छब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: आसीसी के संत फ्रांसिस


📒पहला पाठ- बारूक 4: 5-12, 27-29

5 मेरी प्रजा! ढारस रखो। तुम इस्राएल का नाम बनाये रखती हो।

6 तुम विनाश के लिए गैर-यहूदियों के हाथ नहीं बिकी हो। तुमने ईश्वर का क्रोध भड़काया था, इसलिए तुम अपने शत्रुओं के हवाले कर दी गयी।

7 तुमने अपने सृष्टिकर्ता को अप्रसन्न किया; क्योंकि तुमने ईश्वर को नहीं बल्कि देवताओं को बलि चढ़ायी थी।

8 तुमने शाश्वत ईश्वर को भुला दिया, जो तुम्हें भोजन दिया करता था। तुमने येरूसालेम को दुःख पहुँचाया, जिसने तुम्हारा पालन किया है।

9 येरूसालेम ने ईश्वर का क्रोध तुम पर आते देखा और कहा, “सियोन की पड़ोसिनो! मेरी बात सुनो! ईश्वर ने मुझ पर बड़ा शोक भेजा।

10 मैंने देखा कि शाश्वत ईश्वर ने मेरे पुत्र-पुत्रियों को बन्दी बना कर निर्वासित किया है।

11 मैंने आनन्दित हो कर उनका पालन-पोषण किया, किन्तु मैंने उन को आँसू बहाते हुए और दुःखी हो कर जाते हुए देखा।

12 मैं विधवा तथा सब से परित्यक्ता हूँ- कोई मेरा उपहास न करे। मैं अपनी प्रजा के पापों के कारण अकेली रह गयी हूँ, क्योंकि उसने ईश्वर की संहिता का मार्ग छोड़ दिया है।

27 मेरे बच्चों! ढारस रखो। ईश्वर की दुहाई दो; क्योंकि जिसने यह सब तुम पर आने दिया, वही तुमहारी सुध लेगा।

28 तुमने पहले ईश्वर से दूर हो जाने की बात सोची थी। अब दस गुने उत्साह से उसके पास लौटने की चेष्टा करो;

29 क्योंकि जिसने तुम पर इन विपत्तियों को आने दिया, वही तुम्हारा उद्धार कर तुम्हें अनन्त आनन्द प्रदान करेगा।“


📙सुसमाचार – लूकस 10: 17-24

17 बहत्तर शिष्य सानन्द लौटे और बोले, “प्रभु! आपके नाम के कारण अपदूत भी हमारे अधीन होते हैं”।

18 ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने शैतान को बिजली की तरह स्वर्ग से गिरते देखा।

19 मैंने तुम्हें साँपों, बिच्छुओं और बैरी की सारी शक्ति को कुचलने का सामर्थ्य दिया है। कुछ भी तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकेगा।

20 लेकिन, इसलिए आनन्दित न हो कि अपदूत तुम्हारे अधीन हैं, बल्कि इसलिए आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।”

21 उसी घड़ी ईसा ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर आनन्द के आवेश में कहा, “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है। हाँ, पिता, यही तुझे अच्छा लगा

22 मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र को छोड़ कर यह कोई नहीं जानता कि पिता कौन है। केवल वही जानता है, जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करता है।”

23 तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर मुड़ कर एकान्त में उन से कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो वह देखती हैं जिसे तुम देख रहे हो!

24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ – तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और राजा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और जो बातें तुम सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना।”