स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 120

1 मैंने संकट में प्रभु को पुकारा और उसने मुझे उत्तर दिया।

2 “प्रभु! झूठ बोलने वाले होंठों से, कपटपूर्ण जिह्ववा से मेरी रक्षा कर”।

3 कपटी जिह्ववा! तुम को कौन-सा दण्ड दिया जाये? तुम्हें और क्या किया जाये?

4 वह योद्धा के पैने बाणों से, झाड़-झंखाड़ की आग से तुम्हें दण्ड देगा।

5 हाय! प्रवासी के रूप में मैं मेशेक में रहता हूँ; मैं केदार प्रदेश के तम्बुओं के बीच निवास करता हूँ।

6 मैं बहुत अधिक समय तक उन लोगों के साथ रह चुका हूँ, जो शान्ति से घृणा करते हैं।

7 मैं शान्तिप्रिय हूँ, किन्तु जब मैं शान्ति की बात कहता हूँ, तो वे युद्ध का उपक्रम करते हैं।