स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 140
2 (1-2) प्रभु! दुष्ट से मेरा उद्धार कर। हिंसक व्यक्ति से मेरी रक्षा कर,
3 उन लोगों से, जो हृदय में बुराई सोचते हैं, जो प्रतिदिन युद्ध छेड़ते हैं।
4 वे साँप की तरह अपनी जिह्वा पजाते हैं। उनके होंठों के नीचे नाग का विष है।
5 प्रभु! विधर्मी के हाथों से मुझे बचा, उन हिंसक व्यक्तियों से मेरी रक्षा कर, जो मुझे ठोकर खिलाना चाहते हैं।
6 घमण्डियों ने मेरे लिए पाश छिपाया, उन्होंने मेरे लिए जाल बिछाया और रास्ते के किनारे मेरे लिए फन्दे लगाये हैं।
7 मैंने प्रभु से कहा, “तू ही मेरा ईश्वर है।” प्रभु! मेरी विनय पर ध्यान दे।
8 प्रभु-ईश्वर! मेरे शक्तिशाली उद्धारक! तूने युद्ध के दिन मेरे सिर की रक्षा की।
9 प्रभु! दुष्ट की कामनाएँ पूरी न कर, उसके षड्यन्त्र सफल न होने दे।
10 जो मुझे घेरते हैं, वे अपना सिर ऊँचा न उठायें, उनके होंठों का पाप उनके सिर पड़े।
11 ईश्वर उन पर जलते अंगारे बरसाये, उन्हें आग में डाल दे, ऐसे गर्तों में, जिन में से वे नहीं निकल पायेंगे।
12 परनिन्दक देश में न रहने पायें, हिंसक व्यक्ति पर निरन्तर विपत्ति पड़े!
13 मैं जानता हूँ कि प्रभु दुःखी को न्याय दिलायेगा, वह दरिद्रों का पक्ष लेगा।
14 धर्मी तेरा नाम धन्य कहेंगे, निष्कपट लोग तेरे सान्निध्य में निवास करेंगे।