स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 86
1 प्रभु! मेरी प्रार्थना सुन, मुझे उत्तर दे। मैं दरिद्र और निस्सहाय हूँ।
2 मेरी रक्षा कर! मैं तेरा भक्त हूँ। तुझ पर भरोसा है, अपने दास का उद्धार कर।
3 प्रभु! तू ही मेरा ईश्वर है। मुझ पर दया कर। मैं दिन भर तुझे पुकारता हूँ।
4 प्रभु! अपने दास को आनन्द प्रदान कर, क्योंकि मैं अपनी आत्मा को तेरी ओर अभिमुख करता हूँ।
5 प्रभु! तू भला है, दयालु है और अपने पुकारने वालों के लिए प्रेममय।
6 प्रभु! मेरी प्रार्थना सुनने और मेरी दुहाई पर ध्यान देने की कृपा कर।
7 मैं संकट के दिन तुझे पुकारता हूँ, क्योंकि तू मुझे उत्तर देता है।
8 प्रभु! देवताओं में तेरे सदृश कोई नहीं। तेरे कार्य अतुलनीय हैं।
9 प्रभु! तूने राष्ट्रों का निर्माण किया, वे सब आ कर तेरी आराधना करेंगे और तेरे नाम की महिमा करेंगे;
10 क्योंकि तू महान् है, तू चमत्कार दिखाता है। तू ही ईश्वर है।
11 प्रभु! मुझे अपना मार्ग दिखा, जिससे मैं तेरे सत्य के प्रति ईमानदार रहूँ। मेरे मन को प्रेरणा दे, जिससे मैं तेरे नाम पर श्रद्धा रखूँ।
12 मेरे प्रभु-ईश्वर! मैं सारे हृदय से तुझे धन्यवाद दूँगा, मैं सदा तेरे नाम की महिमा करूँगा;
13 क्योंकि मेरे प्रति तेरी सत्यप्रतिज्ञता महान् है; तूने अधोलोक की गहराइयों से मेरा उद्धार किया है।
14 प्रभु! घमण्डियों ने मुझ पर आक्रमण किया, अत्याचारियों का झुण्ड मुझे मारना चाहता हैं। वे तेरी उपेक्षा करते हैं।
15 प्रभु! तू एक दयालु और करूणामय ईश्वर है। तू सहनशील, सत्यप्रतिज्ञ और प्रेममय है।
16 मेरी सुधि ले, मुझ पर दया कर। अपने दास को बल प्रदान कर, अपनी दासी के पुत्र को बचा।
17 मुझे अपनी कृपादृष्टि का प्रमाण दे। तब मेरे शत्रु, यह देख कर, हताश होंगे कि प्रभु! तू मुझे सहायता और सान्त्वना प्रदान करता है।