लेवी ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • पवित्र बाईबल
अध्याय 14
1 प्रभु ने मूसा से कहा,
2 “किसी चर्मरोगी को शुद्ध घोषित करने के नियम इस प्रकार हैं। लोग उसे याजक के पास ले आयें।
3 याजक उसे शिविर के बाहर ले जाये और उसकी जाँच करे। यदि याजक देखे कि चर्मरोगी स्वस्थ हो गया है,
4 तो उसके शुद्धीकरण के लिए याजक दो शुद्ध जीवित पक्षी, देवदार की लकड़ी, लाल कपड़ा और जूफ़ा मँगवाये।
5 याजक झरने के पानी से भरे पात्र के ऊपर एक पक्षी का वध करे।
6 वह जीवित पक्षी को देवदार की लकड़ी, लाल कपड़े और जूफ़ा को उस पक्षी के रक्त में डुबा दे, जिसका वध झरने के पानी के ऊपर किया गया है।
7 इसके बाद वह शुद्धीकरण चाहने वाले व्यक्ति पर सात बार वह पानी छिड़क कर उसे शुद्ध घोषित करे। वह जीवित पक्षी को खुले मैदान में उड़ जाने दे।
8 शुद्धीकरण चाहने वाला व्यक्ति अपने कपड़े धोये और सब बाल मुँड़वा कर जल से स्नान करे। इस प्रकार वह शुद्ध हो जायेगा। इसके बाद वह शिविर में आ सकता है, किन्तु सात दिन तक अपने तम्बू के बाहर रहे।
9 सातवें दिन वह फिर सारे बाल मुँड़वाये, सिर, ठुड्डी और भौहों के सभी बाल मुँड़वा ले, अपने कपड़े धोये और जल से स्नान करे। वह शुद्ध हो जायेगा।
10 “आठवें दिन वह दो अदोष मेमने, एक वर्ष की एक अदोष भेड़ तथा अन्न-बलि के लिए छह सेर तेल-मिश्रित मैदा और आधा सेर तेल लाये।
11 शुद्धीकरण करने वाला याजक उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति और इन सब चीजों को प्रभु के सामने दर्शन-कक्ष के द्वार ले आये।
12 याजक एक मेमना और आधा सेर तेल क्षतिपूर्ति-बलि के रूप में चढ़ाये। वह उन्हें प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करे।
13 तब उस स्थान पर, जहाँ प्रायश्चित-बलि और होम-बलि में वध होता है। वहाँ अर्थात् पवित्र-स्थान पर उस मेमने का वध किया जाये; क्योंकि प्रायश्चित-बलि के समान ही क्षतिपूर्ति-बलि पर याजक का अधिकार है। वह परम-पवित्र है।
14 याजक उस क्षतिपूर्ति-बलि के रक्त में से थोड़ा ले कर शुद्ध किये जाने वाले उस व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाये।
15 तब याजक अपनी बायीं हथेली पर थोड़ा तेल उँडेले और
16 अपने दाहिने हाथ की तर्जनी तेल में डुबो कर, तेल को सात बार प्रभु के सामने छिड़के।
17 याजक हथेली पर का शेष तेल उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर क्षतिपूर्ति-बलि के रक्त के ऊपर ही लगा दे।
18 याजक हथेली का शेष तेल शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के सिर पर लगा दे। इस प्रकार याजक प्रभु के सामने उस व्यक्ति के लिए प्रायश्चित करे।
19 “इसके बाद याजक प्रायश्चित-बलि चढ़ाये और उस शुद्व किये जाने वाले व्यक्ति के लिए प्रायश्चित पूरा करे। फिर वह होम-बलि के पशु का वध करे।
20 इसके बाद याजक होम-बलि और अन्न-बलि वेदी पर चढ़ा दे। इस प्रकार याजक उसके लिए प्रायश्चित-विधि सम्पन्न करे।
21 “लेकिन यदि वह व्यक्ति ग़रीब हो और उतना न दे सके, तो वह क्षतिपूर्ति-बलि के लिए एक मेमना दे, जो प्रायश्चित के रूप में प्रभु के सामने हिला-हिला कर चढ़ाया जाये। वह अन्न-बलि के लिए तेल-मिश्रित दो सेर मैदा और आधा सेर तेल ले आये।
22 और इसके अतिरिक्त दो पण्डुक या दो कबूतर, जो भी मिल सकें – एक प्रायश्चित-बलि के लिए और एक होम-बलि के लिए।
23 आठवें दिन वह यह सब दर्शन-कक्ष के द्वार पर, प्रभु के सामने अपने शुद्धीकरण के लिए याजक के पास ले आये।
24 याजक क्षतिपूर्ति-बलि का मेमना और आधा सेर तेल ले कर उन्हें प्रभु के सामने हिला-हिला कर अर्पित करे।
25 इसके बाद वह क्षतिपूर्ति-बलि के मेमने का वध करे और उसका कुछ रक्त उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाये।
26 तब याजक अपनी बायीं हथेली पर थोड़ा तेल उँडेले और
27 अपने दाहिने हाथ की तर्जनी से तेल को सात बार प्रभु के सामने छिड़के।
