शुक्रवार, 01 सितंबर, 2023

वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

पहला पाठ : 1 थेसलनीकियों 4:1-8

1) भाइयो! आप लोग हम से यह शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं कि किस प्रकार चलना और ईश्वर को प्रसन्न करना चाहिए और आप इसके अनुसार चलते भी हैं। अन्त में, हम प्रभु ईसा के नाम पर आप से आग्रह के साथ अनुनय करते हैं कि आप इस विषय में और आगे बढ़ते जायें।

2) आप लोग जानते हैं कि मैंने प्रभु ईसा की ओर से आप को कौन-कौन आदेश दिये।

3) ईश्वर की इच्छा यह है कि आप लोग पवित्र बनें और व्यभिचार से दूर रहें।

4) आप में प्रत्येक धर्म और औचित्य के अनुसार अपने लिए एक पत्नी ग्रहण करे।

5) गैर-यहूदियों की तरह, जो ईश्वर को नहीं जानते, कोई भी वासना के वशीभूत न हो।

6) कोई भी मर्यादा का उल्लंघन न करे और इस सम्बन्ध में अपने भाई के प्रति अन्याय नहीं करे; क्योंकि प्रभु इन सब बातों का कठोर दण्ड देता है, जैसा कि हम आप लोगों को स्पष्ट शब्दों में समझा चुके हैं।

7) क्योंकि ईश्वर ने हमें अशुद्धता के लिए नहीं, पवित्रता के लिए बुलाया;

8) इसलिए जो इस आदेश का तिरस्कार करता है, वह मनुष्य का नहीं, बल्कि ईश्वर का तिरस्कार करता है, जो आप को अपना पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती 25:1-13

1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं।

2) उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।

3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।

4) समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं।

5) दूल्हे के आने में देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं।

6) आधी रात को आवाज़ आयी, ’देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’

7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।

8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, ’अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।

9) समझदारों ने उत्तर दिया, ’क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।’

10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।

11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।

12) इस पर उसने उत्तर दिया, ’मैं तुम से यह कहता हूँ- मैं तुम्हें नहीं जानता’।

13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।