मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ
अध्याय 10
1 मक्काबी और उसके आदमियों ने प्रभु की सहायता से मन्दिर और नगर पर फिर अधिकार कर लिया।
2 गै़र-यहूदियों ने चौराहे पर जो अन्य वेदियाँ बनवायी थीं, उन्होंने उन्हें गिरा दिया और अन्य पूजास्थानों का भी विनाश कर दिया।
3 उन्होंने मन्दिर के शुद्धीकरण के बाद एक नयी वेदी बनायी, चक़मक़ पत्थरों से आग निकाली और उस से बलि जलायी, जिसे वे दो साल के अन्तराल के बाद चढ़ा सके। उन्होंने धूप चढ़ायी, दीप जलाये और भेंट रोटियाँ रखीं।
4 इसके बाद उन्होंने मुँह के बल गिर कर प्रभु से प्रार्थना की कि वह भविष्य में उन पर फिर कभी ऐसी विपत्तियाँ न पड़ने दे। यदि वे फिर कभी पाप करें, तो वह उन्हें अपनी दया के अनुरूप दण्ड दिलाये, किन्तु उन्हें विधर्मी और बर्बर गै़र-यहूदियों के हाथ फिर कभी नहीं पड़ने दे।
5 जिस दिन मन्दिर ग़ैर-यहूदियों द्वारा अपवित्र किया गया, ठीक उसी दिन मन्दिर का शुद्धीकरण भी किया गया, अर्थात् किसलेव मास के पच्चीसवें दिन।
6 शिविर-पर्व की विधि के अनुसार वे आठ दिन उल्लास के साथ उत्सव मनाते रहे और यह याद करते रहे कि कैसे थोड़े ही समय पहले वे पहाड़ियों और गुफाओं में शिविर-पर्व मना रहे थे, मानो वे जंगली जानवर हों।
7 वे अपने हाथ में सजे हुए डण्डे, हरी टहनियाँ और खजूर की डालियाँ लिये रहते थे और उसके आदर में भजन गाते थे, जिसने अपने मंदिर का शुद्धीकरण सम्पन्न कराया था।
8 उन्होंने सर्वसम्मति से एक राजाज्ञा निकाली कि सारी यहूदी जाति प्रति वर्ष मन्दिर के शुद्धीकरण का पर्व मनायेगी।
9 ये हैं अन्तियोख एपीफा़नेस की मृत्यु के समय की घटनाएँ।
10 अब हम उन घटनाओं का वर्णन करेंगे, जो उस दुष्ट के पुत्र अन्तियोख यूपातोर के राज्यकाल में हुई। हम संक्षेप में उस समय के युद्धों की विपत्तियों का वर्णन करेंगे।
11 राजपद ग्रहण करते ही अन्तियोख यूपातोर ने लीसियस को प्रमुख शासक के रूप में नियुक्त किया, जो केले-सीरिया और फे़नीके का राज्यपाल था।
12 पतोलेमेउस, जो माक्रोन कहलाता है, यहूदियों के साथ किये हुए अधर्म के कारण उनके प्रति न्याय-संगत और शान्तिपूर्ण व्यवहार करना चाहता था।
13 इसलिए दरबारियों ने यूतापोत से उसकी शिकायत की। इसके सिवा उसके सुनने में बार-बार आता था कि लोग उसे विश्वासघाती कहते हैं, क्योंकि उसने साइप्रस छोड़ दिया, जिसे फि़लोमेतोर ने उसे सौंपा था और वह अन्तियोख एपीफ़ानेस के पक्ष में चला गया था। जब उसने देखा कि वह सम्मान के साथ अपना कार्य-भार नहीं सँभाल सका, तो उसने विष पी कर आत्महत्या कर ली।
14 जब गोरगियस उन प्रान्तों का शासक बना, तो उसने किराये के सैनिक इकट्ठे किये और वह सर्वत्र यहूदियों के विरुद्ध लड़ने का अवसर ढूँढ़ता रहा।
15 उसी समय इदूमैयावासी भी, जिनके हाथ कई उपयुक्त स्थानों पर गढ़ थे, यहूदियों को तंग करते थे। ये येरुसालेम से निर्वासित लोगों को शरण देते और युद्ध जारी रखने का प्रयत्न करते थे।
16 मक्काबी के आदमियों ने सामूहिक प्रार्थना में ईश्वर से निवेदन किया कि वह उनका सहायक बने और इसके बाद उन्होंने इदूमैया के गढ़ों पर आक्रमण कर दिया।
17 उन्होंने उन पर जोरदार चढ़ाई की और उन गढ़ों को अधिकार में कर लिया। जो लोग दीवारों पर से उन से लड़ते थे, उन्होंने उन्हें भगा दिया और जिन लोगों को पकड़ा, उन्हें तलवार के घाट उतारा। इस प्रकार उन्होंने कम-से-कम बीस हज़ार आदमियों का वध किया।
