सूक्ति-ग्रन्थ

अध्याय : 12345678910111213141516171819202122232425262728293031

अध्याय 2

1 पुत्र! यदि तुम मेरे शब्दों पर ध्यान दोगे, मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे,

2 प्रज्ञा की बातें कान लगा कर सुनोगे और सत्य में मन लगाओगे;

3 यदि तुम विवेक की शरण लोगे और सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करोगे;

4 यदि तुम उसे चाँदी की तरह ढूँढ़ते रहोगे और खज़ाना खोजने वाले की तरह उसके लिए खुदाई करोगे,

5 तो तुम प्रभु-भक्ति का मर्म समझोगे और तुम्हें ईश्वर का ज्ञान प्राप्त होगा;

6 क्योंकि प्रभु ही प्रज्ञा प्रदान करता और ज्ञान तथा विवेक की शिक्षा देता है।

7 वह धर्मियों को सफलता दिलाता और ढाल की तरह सदाचारियों की रक्षा करता है।

8 वह धर्ममार्ग पर पहरा देता और अपने भक्तों का पथ सुरक्षित रखता है।

9 तुम धार्मिकता और न्याय, सच्चाई और सन्मार्ग का मर्म समझोगे।

10 प्रज्ञा तुम्हारे हृदय में निवास करेगी और तुम्हें ज्ञान से आनन्द प्राप्त होगा।

11 विवेक तुम्हारा मार्ग प्रशस्त करेगा, समझदारी तुम्हारी रक्षा करेगी।

12 प्रज्ञा तुम्हे दुष्टों के मार्ग पर चलने से रोकेगी-उन लोगों से, जो कपट पूर्ण बातें करते हैं;

13 जो सन्मार्ग से भटक कर अन्धकार के मार्ग पर चलते;

14 जो पाप करना पसन्द करते और बुराई की दुष्टता का रस लेते हैं;

15 जिनके मार्ग टेढ़े-मेढे़ हैं; जो कपटपूर्ण व्यवहार करते हैं।

16 प्रज्ञा तुम को परस्त्री के जाल से बचायेगी, उस व्यभिचारिणी के सम्मोहक वचनों से,

17 जिसने अपनी युवावस्था के साथी का परित्याग किया और अपने ईश्वर का विधान भुला दिया।

18 उसका घर मृत्यु की ओर, उसका पथ अधोलोक की ओर ले जाता है।

19 जो उसके यहाँ अन्दर जाता है, वह लौट कर जीवन के मार्ग पर फिर पैर रहीं रखता।

20 इसलिए तुम अच्छे लोगों के पथ पर चलोगे; तुम धार्मिकों के मार्ग से नहीं भटकोगे।

21 निष्कपट लोग देश के अधिकारी होंगे; निर्दोष लोग उस में निवास करेंगे।

22 किन्तु दुष्ट देश से निर्वासित होंगे; विधर्मी उस से निकाले जायेंगे।