सत्ताईसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत जोन 23वें
📒पहला पाठ- योएल 4: 13-21
13 हँसिया चलाओ, क्योंकि फसल पक चुकी है। आओ और अंगूर रौंदो, क्योंकि कोल्हू परिपूर्ण है। कुण्ड लबालब भरे हुए हैं, क्योंकि राष्ट्रों की दुष्टता अपार है।
14 विचार की घाटी में लोगों की भारी भीड लग रही है, क्योंकि विचार की घाटी में प्रभु का दिन निकट आ गया है।
15 सूर्य और चन्द्रमा अंधकारमय होते जा रहे हैं और नक्षत्रों की ज्योति बुझ रही है।
16 प्रभु-सियोन से गरज रहा है, येरूसालेम से उसकी आवाज ऊँची उठ रही है; स्वर्ग और पृथ्वी कांप रहे हैं। किन्तु प्रभु अपनी प्रजा क ेलिए आश्रय सिद्ध होगा, इस्राएलियों के लिए सुदृढ़ गढ होगा।
17 “उस दिन तुम जान जाओगे कि मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ, जो अपने पवित्र पर्वत सियोन पर निवास करता है। येरूसालेम पवित्र होगा और विदेशी उसे फिर पान नहीं करेंगे।”
18 उस दिन पर्वतों से अंगूरी टपकेगी, पहाडियों से मधु की धाराएँ फूट निकलेंगी और यहूदियों की सब नदियों में भरूपूर पानी होगा, क्योंकि प्रभु के मंदिर में से एक जलस्रोत बह निकलेगा, जो बाबुल की घाटी को सींचेगा।
19 मिस्र ऊसर हो जायेगा और एदोम मरुभूमि, क्योंकि उन्होंने यूदा के पुत्रों के साथ अत्याचार किया और अपने देश में उनका निर्दोष रक्त बहाया।
20 किन्तु यहूदिया सदैव बसी रहेगी और येरूसालेम युग-युग आबाद रहेगा।
21 “मैं उनके रक्त को बदला लूँगा, वह अदण्डित नहीं रहेगा’; क्योंकि प्रभु सियोन में निवास करता रहेगा।
📙सुसमाचार – लूकस 11: 27-28
27 ईसा ये बातें कह ही रहे थे कि भीड़ में से कोई स्त्री उन्हें सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर में बोल उठी, “धन्य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है!
28 परन्तु ईसा ने कहा, “ठीक है; किन्तु वे कहीं अधिक धन्य हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं”।