18 लगभग नौ हज़ार लोगों ने दो ऐसे बडे़ बुर्जों में शरण ली, जहाँ वह सब कुछ था, जिसके सहारे वे घेरे का सामना कर सकते थे।
19 मक्काबी ने वहाँ घेरा डालने सिमोन, यूसुफ़ और जखेयस को बहुत-से आदमियों के साथ वहाँ छोड़ दिया। वह खुद ऐसे स्थान पर चला गया, जहाँ उसकी अधिक आवश्यकता थी।
20 लेकिन सिमोन के आदमियों ने, जो पैसे के लालची थे, उन लोगों से घूस ली, जो बुर्जों में पडे़ थे। उन्होंने सत्तर हज़ार सिक्के ले कर कुछ लोगों को बाहर जाने दिया।
21 जैसे ही मक्काबी को इस बात का पता चला, उसने जनता के नेताओं को बुलाया और उन पर यह अभियोग लगाया कि उन्होंने पैसे के लोभ में अपने भाइयों को बेच दिया और उनके शत्रुओं को हाथ से निकल जाने दिया।
22 उसने उन विश्वासघातियों को प्राणदण्ड दिया और शीघ्र ही उन बुर्जों को अपने अधिकार में कर लिया।
23 उसे लड़ाई में अपूर्व सफलता मिली और उसने उन बुर्जों में बीस हज़ार से अधिक आदमियों का वध किया।
24 तिमोथेव ने, जो पहले यहूदियों से पराजित हो गया था, विदेशी सैनिकों की एक बड़ी सेना और एशिया से बहुत-से घोड़े एकत्रित किये। वह शस्त्रों के बल पर यहूदिया को अपने अधिकार में करना चाहता था।
25 वह पास आ ही रहा था कि मक्काबी के आदमियों ने ईश्वर से सहायता की प्रार्थना की। उन्होंने सिर पर राख डाली, टाट के वस्त्र ओढे़
26 और वेदी के सामने मुँह के बल गिर कर ईश्वर से प्रार्थना की कि वह उनके अनुकूल हो और संहिता के कथन के अनुसार उनके शत्रुओं का शत्रु और उनके विरोधियों का विरोधी प्रारमाणित हों।
27 उन्होंने प्रार्थना समाप्त कर हथियार उठाये और नगर से काफ़ी दूर निकल गये। वे शत्रु के पास आ कर रुक गये।
28 पौ फटने पर दोनों सेनाएँ एक दूसरे से लड़ने लगीं। कुशल-क्षेम और विजय के लिए एक दल को अपनी वीरता के सिवा ईश्वर का भरोसा था, दूसरे दल को लड़ने के अपने उत्साह का!
29 जब लड़ाई का रूप विकट हो गया, जो शत्रुओं ने देखा कि भड़कीले वस्त्र पहने ऐसे पाँच घुड़सवार आकाश से उतरे, जिनके घोड़ों की लगामें सोने की थीं। वे घुड़सवार यहूदी सेना के आगे-आगे चलने लगे।
30 वे मक्काबी को अपने बीच में ले चले और अपने शस्त्रों से उसकी रक्षा करते रहे, जिससे वह घायल न हो। वे शत्रु पर तीर चलाते और वज्रपात करते रहे, जिससे उनके सैनिकों की आँखों चौंधिया गयीं और वे आतंकित हो कर पीछे हट गये।
31 उनके बीस हज़ार पाँच सौ पैदल सैनिक और छः सौ घुड़सवार मारे गये।
32 तिमोथेव ने गेजे़र नामक एक सुदृढ़ गढ़ में शरण ली, जिसका नायक खरैअस था।
33 मक्काबी के आदमी चार दिन तक बडे़ उत्साह से उस गढ़ को घेरे रहे।
34 जो लोग भीतर थे, उन्हें उस स्थान की ईश क़िलाबन्दी का भरोसा था और वे घोर ईश निन्दा और अशोभनीय शब्दों का प्रयोग करते रहे।
35 जब पाँचवाँ दिन आया, तो मक्काबी के दल के बीस नौजवान ईशनिन्दा के कारण उत्तेजित हो कर अदम्य साहस और जंगली जानवरों-जैसे क्रोध के आवेश में दीवार पर टूट पडे़ और जो भी मिले, उन्हें मार गिराया।
36 एक दूसरे दल ने उसी प्रकार पीछे की ओर से आक्रमण किया, बुर्जों में आग लगायी और शत्रुओं को जीवित जला दिया। एक तीसरे दल ने फाटक तोड़ दिये, जिससे शेष सेना घुस कर नगर को अपने अधिकार में कर सकी।
37 उन्होंने तिमोथेव को मार डाला, जो उस समय एक अन्धे कुएँ में छिप गया था और उसके भाई खैरअस तथा अपल्लोफ़ानेस को भी।
38 इसके बाद उन्होंने भजन गाते और प्रार्थना करते हुए प्रभु को धन्यवाद दिया, जिसने इस्राएल के साथ इतना बड़ा उपकार किया और उन्हें विजय दिलायी थी।