आगमन का पहला सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 29:17-24

17 थोड़े ही समय बाद लोबानोन फलवाटिका में बदल जायेगा और फलवाटिका जंगल बन जायेगी।

18) उस दिन बहरे ग्रन्थ का पाठ सुनेंगे और अन्धे देखने लगेंगे; क्योंकि उनकी आँखों से धुँधलापन और अन्धकार दूर हो जायेगा।

19) ष्दीन-हीन प्रभु मे आनन्द मनायेंगे और जो सबसे अधिक दरिद्र हैं, वे इस्राएल के परमपावन ईश्वर की कुपा से उल्लसित हो उठेंगे;

20) क्योंकि अत्याचारी नहीं रह जायेगा, घमण्डियों का अस्तित्व मिटेगा और उन कुकर्मियों का बिनाश होगा,

21) जो दूसरों पर अभियोग लगाते हैं, जो कचहरी के न्यायकर्ताओं को प्रलोभन देते और बेईमानी से धर्मियों को अधिकारों से वंचित करते हैं।

22) इसलिए प्रभु, याकूब के वंश का ईश्वर, इब्राहीम का उद्वारकर्ता, यह कहता है: “अब से याकूब को फिर कभी निराशा नहीं होगी; उसका मुख कभी निस्तेज नहीं होगा;

23) ष्क्योंकि वह देखेगा कि मैंने उसके बीच, उसकी सन्तति के साथ क्या किया है और वह मेरा नाम धन्य कहेगा।“ लोग याकूब के परमपावन प्रभु को धन्य कहेंगे और इस्राएल के ईश्वर पर श्रद्धा रखेंगे।

24) भटकने वालों में सद्बुद्वि आयेगी ओर विद्रोही शिक्षा स्वीकार करेंगे।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 9:27-31

27) ईसा वहाँं से आगे बढ़े और दो अन्धे यह पुकारते हुये उनके पीछे हो लिए, ’’दाऊद के पुत्र! हम पर दया कीजिये’’।

28) जब ईसा घर पहुँचे, तो ये अन्धे उनके पास आये। ईसा ने उन से पूछा, ’’क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूँ ? उन्होने कहा, ’’जी हाँ, प्रभु!

29) तब ईसा ने यह कहते हुए उनकी आँखों का स्पर्श किया, ’’जैसा तुमने विश्वास किया, वैसा ही हो जाये’’।

30) उनकी आँखें अच्छी हो गयीं और ईसा ने यह कहते हुये उन्हें कड़ी चेतावनी दी, ’’सावधान! यह बात कोई न जानने पाये’’।

31) परन्तु घर से निकलने पर उन्होंने उस पूरे इलाक़े में ईसा का नाम फैला दिया।