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अध्याय : 12345678910111213141516171819202122232425262728293031

अध्याय 17

1 अनबन के घर मे दावतों की अपेक्षा शान्ति के साथ सूखी रोटी अच्छी है।

2 समझदार सेवक घर के कलंकित पुत्र पर शासन करेगा और उसे उसके भाईयों के साथ विरासत का हिस्सा मिलेगा।

3 घरिया चाँदी की और भट्ठी सोने की परख करती है, किन्तु प्रभु हृदय की परख करता है।

4 कुकर्मी बुरी बातें ध्यान से सुनता और झूठ बोलने वाला व्यक्ति चुग़ली पर कान देता है।

5 जो कंगाल का उपहास करता, वह उसके सृष्टिकर्ता का अपमान करता है। जो दूसरों की विपत्ति पर प्रसन्न होता है, उसे निश्चय ही दण्ड मिलेगा।

6 नाती-पोते बूढ़ों के मुकुट है और पिता पुत्रों की शोभा है।

7 मूर्ख के मुख से अलंकृत भाषा शोभा नहीं देती, किन्तु सम्मानित व्यक्ति का झूठ कहीं अधिक अशोभनीय है।

8 रिश्वत देने वाला समझता है कि घूस जादू का पत्थर है। वह जहाँ भी जाता है, सफलता प्राप्त करता है।

9 अपराध क्षमा करने वाला मित्र बना लेता है। चुग़लखो़र मित्रों में फूट डालता है।

10 मूर्ख पर लाठी के सौ प्रहारों की अपेक्षा समझदार पर एक फटकार अधिक प्रभाव डालती है।

11 दुष्ट विद्रोह की बातें ही सोचता रहता है। उसके पास एक निर्दय अधिकारी भेजा जायेगा।

12 मूर्खता के आवेश में उन्मत्त मूर्ख से मिलने की अपेक्षा उस रीछनी से मिलना अच्छा, जिसके बच्चे चुराये गये हैं।

13 जो भलाई का बदला बुराई से चुकाता है, उसके घर से विपत्ति कभी नहीं हटेगी।

14 झगड़े का प्रारम्भ बाँध की दरार-जैसा है, प्रारम्भ होने से पहले झगड़ा बन्द करो।

15 जो पापी को निर्दोष और धर्मी को दोषी ठहराता है-दोनों से प्रभु को घृणा है।

16 मूर्ख के हाथ का धन किस काम का? उसे प्रज्ञा प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती।

17 मित्र सब समय प्रेम निबाहता है। भाई विपत्ति के दिन के लिए जन्म लेता है।

18 नासमझ ज़म्मेवारी लेता और पड़ोसी के लिए जमानत देता है।

19 जो लड़ाई-झगड़ा पसन्द करता, वह पाप पसन्द करता है। जो अपना फाटक ऊँचा बनवाता, वह विपत्ति बुलाता है।

20 जिसका हृदय दुष्ट है, वह कभी उन्नति नहीं करेगा। जो झूठ बोलता है, वह विपत्ति का शिकार बनेगा।

21 जिसका पुत्र मूर्ख है, उसे दुःख होता है। मूर्ख के पिता को आनन्द नहीं।

22 आनन्दमय हृदय अच्छी दवा है। उदास मन हड्डियाँ सुखाता है।

23 दुष्ट न्याय को भ्रष्ट करने के लिए छिप कर घूस स्वीकार करता है।

24 समझदार व्यक्ति की दृष्टि प्रज्ञा पर लगी रहती है, किन्तु मूर्ख की आँखें पृथ्वी के सीमान्तों पर टिकी हुई हैं।

25 मूर्ख पुत्र से पिता को दुःख हेाता है; वह अपनी माता को कष्ट पहुँचाता है।

26 धर्मी को जुरमाना करना अनुचित है और सज्जनों की पिटाई करना अन्याय है।

27 जो अपनी जिह्वा पर नियन्त्रण रखता, वह ज्ञानी है। जो शान्त रहता, वह समझदार है।

28 यदि मूर्ख मौन रहता, तो वह भी बुद्धिमान् समझा जाता। यदि वह अपना मुँह नहीं खोलता, तो वह समझदार माना जाता।