अय्यूब(योब) का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42
अध्याय 36
1 एलीहू ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा:
2 थोड़ी देर और धैर्य से मेरी बात सुनो। मुझे ईश्वर के पक्ष में तुम को कुछ और कहना है।
3 अपने सृष्टिकर्ता का व्यवहार न्यायसंगत सिद्ध करने मैं दूर-दूर से ज्ञान संचित करूँगा।
4 मेरी बातों में निश्चत ही असत्य नहीं है। तुम्हारे सामने वह है, जो पूरी जानकारी रखता है।
5 ईश्वर सर्वशक्तिमान् है किन्तु वह मनुष्यों को तुच्छ नहीं समझता। वह शक्तिशाली है और उसके निर्णय सुदृढ़ हैं।
6 वह दुष्टों को जीवित नहीं छोड़ता, किन्तु पददलितों को न्याय दिलाता है।
7 वह धार्मिक लोगों से अपना मुख नहीं छिपाता। वह राजाओं को सिंहासन पर बैठा कर उन्हें सदा के लिए ऊँचा उठता है।
8 किन्तु यदि वे घमण्ड करने लगें, तो वह उन्हें बेड़ियाँ पहनाता और विपत्ति की रस्सियों से बाँधता है;
9 क्योंकि वह उन्हें दिखाना चाहता है कि उन्होंने घमण्ड के कारण कितना घोर पाप किया है।
10 वह उन्हें चेतावनी देता और उन के कुमार्ग छोड़ने का अनुरोध करता है।
11 यदि वे उसकी बात मानकर उसकी अधीनता स्वीकार करते हैं, तो वह अपने दिन सुख-शान्ति में, अपने वर्ष समृद्धि में व्यतीत करेंगे।
12 यदि वे उसकी नहीं मानते, तो तलवार के शिकार बन कर अपने अज्ञान में ही मर जाते हैं।
13 विधर्मी अपने हृदय में विद्वेष पालते हैं और ईश्वर की दुहाई नहीं देते, जब वह उन्हें बेड़ियाँ पहनाता है।
14 वे अपनी जवानी में ही मर जाते हैं। उसका जीवन किशोरावस्था में ही समाप्त हो जाता है।
15 वह दुख द्वारा दुःखियों का उद्धार करता और विपत्ति द्वारा उन्हें शिक्षा देता है।
16 अय्यूब! वह तुम को भी विपत्ति के चंगुल से निकालेगा। वह तुम को ऐसे स्थान पहुँचा देगा, जहाँ तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा, जहाँ तुम्हारी मेज़ पर स्वादिष्ट व्यंजन परोसे जायेंगे।
17 तुम्हें दुष्टों की दण्डाज्ञा दी जायेगी। तुम पर मुकदमा चलाया गया है।
18 तुम दण्ड की आशंका से विद्रोह मत करो। भ्रम में मत रहो। तुम कितने लोगों को घूस दे सकोगे?
19 क्या तुम्हारा धन यह कर पायेगा? नहीं! न तो सोने की सिल्लियाँ और न बलप्रयोग के सभी साधन।
20 तुम लोगों को उनके अपने घर से निकालने के लिए रात की रात मत देखो।
21 बुराई के मार्ग पर पैर मत रखो, क्योंकि तुम बुराई के कारण कष्ट सहते हो।
22 ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर विचार करो। हमें उनके समान कौन शिक्षा दे सकता है?
23 क्या कोई उसके आचरण का निरीक्षण करता? क्या कोई उस से कहता “तुम अन्याय करते हो?”
24 तुम उसकी सृष्टि का स्तुतिगान करो, जिसका गुण मनुष्य ने गाया है।
25 सभी मनुष्य सृष्टि का अवलोकन करते और दूर से उसका निरीक्षण करते हैं।
26 हाँ, हम ईश्वर की महत्ता नहीं समझते। उसके वर्षों की संख्या की गिनती सम्भव नहीं।
27 वह पानी की बूँदें ऊपर खींचता और उसे कुहरे के रूप में टपकता है।
28 बादल जल बरसाते हैं और मनुष्यों के लिए पृथ्वी सींचते हैं।
29 कौन समझता है कि वह किस प्रकार बादल फैलाता और आकाश की ऊँचाई से वज्रपात करता है?
30 देखो, वह चारों ओर बिजली चमकाता और समुद्र की गहराइयाँ भरता है।
31 वह इस प्रकार राष्ट्रों का शासन करता और प्रचुर मात्रा में मनुष्यों को भोजन देता है।
32 वह अपने हाथ बिजली से भरता और उस निशाने पर मारता है।
33 मेघगर्जन उसके आगमन की सूचना देता है। मवेशियों को भी आँधी का पूर्वाभास मिलता है।