स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 53

2 (1-2) मूर्ख लोग अपने मन में कहते हैं: “ईश्वर है ही नहीं”। उनका आचरण भ्रष्ट और घृणास्पद है, उन में कोई भलाई नहीं करता।

3 ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।

4 सब-के-सब भटक गये हैं, सब समान रूप से भ्रष्ट हैं। उनमें कोई भलाई नहीं करता, नहीं, एक भी नहीं।

5 क्या वे कुकर्मी कुछ नहीं समझते? वे भोजन की तरह मेरी प्रजा का भक्षण करते हैं और ईश्वर का नाम नहीं लेते।

6 जहाँ वे थरथर काँपने लगे थे, वहाँ भयभीत होने का कोई कारण नहीं था। प्रभु ने आपके शत्रुओं की हड्डियाँ छितरा दीं; प्रभु ने उनका परित्याग किया था, इसलिए आपने उन्हें अपमानित किया।

7 कौन सियोन पर से इस्राएल का उद्धार करेगा? जब प्रभु अपनी प्रजा के निर्वासितों को लौटा लायेगा, तब याकूब उल्लसित होगा और इस्राएल आनन्द मनायेगा।