इतवार, 03 सितंबर, 2023
वर्ष का बाईसवाँ सामान्य सप्ताह
📒 पहला पाठ : यिरमियाह 20:7-9
7) प्रभु! तूने मुझे राज़ी किया और मैं मान गया। तूने मुझे मात कर दिया और मैं हार गया। मैं दिन भर हँसी का पात्र बना रहता हूँ। सब-के-सब मेरा उपहास करते हैं।
8) जब-जब मैं बोलता हूँ, तो मुझे चिल्लाना और हिंसा तथा विध्वंस की घोषणा करनी पड़ती हैं। ईश्वर का वचन मेरे लिए निरंतर अपमान तथा उपहास का कारण बन गया हैं।
9) जब मैं सोचता हूँ, मैं उसे भुलाऊँगा, मैं फिर कभी उसके नाम पर भविय वाणी नहीं करूँगा“ तो उसका वचन मेरे अन्दर एक धधकती आग जैसा बन जाता है, जो मेरी हड्डी-हड्डी में समा जाती है। मैं उसे दबाते-दबाते थक जाता हूँ और अब मुझ से नहीं रहा जाता।
📕 दूसरा पाठ : रोमियों 12:1-2
1) अतः भाइयो! मैं ईश्वर की दया के नाम पर अनुरोध करता हूँ कि आप मन तथा हृदय से उसकी उपासना करें और एक जीवन्त, पवित्र तथा सुग्राह्य बलि के रूप में अपने को ईश्वर के प्रति अर्पित करें।
2) आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि बस कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 16:21-27
21) उस समय से ईसा अपने शिष्यों को यह समझाने लगे कि मुझे येरुसालेम जाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों की ओर से बहुत दुःख उठाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा।
22) पेत्रुस ईसा को अलग ले गया और उन्हें यह कहते हुए फटकारने लगा, ’’ईश्वर ऐसा न करे। प्रभु! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी।’’
23) इस पर ईसा ने मुड़ कर, पेत्रुस से कहा ’’हट जाओ, शैतान! तुम मेरे रास्ते में बाधा बन रहो हो। तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।’’
24) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ’’जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले;
25) क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।
26) मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन गँवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?
27) क्योंकि मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा-सहित आयेगा और वह प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्म का फल देगा।