आगमन का तीसरा सप्ताह, मंगलवार

📒 पहला पाठ : सफ़न्याह का ग्रन्थ 3:1-2,9-13

1) उस विद्रोही, दूषित और कठोर हृदय नगर को धिक्कार!

2) उसने न तो कभी प्रभु की वाणी पर ध्यान दिया और न कभी उसकी चेतावनी ही स्वीकारी। उसने कभी प्रभु पर भरोसा नहीं रखा। वह कभी उसकी शरण नहीं गया।

9) मैं लोगों के होंठ फिर शुद्ध करूँगा, जिससे वे सब-के-सब प्रभु का नाम लें और एक हृदय हो कर उसकी सेवा करें।

10) इथोपिया की नदियों के उस पार से मेरे बिखरे हुए उपासक चढ़ावा लिये मेरे पास आयेंगे।

11) उस दिन तुम्हें लज्जित नहीं होना पडे़गा- तुम्हारे बीच मेरे विरुद्ध कोई पाप नहीं किया जायेगा, क्योंकि मैं तुम लोगों में से डींग हाँकने वाले अहंकारियों को दूर करूँगा। उसके बाद मेरे पवित्र पर्वत पर कोई भी घमण्ड नहीं करेगा।

12) मैं तुम लोगों के देश में एक विनम्र एवं दीन प्रजा को छोड़ दूँगा। जो इस्राएल में रह जायेंगे, वे प्रभु के नाम की शरण लेंगे।

13) वे अधर्म नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे और छल-कपट की बातें नही करेंगे। वे खायेंगे-पियेंगे और विश्राम करेंगे और कोई भी उन्हें भयभीत नहीं करेगा।

📙 सुसमाचार : मत्ती 21:28-32

28) “तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ’बेटा जाओ, आज दाखबारी में काम करो’।

29) उसने उत्तर दिया, ’मैं नहीं जाऊँगा’, किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया।

30) पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ’जी हाँ पिताजी! किन्तु वह नहीं गया।

31) दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, “पहले ने”। इस पर ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – नाकेदार और वैश्याएँ तुम लोगों से पहले ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे।

32) योहन तुम्हें धार्मिकिता का मार्ग दिखाने आया और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया, परन्तु नाकेदारों और वेश्याओं ने उस पर विश्वास किया। यह देख कर तुम्हें बाद में भी पश्चात्ताप नहीं हुआ और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया।