मई 25, 2023, गुरुवार
पास्का का सातवाँ सप्ताह
📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 22:30;23:6-11
30) दूसरे दिन कप्तान ने पौलुस के बन्धन खोल दिये और महायाजकों तथा समस्त महासभा को एकत्र हो जाने का आदेश दिया; क्योंकि वह यह निश्चित रूप से जानना चाहता था कि यहूदी पौलुस पर कौन-सा अभियोग लगाते हैं। तब उसने पौलुस को ले जाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया।
6) पौलुस यह जानता था कि महासभा में दो दल हैं-एक सदूकियों का और दूसरा फ़रीसियों का। इसलिए उसने पुकार कर कहा, ’’भाइयो! मैं हूँ फ़रीसी और फ़रीसियों की सन्तान! मृतकों के पुनरुत्थान की आशा के कारण मुझ पर मुकदमा चल रहा है।’’
7) पौलुस के इन शब्दों पर फ़रीसियों तथा सदूकियों में विवाद उत्पन्न हुआ और उन में फूट पड़ गयी;
8) क्योंकि सदूकियों की धारणा है कि न तो पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा। परन्तु फ़रीसी इन पर विश्वास करते हैं।
9) इस प्रकार बड़ा कोलाहल मच गया। फ़रीसी दल के कुछ शास्त्री खड़े हो गये और पुकार कर कहते रहे, ’’हम इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाते। यदि कोई आत्मा अथवा स्वर्गदूत उस से कुछ बोला हो, तो …..।’’
10) विवाद बढ़ता जा रहा था और कप्तान डर रहा था कि कहीं वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर दें; इसलिए उसने सैनिकों को आदेश दिया कि वे सभा में जा कर पौलुस को उनके बीच से निकाल लें और छावनी ले जायें।
11) उसी रात प्रभु पौलुस को दिखाई दिये और बोले, ’’धीर बने रहो। तुमने येरुसालेम में जिस तरह मेरे विषय में साक्ष्य दिया है, तुम को उसी तरह रोम में भी साक्ष्य देना है।’’
📙 सुसमाचार : सन्त योहन 17:20-26
20) मैं न केवल उनके लिये विनती करता हूँ, बल्कि उनके लिये भी जो, उनकी शिक्षा सुनकर मुझ में विश्वास करेंगे।
21) सब-के-सब एक हो जायें। पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, जिससे संसार यह विश्वास करे कि तूने मुझे भेजा।
22) तूने मुझे जो महिमा प्रदान की, वह मैंने उन्हें दे दी है, जिससे वे हमारी ही तरह एक हो जायें-
23) मैं उनमें रहूँ और तू मुझ में, जिससे वे पूर्ण रूप से एक हो जायें और संसार यह जान ले कि तूने मुझे भेजा और जिस प्रकार तूने मुझे प्यार किया, उसी प्रकार उन्हें भी प्यार किया।
24) पिता! मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहें जिससे वे मेरी महिमा देख सकें, जिसे तूने मुझे प्रदान किया है; क्योंकि तूने संसार की सृष्टि से पहले मुझे प्यार किया।
25) न्यायी पिता! संसार ने तुझे नहीं जाना। परन्तु मैंने तुझे जाना है और वे जान गये कि तूने मुझे भेजा।
26) मैंने उन पर तेरा नाम प्रकट किया है और प्रकट करता रहूँगा, जिससे तूने जो प्रेम मुझे दिया, वह प्रेम उन में बना रहे और मैं भी उन में बना रहूँ।