जून 27, 2023, मंगलवार

वर्ष का बारहवाँ सप्ताह

📒 पहला पाठ : उत्पत्ति 13:2,5-18

2) अब्राम पशुओं और चाँदी-सोने से सम्पन्न था।

5) लोट अब्राम के साथ रहता था और उसके भी भेड़-बकरियाँ, चौपाये और तम्बू थे।

6) वह भूमि इतनी विस्तृत नहीं थी कि उस से दोनों का निर्वाह हो सके। उनकी इतनी अधिक सम्पत्ति थी कि वे दोनों साथ नहीं रह सकते थे।

7) इस कारण अब्राम और लोट के चरवाहों में झगडे हुआ करते थे। उस समय कनानी और परिज्जी उस देश में निवास करते थे।

8) इसलिए अब्राम ने लोट से यह कहा, ”हम दोनों में, मेरे और तुम्हारे चरवाहों में झगड़ा नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम तो भाई हैं।

9) सारा प्रदेश तुम्हारे सामने है, हम एक दूसरे से अलग हो जायें। यदि तुम बायें जाओगे, तो मैं दाहिने जाऊँगा और यदि दाहिने जाओगे तो मैं बायें जाऊँगा।”

10) लोट ने आँखें उठा कर देखा कि प्रभु की वाटिका तथा मिस्र देश के सदृश समस्त यर्दन नदी की खाटी सोअर तक अच्छी तरह सींची हुई है। उस समय तक प्रभु ने सोदोम और गोमोरा का विनाश नहीं किया था।

11) इसलिए लोट ने यर्दन नदी की समस्त घाटी चुनी। वह पूर्व की ओर चला गया और इस प्रकार दोनों अलग हो गये।

12) अब्राम कनान की भूमि में रह गया। लोट घाटी के नगरों के बीच बस गया और उसने सोदोम के निकट अपने तम्बू खड़े कर दिये।

13) सोदोम के निवासी बहुत दुष्ट और प्रभु की दृष्टि में पापी थे।

14) जब लोट चला गया, तो प्रभु ने अब्राम से यह कहा, ”तुम आँखें ऊपर उठाओ और जहाँ खड़े हो, वहाँ से उत्तर और दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की ओर दृष्टि दौड़ाओ –

15) मैं यह सारा देश, जो तुम्हें दिखाई दे, तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को प्रदान करूँगा।

16) मैं तुम्हारे वंशजों को पृथ्वी की धूल की तरह असंख्य बना दूँगा – पृथ्वी के धूलि-कण भले ही कोई गिन सके, किन्तु तुम्हारे वंशजों की गिनती कोई नहीं कर पायेगा!

17) चलो; इस देश में चारों ओर घूमने जाओ, क्योंकि मैं इसे तुम को दे दूँगा।”

18) अब्राम अपना तम्बू उखाड़ कर हेब्रोन में मामरे के बलूत के पास बस गया और उसने वहाँ प्रभु के लिए एक वेदी बनायी।

📙 सुसमाचार : मत्ती 7:6,12-14

6) ’’पवित्र वस्तु कुत्तों को मत दो और अपने मोती सूअरों के सामने मत फेंको। कहीं ऐसा न हो कि वे उन्हें अपने पैरों तले कुचलदें और पलट की तुम्हें फाड़ डालें।

12) ’’दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो। यही संहिता और नबियों की शिक्षा है।

13) ’’सॅकरे द्वार से प्रवेश करो। चैड़ा है वह फाटक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है।

14) किन्तु सॅकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मागर्, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।