स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 34
2 (1-2) मैं हर समय प्रभु को धन्य कहूँगा; मेरा कण्ठ निरन्तर उसकी स्तुति करेगा।
3 मेरी आत्मा गौरव के साथ प्रभु का गुणगान करती है। दीन-हीन उसे सुन कर आनन्द मनाये।
4 मेरे साथ प्रभु की महिमा का गीत गाओ। हम मिल कर उसके नाम की स्तुति करें।
5 मैंने प्रभु को पुकारा। उसने मेरी सुनी और मुझे हर प्रकार के भय से मुक्त कर दिया।
6 प्रभु की ओर दृष्टि लगाओ, आनन्दित हो; तुम फिर कभी निराश नहीं होगे।
7 दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी। प्रभु ने उसकी सुनी और उसे हर प्रकार के संकट से बचाया।
8 प्रभु का दूत उसके भक्तों के पास डेरा डालता और विपत्ति से उनकी रक्षा करता है।
9 परख कर देखो कि प्रभु कितना भला है। धन्य है वह, जो उसकी शरण जाता है!
10 प्रभु-भक्तो! प्रभु पर श्रद्धा रखो! श्रद्धालु भक्तों को किसी बात की कमी नहीं।
11 धनी लोग दरिद्र बन कर भूखे रहते हैं, प्रभु की खोज में लगे रहने वालों का घर भरा-पूरा है।
12 पुत्रो! आओ और मेरी बात सुनो! मैं तुम्हें प्रभु पर श्रद्धा की शिक्षा दूँगा।
13 तुम में कौन भरपूर जीवन, लम्बी आयु और सुख-शान्ति चाहता है?
14 तो, तुम न अपनी जीभ की बुराई बोलने दो और न अपने होंठों को कपटपूर्ण बातें।
15 बुराई से दूर रहो, भलाई करो और शान्ति के मार्ग पर बढ़ते रहो।
16 प्रभु की कृपादृष्टि धर्मियों पर बनी रहती हैं, वह उनकी पुकार पर कान देता है।
17 प्रभु कुकर्मियों से मुँह फेर लेता और पृथ्वी पर से उनकी स्मृति मिटा देता है।
18 प्रभु दुहाई देने वालों की सुनता और उन्हें हर प्रकार के संकट से मुक्त करता है।
19 प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, प्रभु उन्हें सँभालता है।
20 धर्मी विपत्तियों से घिरा रहता है। किन्तु उन सबों से प्रभु उसे छुड़ाता है।
21 प्रभु उसकी हड्डियाँ की रक्षा करता है। उसकी एक भी हड्डी नहीं रौंदी जायेगी।
22 अधर्म ही विधर्मी को मारता है। धर्मी के बैरियों को दण्ड दिया जायेगा।
23 प्रभु अपने सेवकों की आत्मा का उद्धार करता है। प्रभु की शरण जाने वालों को दण्ड नहीं दिया जायेगा।