विधि-विवरण ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • पवित्र बाईबल
अध्याय 10
1 “उस समय प्रभु ने मुझ से कहा, ’तुम पहली पाटियों की तरह पत्थर की दो पाटियाँ कटवाओ और मेरे पास पर्वत पर लाओ। लकड़ी की मंजूषा भी बनवाओ।
2 मैं पाटियों पर वही शब्द लिखूँगा, जो उन पहली पाटियों पर अंकित थे, जिन्हें तुमने तोड़ दिया। इसके बाद तुम उन्हें मंजूषा में रख लोगे।’
3 इस पर मैंने बबूल की लकड़ी की एक मंजूषा बनवायी और पहले की उन पाटियों की तरह ही पत्थर की दो पाटियाँ कटवायीं। फिर मैं पत्थर की वे दोनों पाटियाँ हाथों में लिये पर्वत पर चढ़ा।
4 प्रभु ने उन पाटियों पर वही लिखा, जो उसने पहले लिखा था, अर्थात् वे दस आज्ञाएँ, जिन्हें उसने तुम्हारे समुदाय को अग्नि में से पर्वत पर सुनाया था और प्रभु ने उन्हें मुझे दिया।
5 तब मैं मुड़ कर पर्वत से नीचे उतरा था और मैंने उन पाटियों को अपनी बनवायी उस मंजूषा में रखा था। उस में वे आज तक सुरक्षित हैं, जैसी कि प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी।
6 (बने-याकान के कुओं के पास से इस्राएली मोसेरा की ओर चल दिये थे। वहाँ हारून की मृत्यु हुई और वह वहाँ दफ़नाया गया। उसके स्थान पर उसका पुत्र एलआज़ार याजकीय कार्य करने लगा था।
7 वहाँ से उन्होंने गुदगोदा की ओर प्रस्थान किया और गुदगोदा से योटबाता की ओर, जहाँ बहुत-सी जलधाराएँ हैं।
8 उस समय प्रभु ने लेवी के वंश को नियुक्त किया, जिससे – जैसा कि वह अब तक करता आया है – वह प्रभु के संविधान की मंजूषा ले जाया करे, प्रभु की सेवा के लिए उसके सम्मुख उपस्थित रहे और उसके नाम पर आशीर्वाद दे।
9 लेवीवंशियों को अपने भाइयों के साथ विरासत में भाग नहीं मिला है। प्रभु ही उनकी विरासत है, जैसे की उसने प्रतिज्ञा की है।)
10 “पहली बार की तरह ही मैं चालीस दिन और चालीस रात पर्वत पर रहा। इस बार भी प्रभु ने मेरी प्रार्थना स्वीकार की। प्रभु तुम्हारा सर्वनाश करना नहीं चाहता था।
11 इसके बाद प्रभु ने मुझे यह आज्ञा दी थी, ‘लोगों के नेता बन कर उनके आगे-आगे चलो, जिससे वे वह देश अपने अधिकार में लें, जिसे उन्हें देने का वचन मैंने शपथपूर्वक उनके पूर्वजों को दिया था।“
12 मूसा ने लोगों से कहा, “इस्राएल! तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम से क्या चाहता है? वह यही चाहता है कि तुम अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखो, उसके सब मार्गों पर चलते रहो, उसे प्यार करो, सारे हृदय और सारी आत्मा से अपने प्रभु-ईश्वर की सेवा करो और
13 प्रभु के उन सब आदेशों तथा नियमों का पालन करो, जिन्हें मैं आज तुम्हारे कल्याण के लिए तुम्हारे सामने रख रहा हूँ।
14 आकाश, सर्वोच्च आकाश, पृथ्वी और जो कुछ उस में है – यह सब तुम्हारे प्रभु -ईश्वर का है।
15 फिर भी प्रभु ने तुम्हारे पूर्वजों को प्यार किया और उन को अपनाया है। उनके बाद उसने उनके वंशजों को, अर्थात् तुम को सभी राष्ट्रों में से अपनी प्रजा के रूप में चुन लिया, जैसे कि तुम आज हो।
16 अपने हृदयों का ख़तना करो और हठधर्मी मत बने रहो;
17 क्योंकि तुम्हारा प्रभु ईश्वर ईश्वरों का ईश्वर तथा प्रभुओं का प्रभु है। वह महान् शक्तिशाली तथा भीषण ईश्वर है। वह पक्षपात नहीं करता और घूस नहीं लेता।
18 वह अनाथ तथा विधवा को न्याय दिलाता है, वह परदेशी को प्यार करता और उसे भोजन-वस्त्र प्रदान करता है।
19 तुम परदेशी को प्यार करो, क्योंकि तुम लोग भी मिस्र में परदेशी थे।
20 तुम अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे, उसकी सेवा करोगे, उस से संयुक्त रहोगे और उसके नाम की शपथ लोगे।
21 तुम को उसकी स्तुति करनी चाहिए। वह तुम्हारा ईश्वर है। उसने तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे लिए महान् तथा विस्मयकायी कार्य सम्पन्न किये हैं।
22 जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र में आए, तो उनकी संख्या सत्तर ही थी और अब तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम लोगों को आकाश के तारों की तरह असंख्य बना दिया है।