स्तोत्र ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • 67 • 68 • 69 • 70 • 71 • 72 • 73 • 74 • 75 • 76 • 77 • 78 • 79 • 80 • 81 • 82 • 83 • 84 • 85 • 86 • 87 • 88 • 89 • 90 • 91 • 92 • 93 • 94 • 95 • 96 • 97 • 98 • 99 • 100 • 101 • 102 • 103 • 104 • 105 • 106 • 107 • 108 • 109 • 110 • 111 • 112 • 113 • 114 • 115 • 116 • 117 • 118 • 119 • 120 • 121 • 122 • 123 • 124 • 125 • 126 • 127 • 128 • 129 • 130 • 131 • 132 • 133 • 134 • 135 • 136 • 137 • 138 • 139 • 140 • 141 • 142 • 143 • 144 • 145 • 146 • 147 • 148 • 149 • 150 • पवित्र बाईबल
स्तोत्र 66
1 समस्त पृथ्वी! ईश्वर का जयकार करो!
2 उसके प्रतापी नाम का गीत गाओ और उसकी महिमा का स्तुतिगान करो।
3 ईश्वर से यह कहो: “तेरे कार्य अपूर्व हैं। तेरे अपार सामर्थ्य को देख कर तेरे शत्रु चाटुकारी करते हैं।
4 समस्त पृथ्वी तुझे दण्डवत् करती है, वह तेरे नाम का स्तुतिगान करती है।”
5 आओ! ईश्वर के कार्यों का ध्यान करो- उसने पृथ्वी पर अपूर्व कार्य किये हैं।
6 उसने समुद्र को स्थल में बदल दिया। उन लोगों ने नदी को पैदल ही पार किया; इसलिए हम उसके नाम पर आनन्द मनायें।
7 वह अपने सामर्थ्य द्वारा सदा शासन करता और राष्ट्रों पर दृष्टि दौड़ाता है, जिससे विद्रोही फिर सिर न उठायें।
8 राष्ट्रों! हमारे ईश्वर को धन्य कहो, उच्च स्वर में उसका स्तृतिगान करो,
9 जिसने हमें जीवन प्रदान किया, जिसने हमारे पैरों को फिसलने नहीं दिया।
10 ईश्वर! तूने हमारी परीक्षा ली और चाँदी की तरह हमारा परिष्कार किया है।
11 तूने हमें जाल में फँसाया और हमें बहुत कष्ट दिलाया।
12 तूने हमारे साथ लद्दू जानवरों-सा व्यवहार होने दिया। हमने आग और पानी में प्रवेश किया; किन्तु तूने हमें निकाल कर सुख-चैन दिया।
13 मैं होम-बलियाँ लिए तेरे मन्दिर में प्रवेश करता हूँ। मैं तेरे लिए वे मन्नतें पूरी करता हूँ,
14 जो संकट के समय मेरे होंठों से निकलीं, जिनका मेरे मुख ने उच्चारण किया।
15 मैं मेढ़ों की सुगन्धित बलि के साथ तुझे मोटे जानवरों की होम-बलि चढ़ाता हूँ। मैं साँड़ और बकरे चढ़ाता हूँ।
16 प्रभु के समस्त श्रद्धालु भक्तों! आओं। मैं तुम्हें बताऊँगा कि उसने मेरे लिए क्या-क्या किया है।
17 मैंने उसे ऊँचे स्वर से पुकारा और उसकी प्रशंसा में गीत सुनाया।
18 यदि मेरे मन में बुराई होती, तो ईश्वर ने मेरी न सुनी होती।
19 किन्तु ईश्वर ने वास्तव में मेरी सुनी, उसने मेरी प्रार्थना पर ध्यान दिया।
20 धन्य है ईश्वर ! उसने मेरी प्रार्थना नहीं ठुकरायी; उसने मुझे अपने प्रेम से वंचित नहीं किया।