प्रवक्ता ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • पवित्र बाईबल
अध्याय 11
1 प्रज्ञा दीन का सिर ऊँचा करती और उसे शासकों के बीच बैठाती है।
2 सौन्दर्य के कारण किसी की प्रशंसा मत करो और रूप-रंग के कारण किसी की उपेक्षा मत करो।
3 पंख वाले जीवों में मधुमक्खी छोटी है, किन्तु वह जो उत्पन्न करती है, वह सब से मधुर है।
4 अपने वस्त्रों पर गौरव मत करो और सम्मान मिलने पर घमण्डी मत बनो; क्योंकि प्रभु के कार्य ही प्रशंसनीय हैं, यद्यपि वे मनुष्य से छिपे रहते हैं।
5 कई तानाशाहों को भूमि पर बैठ जाना पड़ा और जिसका कोई ध्यान नहीं करता था, उसने किरीट धारण किया।
6 कई शासकों को बहुत अपमानित किया गया और सुप्रसिद्ध व्यक्तियो को शत्रुओें के हवाले कर दिया गया है।
7 जानकारी के अभाव में किसी को दोष मत दो; सोच-विचार करने के बाद ही किसी को डाँटो।
8 सुनने के बाद ही उत्तर दो और बोलने वाले को मत टोको।
9 जो मामला तुम से सम्बन्ध नहीं रखता, उसके विषय में झगड़ा मत करो और दुष्टों के विवाद में मत पड़ो।
10 पुत्र! बहुत बातों के फेर में मत पड़ो: ऐसा करने पर तुम निर्दोष नहीं रहोगे। जिसका पीछा करोगे, उसे नहीं पकड़ पाओगे और जिस से भाग जाओगे, उस से नहीं बचोगे।
11 कुछ लोग परिश्रम और संघर्ष करते हुए दौड़ते हैं, किन्तु तब भी पिछड़ जाते हैं।
12 कुछ लोग कमजोर और निस्सहाय, साधनहीन और दरिद्र हैं, किन्तु प्रभु की कृपादृष्टि उन्हें प्राप्त है और वह उन्हें उनकी दयनीय दशा से ऊपर उठाता है।
13 वह उनका सिर ऊँचा करता और इस पर बहुतों को आश्चर्य होता है।
14 दुःख और सुख, जीवन और मृत्यु गरीबी और अमीरी- यह सब कुछ प्रभु के हाथ है।
15 प्रज्ञा, अनुशासन, संहिता का ज्ञान, भा्रतृप्रेम और परोपकार का मार्ग यह सब प्रभु का वरदान है।
16 भ्रम और अन्धकार पापियों का भाग्य है। जो बुराई को प्यार करते है, वे उसे बुढ़ापे तक नहीं छोड़ते।
17 भक्तों को प्रभु के वरदान मिलते हैं; उसकी कृपादृष्टि उनका सदा पथप्रदर्शन करेगी।
18 कुछ लोग परिश्रम और मितव्यय से धनी बनते हैं, किन्तु अन्त में उनका यह भाग्य होगा:
19 वे कहेंगे, “मुझे शान्ति प्राप्त हो गयी है। अब मैं अपनी सम्पत्ति का उपभोग करूँगा”;
20 जब कि वे नहीं जानते कि उनकी घड़ी कब आयेगी। वे मर जायेंगे और अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिए छोड़ देंगे।
21 कर्तव्यपालन में दृढ़ बने रहो और बुढ़ापे तक अपना काम करते जाओ।
22 पापी के कर्मो पर आश्चर्य पत करो; प्रभु पर भरोसा रखते हुए अपना काम करते जाओ ;
23 क्योंकि प्रभु सुगमता से किसी दरिद्र को अचानक धनी बना सकता है।
24 प्रभु का आशीर्वाद धर्मी का पुरस्कार है; उसका आशीर्वाद क्षण भर में फलता है।
25 यह मत कहो, “मुझे और क्या चाहिए? मुझे और कौन सुख मिल सकता है?”
26 यह मत कहो, “मुझे किसी बात की कमी नहीं, भविष्य में मुझ पर कौन विपत्ति आ सकती है?”
27 सुख के दिनों में दुःख और दुःख के दिनों में सुख भुलाया जाता है।
28 प्रभु आसानी से मृत्यु के दिन मनुष्य को उसके समस्त कर्मो का फल दे सकता है।
29 घड़ी भर का दुःख समृद्धि को भुला देता है; मनुष्य का अन्त उसके कर्म प्रकट करता है।
30 किसी को मृत्यु के पूर्व सौभाग्यशाली मत कहो; मृत्यु के समय ही मनुष्य को पहचाना जाता है।
31 हर किसी को अपने घर में मत आने दो; क्योंकि कपटी मनुष्य के बहुत-से जाल होते हैं।
32 अहंकारी का हृदय पिंजड़े में बन्द तीतर के सदृश है। वह गुप्तचर की तरह तुम्हारे पतन की ताक में रहता है।
33 चुगलखोर अच्छाई को बुराई में बदल देता है। ओैर अच्छी-से-अच्छी बातों में भी दोष निकालता है।
34 एक चिनगारी कोयले के ढेर में आग लगा सकती है। पापी रक्तपात की ताक में रहता है।
35 दुष्ट से सावधान रहो, वह बुराई ही सोचता है; वह सदा के लिए तुम पर कलंक लगा सकता है।
36 यदि परदेशी को अपने यहाँ ठहराओगे, तो वह तुम को परेशानी में डालेगा और तुम्हारे अपनों से विमुख करेगा।