स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 77

2 (1-2) मैं ऊँचे स्वर से ईश्वर को पुकारता हूँ। मैं ईश्वर को पुकारता हूँ, वह मेरी सुनेगा।

3 अपने संकट के दिन मैं प्रभु को खोजता हूँ। दिन-रात बिना थके उसके आगे हाथ पसारता हूँ। मेरी आत्मा सान्त्वना अस्वीकार करती है।

4 मैं ईश्वर को याद करते हुए विलाप करता हूँ। मनन करते-करते मेरी आत्मा शिथिल हो जाती है।

5 तू मेरी आँख लगने नहीं देता। मैं व्याकुल हूँ और नहीं जानता कि क्या कहूँ।

6 मैं अतीत के दिनों पर, बहुत पहले बीते वर्षों पर विचार करता हूँ।

7 रात को मुझे अपना भजन याद आता है। मेरा हृदय इस पर विचार करता है और मेरी आत्मा यह पूछती है:

8 “क्या प्रभु सदा के लिए त्यागता है? क्या वह फिर कभी हम पर दयादृष्टि नहीं करेगा?

9 क्या उसकी सत्यप्रतिज्ञता लुप्त हो गयी है? क्या उसकी वाणी युगों तक मौन रहेगी?

10 क्या प्रभु दया करना भूल गया है? क्या उसने कृद्ध हो कर अपना हृदय का द्वार बन्द किया है?”

11 मैं कहता हूँ, “मेरी यन्त्रणा का कारण यह है कि सर्वोच्च प्रभु ने अपना दाहिना हाथ खींच लिया”।

12 मैं प्रभु के महान् कार्य याद करता हूँ, प्राचीन काल में उसके किये हुए चमत्कार।

13 मैं तेरे सभी कार्यों पर विचार करता हूँ, तेरे अपूर्व कार्यों का मनन करता हूँ।

14 ईश्वर! तेरा मार्ग पवित्र है। कौन देवता हमारे ईश्वर-जैसा महान् है?

15 तू वह ईश्वर हे, जो चमत्कार दिखाता है। तूने राष्ट्रों में अपना सामर्थ्य प्रदर्शित किया।

16 तूने अपने बाहुबल से अपनी प्रजा का, याकूब और युसुफ़ के पुत्रों का उद्धार किया।

17 ईश्वर! सागर ने तुझे देखा। सागर तुझे देख कर काँप उठा, अगाध गर्त्त भी घबरा गया।

18 बादल बरसने लगे, आकश गरजने लगा, बिजली चारों ओर चमकने लगी।

19 तेरा गर्जन बवण्डर में सुनाई पड़ा, बिजली ने संसार को आलोकित किया, पृथ्वी काँप उठी और डोलने लगी।

20 तेरा मार्ग समुद्र हो कर जाता था, गहरे सागर हो कर तेरा पथ जाता था। तेरे पदचिन्हों का पता नहीं चला।

21 तूने मूसा और हारून के द्वारा झुण्ड की तरह अपनी प्रजा का पथप्रदर्शन किया।