ।
7 उसने छादन-फलक के दोनों ओर सोने के गढ़े हुए दो केरूबों को बनाया –
8 एक सिरे पर एक केरूब और दूसरे सिरे पर दूसरा केरूब। ये केरूब और छादन-फलक एक ही धातु-खण्ड के बने थे।
9 उन केरूबों के पंख ऊपर को ऐसे फैले हुए थे कि अपने पंखों में छादन-फलक ढकते थे। वे एक दूसरे के आमने-सामने थे और उनका मुख छादन-फलक की ओर था।
10 इसके बाद उन्होंने बबूल की लकड़ी की मेज़ बनायी, जो दो हाथ लम्बी, एक हाथ चौड़ी और डेढ़ हाथ ऊँची थी।
11 उन्होंने उसे शुद्ध सोने से मढ़ा और उसके चारों ओर सोने की किनारी लगायी।
12 उन्होंने उसके चारों ओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनायी और इस पटरी के चारों ओर सोने की किनारी लगायी।
13 सोने के चार कड़े बना कर उन्होंने उन कड़ों को चारों कोनों में, चारों पायों में लगाया।
14 वे कड़े पटरी के पास ही थे और डण्डों के घरों का काम देते थे, जिससे मेज उनके द्वारा उठायी जा सके।
15 उन्होंने बबूल की लकड़ी के डण्डे बना कर उन्हें सोने से मढ़ा। वे मेज़ उठाने के काम आते थे।
16 उन्होंने शुद्ध सोने का मेज का सामान बनाया, अर्थात् थालियाँ, कलछे, घड़े प्याले। ये अर्घ देने के काम आते थे।
17 इसके बाद उन्होंने शुद्ध सोने का एक दीपवृक्ष बनाया। दीपवृक्ष का पाया, उसकी डण्डी, उसके प्याले, उसकी कलियाँ और फूल – सब एक ही धातु-खण्ड के बने थे।
18 उस में छह शाखाएँ थी। दीपवृक्ष की एक ओर तीन शाखाएँ और दीपवृक्ष की दूसरी ओर तीन शाखएँ थीं।
19 एक शाखा में बादाम की बौंड़ी के आकार के तीन प्याले थे, जिन में एक कली और एक फूल था। दूसरी ओर की शाखा में भी इस प्रकार के तीन प्याले थे। दीपवृक्ष की छहों शाखाओं में ऐसा ही था।
20 दीपवृक्ष में ही बादाम की बौंड़ी के आकार के चार प्याले थे, जिन में एक कली और एक फूल था।
21 दीपवृक्ष से निकली हुई प्रथम शाखा-द्वय के नीचे एक कली थी, दूसरी कली22 शाखाएँ, कलियाँ और दीपवृक्ष-ये सब एक ही धातु-खण्ड के बने थे।
23 उन्होंने दीपवृक्ष के लिए शुद्ध सोने के सात दीपक, गुलतराश और किश्तियाँ बनायीं ।
24 पात्रों के लिए एक मन शुद्ध सोने का उपयोग हुआ।
25 इसके बाद उन्होंने सुगन्धित द्रव्य जलाने के लिए बबूल की लकड़ी की एक वेदी बनायी। वह वर्गाकार थी – एक हाथ लम्बी, एक हाथ चौड़ी और दो हाथ ऊँची। उसके सींग एक ही काष्ठ-खण्ड के बने थे। दूसरी शाखा-द्वय के नीचे थी तीसरी कली तीसरी शाखा-द्वय के नीचे।
26 उन्होंने उसका ऊपरी भाग, उसके चारों पहलू और उसके सींग शुद्ध सोने से मढ़े तथा उसके चारों ओर सोने की किनारी लगायी।
27 उन्होंने सोने के दो कड़े बनाये और उन्हें किनारी के नीचे लगाया। वे डण्डों के घर थे और उन से वेदी उठायी जाती थी
28 उन्होंने उन डण्डों को बबूल की लकड़ी से बनाया और उन्हें सोने से मढ़ा।
29 उन्होंने किसी इतरसाज़ द्वारा अभ्यंजन का पवित्र तेल और शुद्ध सुगन्धित लोबान तैयार करवाया l