स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 102
2 (1-2) प्रभु! मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दुहाई तेरे पास पहुँचे।
3 संकट के समय मुझ से अपना मुख न छिपा। मेरी पुकार पर ध्यान दे, मुझे शीघ्र उत्तर दे;
4 क्योंकि मेरे दिन धुएँ की तरह लुप्त हो जाते हैं, मेरी हड्डियाँ अंगारों की तरह जलती हैं।
5 मेरा हृदय कटी हुई घास की तरह सूख गया है, मैं भोजन करना भूल जाता हूँ।
6 मेरे निरन्तर कराहते रहने से मेरा चमड़ा हड्डियों से चिपक गया है।
7 मैं मरुभूमि के घुग्घू-जैसा, खँडहर के उल्लू की तरह हूँ।
8 मुझे नींद नहीं आती; मैं छत पर एकाकी पक्षी-जैसा बन गया हूँ।
9 मेरे शत्रु दिन भर मेरा अपमान करते और निन्दा करते हुए मुझे कोसते हैं।
10 भोजन के नाम पर मैं राख खाता और अपने पेय में आँसू मिलाता हूँ।
11 अपने प्रचण्ड क्रोध के कारण तूने मुझे उठा कर फेंक दिया।
12 मेरे दिन सन्ध्या के प्रकाश जैसे हैं मैं घास की तरह झुलस रहा हूँ।
13 प्रभु! तेरा सिंहासन अनन्त काल तक बना रहता है और तेरी स्तुति युग-युगों तक।
14 तू उठ कर सियोन पर दया करेगा; क्योंकि उस पर अनुग्रह करने का समय यही है, निर्धारित समय आ गया है।
15 तेरे सेवक उसके पत्थरों को प्यार करते और उसके खंडहर पर तरस खाते हैं।
16 राष्ट्र प्रभु के नाम पर श्रद्धा रखेंगे, पृथ्वी के सभी राजा उसकी महिमा का समादर करेंगे;
17 क्योंकि प्रभु सियोन का पुनर्निर्माण करेगा और अपनी सम्पूर्ण महिमा में प्रकट हो जायेगा।
18 वह दीन-दुःखियों की प्रार्थना सुनेगा। वह उनकी विनती का तिरस्कार नहीं करेगा।
19 आने वाली पीढ़ी के लिए यह लिखा जाये, जिससे भावी सन्तति प्रभु की स्तुति करे।
20 प्रभु ने ऊँचे पवित्र स्थान से झुक कर देखा। उसने स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि दौड़ायी,
21 जिससे वह बन्दियों की कराह सुने और प्राणदण्ड पाने वालों को मुक्त करें।
22 जब सभी प्रजातियाँ और राज्य प्रभु की सेवा करने के लिए एकत्र हो जायेंगे,
23 तब सियोन में प्रभु के नाम की घोषणा और येरूसालेम में उसकी स्तुति होती रहेगी।
24 जीवन के मध्यकाल में उसने मेरी शक्ति क्षीण कर दी; उसने मेरे दिन घटा कर कम कर दिये।
25 मैंने कहा: “मेरे ईश्वर! जब तक मेरे दिन पूरे नहीं होंगे, तू मुझे यहाँ से उठाना नहीं”। तेरे वर्ष पीढ़ी दर पीढ़ी बने रहते हैं।
26 तूने प्राचीन काल में पृथ्वी की नींव डाली; आकाश तेरे हाथों की कृति है।
27 वे नष्ट हो जायेंगे, तू बना रहेगा। वे वस्त्र की तरह पुराने हो जायेंगे। तू परिधान की तरह उन्हें बदल देगा और वे फेंक दिये जायेंगे।
28 किन्तु तू एकरूप रहता है; तेरे वर्षों का अन्त नहीं।
29 तेरे सेवकों की सन्तति सुरक्षा में निवास करेगी और उसका वंश तेरे सामने बना रहेगा।