28 तब याजक अपनी हथेली पर का कुछ तेल उस शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाहिने कान की लौ, उसके दाहिने हाथ के अँगूठे और उसके दाहिने पाँव के अँगूठे पर क्षतिपूर्ति-बलि के रक्त के ऊपर ही लगा दे।
29 याजक हथेली का शेष तेल शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के सिर पर लगा दे। इस प्रकार वह प्रभु के सामने उस व्यक्ति के लिए प्रायश्चित करे।
30 इसके बाद वह पण्डुकों या कबूतरों में से एक, जो भी मिल सके,
31 क्षतिपूर्ति-बलि के रूप में चढ़ाये और अन्न-बलि के साथ दूसरा पक्षी होम-बलि के रूप में। इस प्रकार याजक शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के लिए प्रायश्चित-विधि सम्पन्न करे।
32 वह विधि केवल उस चर्मरोगी के लिए है, जो अपने शुद्धीकरण का पूरा ख़र्च नहीं दे सकता है।”
33 प्रभु ने मूसा और हारून से कहा,
34.”जब तुम कनान देश पहुँचोगे, जिसे मैं तुम्हारे अधिकार में देता हूँ, तब यदि मैं वहाँ किसी व्यक्ति के घर में फफूंदी लगने देता हूँ,
35 तो घर का मालिक याजक के पास जा कर यह कहते हुए इसकी सूचना, ‘मेरे घर में फफूंदी की-सी बीमारी दिखाई देती है।’
36 तब याजक आदेश दे कि उसके द्वारा जाँच के पहले ही उस घर को ख़ाली किया जाये, जिससे घर का सारा सामान अशुद्ध घोषित होने से बच जाये। इसके बाद याजक उस घर की जाँच करने के लिए घर के भीतर जाये।
37 यदि याजक जाँच करते समय देखे कि घर की दीवारों पर हरे और लाल दाग़ पड़े हैं जो दीवारों की भीतर तक दिखाई दे रहे हैं
38 तो वह घर से निकल कर सात दिन के लिए घर बन्द कर दे।
39 सातवें दिन याजक फिर आये और यदि जाँच करते समय देखे कि घर की दीवारों पर लगे दाग़ और अधिक फैल गये हैं,
40 तो वह आदेश दे कि दाग़ लगे पत्थर निकाल दिये जायें और उसे नगर के बाहर किसी अशुद्ध स्थान पर फेंक दिये जायें।
41 घर के चारों ओर की दीवारों का पलस्तर निकाल दिया जाये और उसे नगर के बाहर किसी अशुद्ध स्थान पर फेंक दिया जाये।
42 तब उन पत्थरों की जगह दूसरे पत्थर लगाये जायें और और दूसरा पलस्तर भी लगाया जायें।
43 “यदि पत्थर और पलस्तर के निकाल देने और नया पलस्तर लगाने के बाद भी उस घर में फिर वैसे ही दाग़ दिखाई देने लगें
44 तो याजक फिर उसकी जाँच करने आये। यदि वह देखे कि वे दाग़ घर में बहुत अधिक फैल गये है, तो उस घर में विषालु फफूंदी है। वह अशुद्व है।
45 वह घर तोड़ दिया जाये। उसके पत्थर, उसकी बल्लियाँ, घर का सारा पलस्तर, सब कुछ नगर के बाहर किसी अशुद्ध स्थान पर फेंक दिया जाये।
46 जो उस घर में, उसके बन्द रहने के समय, किसी दिन प्रवेश करेगा, वह शाम तक अशुद्ध रहेगा।
47 जो उस घर में सोयेगा, वह अपने कपड़े धो डाले और जो उस घर में भोजन करेगा, वह भी अपने कपड़े धो डाले।
48 “यदि याजक फिर उसकी जाँच करने पर देखे कि घर की दीवारों पर, नया पलस्तर करने के बाद, दाग़ घर में अधिक नहीं फैले हैं, तो याजक उस घर को शुद्ध धोषित करे; क्योंकि उस में फफूंदी नहीं रही।
49 उस घर के शुद्धीकरण के लिए वह दो पक्षी, देवदार की लकड़ी, लाल कपड़ा और ज़ूफ़ा लाये।
50 वह झरने के पानी से भरे पात्र के ऊपर एक पक्षी का वध करे।
51 वह जीवित पक्षी को, देवदार की लकड़ी, लाल कपड़े और ज़ूफ़ा को उस पक्षी के रक्त में डुबा दे, जिसका वध पानी के ऊपर किया गया है और घर पर सात बार वह पानी छिड़के।
52 इस प्रकार वह पक्षी के रक्त, झरने के पानी, जीवित पक्षी, देवदार की लकड़ी, ज़ूफ़ा और लाल कपड़े से वह घर शुद्ध करता है। वह उस जीवित पक्षी को नगर से बाहर खुले मैदान में उड़ जाने दे।
53 इस प्रकार वह उस घर का प्रायश्चित सम्पन्न करेगा और वह शुद्ध हो जायेगा।
54 ”सब प्रकार के चर्मरोग,खाज,
55 वस्तुओं और घरों में लगी फफूंदी,
56 सूजन, पपड़ी और सफ़ेद दागों के विषय में विविध नियम यही है।
57 इनके द्वारा तुम किसी वस्तु को शुद्ध या अशुद्व घोषित करोगे। वह चर्मरोग-सम्बन्धी विधि है।”