स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 101
1 मैं दया और न्याय का गीत गाऊँगा। प्रभु! मैं तेरे आदर में भजन सुनाऊँगा।
2 मैंने सन्मार्ग पर चलने की ठानी है। तू कब मेरे पास आयेगा? मैं अपने घर के आँगन में शुद्ध हृदय से जीवन बिताऊँगा।
3 मैं अपनी आँखों के सामने कोई भी बुराई सहन नहीं करूँगा। मैं पथभ्रष्टों के आचरण से घृणा करता हूँ, वह मुझे आकर्षित नहीं कर सकता।
4 मैं अपने को कुटिलता से दूर रखूँगा। मैं बुराई की उपेक्षा करूँगा।
5 जो छिप कर अपने पड़ोसी की निन्दा करता है, मैं उसे चुप रहने के लिए विवश करूँगा। जो इठलाता और घमण्ड करता है, मैं उसे अपने पास नहीं रहने दूँगा।
6 मेरी कृपादृष्टि देश-भक्तों पर बनी रहती है, वे मेरे आसपास निवास करें। जो सन्मार्ग पर चलता है, वही मेरा सेवक हो सकता है।
7 जो छल-कपट करता है, वह मेरे यहाँ नहीं रह पायेगा। जो झूठ बोलता है, वह मेरी आँखों के सामने नहीं टिकेगा।
8 मैं प्रतिदिन प्रातः देश के सब दुष्टों को चुप करूँगा। मैं प्रभु के नगर से सब कुकर्मियों को निकाल दूँगा।