उत्पत्ति ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • पवित्र बाईबल
अध्याय 7
1 प्रभु ने नूह से कहा, ‘’तुम अपने सारे परिवार के साथ पोत पर चढ़ो, क्योंकि इस पीढ़ी में केवल तुम्हीं मेरी दृष्टि में धार्मिक हो।
2 तुम समस्त शुद्व पशुओं में से नर-मादा के सात-सात जोड़े ले जाओ और समस्त अशुद्ध पशुओं में से दो, नर और उसकी मादा को।
3 आकाश के पक्षियों में से भी नर और मादा के सात-सात जोड़े। इस तरह समस्त पृथ्वी पर उनकी जाति बनाये रखोगे;
4 क्योंकि सात दिन बाद मैं चालीस दिन और चालीस रात पानी बरसाऊँगा और पृथ्वी पर से उन सब प्राणियों को मिटा दूँगा, जिन्हें मैंने बनाया है।‘’
5 नूह ने वह सब किया, जिसका आदेश प्रभु ने दिया था और सातवें दिन प्रलय का जल पृथ्वी पर बरसने लगा।
6 जब पृथ्वी पर जलप्रलय हुआ था, तब नूह की अवस्था छः सौ वर्ष की थी।
7 जलप्रलय से बचने के लिए नूह ने अपने पुत्रों, अपनी पत्नी तथा अपने पुत्रों की पत्नियों के साथ पोत में प्रवेश किया।
8 पवित्र-अपवित्र सब पशुओं, पक्षियों और पृथ्वी पर रेंगने वाले प्राणियों में से
9 नर-मादा के जोड़े नूह के साथ पोत में आये, ठीक उसी तरह जैसे ईश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी।
10 सातवें दिन प्रलय का जल पृथ्वी पर बरसने लगा।
11 नूह की छह सौ वर्ष की अवस्था में, दूसरे महीने की ठीक सत्रहवें दिन, अगाध गर्त्त के सब स्रोत फूट पड़े और आकाश के फाटक खुल गये।
12 चालीस दिन और चालीस रात पृथ्वी पर वर्षा होती रही।
13 उसी दिन नूह, नूह के पुत्र सेम, हाम और याफेत, नूह की पत्नी तथा उसके पुत्रों की पत्नियाँ, सब उसके साथ पोत में आये।
14 वे और उनके साथ विभिन्न जातियों के जंगली पशु, विभिन्न जातियों के मवेशी, विभिन्न जातियों के पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तु तथा विभिन्न जातियों के पक्षी और प्रत्येक प्रकार के पतिंगे – ये सभी।
15 इस प्रकार नूह के साथ सब प्राणियों में से दो-दो पोत के अन्दर आये।
16 सब शरीरधारियों के नर-मादा का एक-एक जोड़ा आया, ठीक उसी प्रकार, जैसे ईश्वर ने आज्ञा दी थी। इसके बाद प्रभु ने उस पर दरवाज़ा बाहर से बन्द कर दिया।
17 जलप्रलय पृथ्वी पर चालीस दिन तक होता रहा। पानी बढ़ता गया और पोत को पृथ्वीतल से ऊपर उठाता गया।
18 पानी बढ़ते-बढ़ते पृथ्वी पर फैलता गया और पोत पानी की सतह पर तैरने लगा।
19 पृथ्वी पर पानी इतना अधिक बढ़ गया कि उसने आकाश के नीचे के सभी ऊँचे-से-ऊँचे पर्वतों को भी ढक लिया।
20 पर्वतों के ऊपर जल इतना बढ़ गया कि वह उनसे पन्द्रह हाथ ऊँचा हो गया
21 तब पृथ्वी पर रहने वाले सब शरीरधारी मर गये – क्या पक्षी, क्या पशु, क्या जंगली जानवर, क्या पृथ्वी पर विचरने वाले कीड़े-मकोड़े तथा सब मनुष्य भी।
22 पृथ्वी के सब प्राणी मर गये।
23 इस प्रकार प्रभु ने पृथ्वी पर से सब प्राणियों का विनाश कर दिया। मनुष्य से ले कर पशु, पृथ्वी पर विचरने वाले कीड़े-मकोड़े और आकाश के पक्षी-सब पृथ्वी पर से नष्ट कर दिये गये। बच गया केवल नूह और वे, जो उसके साथ पोत में थे।
24 पृथ्वी पर पानी एक सौ पचास दिन तक फैला रहा।