इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत लूइस / संत यूसुफ कलासांक्त
📒पहला पाठ- 1 थेसलनीकियों 1:1-5, 8-10
1 पिता-परमेश्वर और प्रभु ईसा मसीह पर आधारित थेसलनीकियों की कलीसिया के नाम पौलुस, सिल्वानुस और तिमथी का पत्र। आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति!
2 (2-3 जब-जब हम आप लोगों को अपनी प्रार्थनाओं में याद करते हैं, तो हम हमेशा आप सब के कारण ईश्वर को धन्यवाद देते है। आपका सक्रिय विश्वास, प्रेम से प्रेरित आपका परिश्रम तथा हमारे प्रभु ईसा मसीह पर आपका अटल भरोसा- यह सब हम अपने ईश्वर और पिता के सामने निरन्तर स्मरण करते हैं।
4 भाइयो! ईश्वर आप को प्यार करता है। हम जानते हैं कि ईश्वर ने आप को चुना है,
5 क्योंकि हमने निरे शब्दों द्वारा नहीं, बल्कि सामर्थ्य, पवित्र आत्मा तथा दृढ़ विश्वास के साथ आप लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया। आप लोग जानते हैं कि आपके कल्याण के लिए हमारा आचरण आपके यहाँ कैसा था।
8 आप लोगों के यहाँ से प्रभु का सुसमाचार न केवल मकेदूनिया तथा अखैया में फैला, बल्कि ईश्वर में आपके विश्वास की चर्चा सर्वत्र हो रही है। हमें कुछ नहीं कहना है।
9 लोग स्वयं हमें बताते है। कि आपके यहाँ हमारा कैसा स्वागत हुआ और आप किस प्रकार देवमूर्तियाँ छोड़ कर ईश्वर की ओर अभिमुख हुए,
10 जिससे आप सच्चे तथा जीवन्त ईश्वर के सेवक बनें और उसके पुत्र ईसा की प्रतीक्षा करें, जिन्हें ईश्वर ने मृतकों में से जिलाया। यही ईसा स्वर्ग से उतरेंगे और हमें आने वाले प्रकोप से बचायेंगे।
📙सुसमाचार – मत्ती 23:13-22
13 “ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग का राज्य बन्द कर देते हो।
14 तुम स्वयं प्रवेश नहीं करते और जो प्रवेश करना चाहते हैं, उन्हें रोक देते हो।
15 “ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! एक चेला बनाने के लिए तुम जल और थल लाँघ जाते हो और जब वह चेला बन जाता है, तो उसे अपने से दुगुना नारकी बना देते हो।
16 “अन्धे नेताओं! धिक्कार तुम लोगों को! तुम कहते हो- यदि कोई मन्दिर की शपथ खाता है, तो इसका कोई महत्व नहीं; परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की शपथ खाता है, तो वह बँध जाता है।
17 मूर्खों और अन्धों! कौन बड़ा है- सोना अथवा मन्दिर, जिस से वह सोना पवित्र हो जाता है?
18 तुम यह भी कहते हो- यदि कोई वेदी की शपथ खाता है, तो इसका कोई महत्व नही; परन्तु यदि कोई वेदी पर रखे हुए दान की शपथ खाता है, तो वह बँध जाता है।
19 अन्धो! कौन बड़ा है- दान अथवा वेदी, जिस से वह दान पवित्र हो जाता है?
20 इसलिए जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी और उस पर रखी हुई चीज़ों की शपथ खाता है।
21 जो मन्दिर की शपथ खाता है, वह उसकी और उस में निवास करने वाले की शपथ खाता है
22 और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह ईश्वर के सिंहासन और उस पर बैठने वाले की शपथ खाता है।