प्रवक्ता ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • पवित्र बाईबल
अध्याय 17
1 प्रभु ने मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा। उसने उसे अपना प्रतिरूप बनाया।
2 वह उसे फिर मिट्टी में मिला देता है। उसने उसे अपने सदृश शक्ति प्रदान की।
3 उसने मनुष्यों की आयु की सीमा निर्धारित की और उन्हें पृथ्वी की सब वस्तुओं पर अधिकार दिया।
4 उसने सब प्राणियों में मनुष्य के प्रति भय उत्पन्न किया और उसे सब पशुओं तथा पक्षियों पर अधिकार दिया।
5 उसने मनुष्यों को बुद्धि, भाषा, आँखें तथा कान दिये और विचार करने का मन भी।
6 उसने उन्हें विवेक से सम्पन्न किया और भलाई तथा बुराई की पहचान से।
7 उसने उनके मन की आँखों को ज्योति प्रदान की, जिससे वे उसके कार्यों की महिमा देख सकें
8 और उसके पवित्र नाम का स्तुतिगान एवं महिमामय कार्यों का बखान करें।
9 उसने उन्हें ज्ञान का वरदान और जीवनप्रद नियम दिया।
10 उसने उनके लिए चिरस्थायी विधान निर्धारित किया और उन्हें अपनी आज्ञाओें की शिक्षा दी।
11 उनकी आँखों में उसके महिमामय ऐश्वर्य को देखा और उनके कानों ने उनकी महिमामय वाणी सुनी। उसने उन से यह कहा, “हर प्रकार की बुराई से दूर रहो”।
12 उसने प्रत्येक को दूसरों के प्रति कर्तव्य सिखाया।
13 मनुष्य जो कुछ करता है, वह सदा उसके लिए प्रकट है और उसकी आँखों से छिपा हुआ नहीं रह सकता।
14 उसने प्रत्येक राष्ट्र के लिए एक शासक नियुक्त किया,
15 किन्तु इस्राएल प्रभु की विरासत है।
16 मनुष्यों के सभी कार्य दिन के प्रकाश की तरह प्रभु के सामने प्रकट है; वह उनके मार्गों पर निरन्तर दृष्टि दौड़ाता है।
17 उनका अधर्म उस से छिपा नहीं है; उनके सभी पाप प्रभु के सामने हैं।
18 मनुष्य का भिक्षादान मुहर की तरह उसकी रक्षा करता है। प्रभु मनुष्य का परोपकार आँख की पुतली की तरह सुरक्षित रखता है।
19 वह अन्त में उठ कर उन्हें प्रतिफल प्रदान करेगा। वह उनका पुरस्कार उनके सिर पर रख देगा।
20 ईश्वर पश्चात्ताप करने वालों को अपने पास लौटने देता और निराश लोगों केा ढ़ारस बँधाता है।
21 पाप छोड़ कर सर्वोच्च ईश्वर के पास लौट जाओ।
22 उस से प्रार्थना करो और उसे अप्रसन्न मत किया करो।
23 अन्याय छोड़ कर सर्वोच्च ईश्वर के पास लौट जाओ और अधर्म से अत्यधिक घृणा करो।
24 ईश्वर का न्यायोचित निर्णय पहचान लो और सर्वोच्च प्रभु से विनय और प्रार्थना करो।
25 यदि जीवित लोग ईश्वर का धन्यवाद नहीं करते, तो अधोलोक में कौन उसका स्तुतिगान करेगा?
26 अधर्मियों की भ्रान्ति में मत रहो और मृत्यु से पहले प्रभु की स्तुति करो। जो मर चुका है, वह प्रभु का स्तुतिगान नहीं करता।
27 जो जीवित और सकुशल है, वही प्रभु को धन्य कहता है। जीवित और सकुशल रहते हुए प्रभु को धन्य कहो। प्रभु की स्तुति करो और उसकी दया पर गौरव करो।
28 कितनी महान् है ईश्वर की दया और उसके पास लौटने वालों के लिए उसकी क्षमाशीलता!
29 सब कुछ मनुष्य के लिए सम्भव नहीं है, क्येांकि मनुष्य अमर नहीं है।
30 सूर्य से अधिक प्रकाशमय क्या है? किन्तु उस पर भी ग्रहण लग जाता है। रक्त-मांस का मनुष्य तो बुराई की बात सोचता है।
31 ईश्वर विश्वमण्डल पर दृष्टि दौड़ाता है, किन्तु मनुष्य मिट्टी और राख मात्र है।