चक्र – अ, आगमन का दूसरा इतवार
📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 11:1-10
1) यिशय के धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसकी जड़ से एक अंकुर फूटेगा।
2) प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा, प्रज्ञा तथा बुद्धि का आत्मा, सुमति तथा धैर्य का आत्मा, ज्ञान तथा ईश्वर पर श्रद्धा का आत्मा।
3) वह प्रभु पर श्रद्धा रखेगा। वह न तो जैसे-तैसे न्याय करेगा, और न सुनी-सुनायी के अनुसार निर्णय देगा।
4) वह न्यायपूर्वक दीन-दुःखियों के मामलों पर विचार करेगा और निष्पक्ष हो कर देश के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा। वह अपने शब्दों के डण्डे से अत्याचारियों को मारेगा और अपने निर्णयों से कुकर्मियों का विनाश करेगा।
5) वह न्याय को वस्त्र की तरह पहनेगा और सच्चाई को कमरबन्द की तरह धारण करेगा।
6) तब भेड़िया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछड़ा तथा सिंह-शावक साथ-साथ चरेंगे और बालक उन्हें हाँक कर ले चलेगा।
7) गाय और रीछ में मेल-मिलाप होगा और उनके बच्चे साथ-साथ रहेंगे। सिंह बैल की तरह भूसा खायेगा।
8) दुधमुँहा बच्चा नाग के बिल के पास खेलता रहेगा और बालक करैत की बाँबी में हाथ डालेगा।
9) समस्त पवित्र पर्वत पर न तो कोई बुराई करेगा और न किसी की हानि; क्योंकि जिस तरह समुद्र जल से भरा है, उसी तरह देश प्रभु के ज्ञान से भरा होगा।
10) उस दिन यिशय की सन्तति राष्ट्रों के लिए एक चिन्ह बन जायेगी। सभी लोग उनके पास आयेंगे और उसका निवास महिमामय होगा।
📒 दूसरा पाठ : रोमियों 15:4-9
4) धर्म-ग्रन्थ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, जिससे हमें उस से धैर्य तथा सान्त्वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें।
5) ईश्वर ही धैर्य तथा सान्त्वना का स्रोत है। वह आप लोगों को यह वरदान दे कि आप मसीह की शिक्षा के अनुसार आपस में मेल-मिलाप बनाये रखें,
6) जिससे आप लोग एकचित्त हो कर एक स्वर से हमारे प्रभु ईसा मसीह के ईश्वर तथा पिता की स्तुति करते रहें।
7) जिस प्रकार मसीह ने हमें ईश्वर की महिमा के लिए अपनाया, उसी प्रकार आप एक दूसरे को भ्रातृभाव से अपनायें।
8) मैं यह कहना चाहता हूँ कि मसीह यहूदियों के सेवक इसलिए बने कि वह पूर्वजों की दी गयी प्रतिज्ञाएं पूरी कर ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञता प्रमाणित करें
9) और इसलिए भी कि गैर-यहूदी, ईश्वर की दया प्राप्त करें, उसकी स्तुति करें। जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है- इस कारण मैं ग़ैर-यहूदियों के बीच तेरी स्तुति करूँगा और तेरे नाम की महिमा का गीत गाऊँगा।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 3:1-12
योहन बपतिस्ता का उपदेश
(1) उन दिनों योहन बपतिस्ता प्रकट हुआ, जो यहूदिया के निर्जन प्रदेश में यह उपदेश देता था,
(2) “पश्चात्ताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।”
(3) यह वही था जिसके विषय में नबी इसायस ने कहा था निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज-प्रभु का मार्ग तैयार करो; उसके पथ सीधे कर दो।
(4) योहन ऊँट के रोओं का कपड़ा पहने और कमर में चमडे़ का पट्टा बाँधे रहता था। उसका भोजन टिड्डियाँ और वन का मधु था।
(5) येरूसालेम, सारी यहूदिया और समस्त प्रान्त के लोग योहन के पास आते थे।
(6) और अपने पाप स्वीकार करते हुए यर्दन नदी में उस से बपतिस्मा ग्रहण करते थे।
(7) बहुत-से फ़रीसियों और सदूकियों को बपतिस्मा के लिए आते देख कर योहन ने उन से कहा, “साँप के बच्चों! किसने तुम लोगों को आगामी कोप से भागने के लिए सचेत किया ?
(8) पश्चाताप का उचित फल उत्पन्न करो।
(9) और यह न सोचा करो- हम इब्राहीम की संतान हैं, मैं तुम लोगों से कहता हूँ – ईश्वर इन पत्थरों से इब्राहीम के लिए संतान उत्पन्न कर सकता है।
(10) अब पेड़ों की जड़ में कुल्हाड़ा लग चुका है। जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, वह काटा और आग में झोंक दिया जायेगा।
(11) मैं तुम लोगों को जल से पश्चात्ताप का बपतिस्मा देता हूँ ; किन्तु जो मेरे बाद आने वाले हैं, वे मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं उनके जूते उठाने योग्य भी नहीं हूँ। वे तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देंगे।
(12) वे हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वे अपना खलिहान ओसा कर साफ करें। वे अपना गेहूँ बखार में जमा करेंगे। वे भूसी को न बुझने वाली आग में जला देंगे।