स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 28
1 प्रभु! मैं तुझे पुकारता हूँ। मेरी चट्टान! अनसुनी न कर। यदि तू मेरे प्रति मौन रहेगा, तो मैं अधोलोक जाने वालों-जैसा हो जाऊँगा।
2 मैं तेरी दुहाई देता हूँ। तेरे पवित्र मन्दिर की ओर अभिमुख हो कर मैं करबद्ध प्रार्थना करता हूँ, प्रभु! मेरी प्रार्थना सुन।
3 मुझे दृष्टों के साथ घसीट कर न ले जा और न उस कुकर्मियों के साथ, जो अपने पड़ोसी से शान्ति की बात करते हैं, किन्तु जिनका हृदय बुराई से भरा हे।
4 उनके कामों और अपराधों के अनुसार, उनके हाथ के कर्मों के अनुसार उनके साथ व्यवहार कर। उन से उनकी करनी का बदला चुका।
5 वे न प्रभु के कार्यों पर ध्यान देते और न उसके हाथ के कृत्यों पर। वह उनका सर्वनाश करे और फिर कभी उनका निर्माण न करे।
6 धन्य है प्रभु! उसने मेरी पुकार सुनी है।
7 प्रभु मेरा गढ़ है और मेरी ढाल। मेरे हृदय ने उस पर भरोसा रखा और मुझे सहायता मिली है। मेरा हृदय आनन्दित है और मैं गाते हुए उसे धन्यवाद देता हूँ।
8 प्रभु अपनी प्रजा को बल प्रदान करता और अपने अभिषिक्त की रक्षा करता है।
9 अपनी प्रजा की रक्षा कर, अपनी विरासत को आशीर्वाद दे। उसका चरवाहा बन कर उसे सदा सँभाल।