उत्पत्ति ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • पवित्र बाईबल
अध्याय 27
1 इसहाक बूढ़ा हो गया और उसकी आँखें इतनी कमजोर हो गयीं कि वह देख नहीं पाता था। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र एसाव को बुलाया और कहा, ”बेटा!” एसाव ने उत्तर दिया, ”क्या आज्ञा है?”
2 इसहाक ने कहा, ”तुम देखते ही हो कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ। न जाने कब तक जीवित रहूँगा।
3 तुम अपने हथियार, अपना तरकश और अपना धनुष ले कर जाओ और मेरे लिए शिकार ले आओ।
4) तब मेरी पसन्द का स्वादिष्ट भोजन बना कर मुझे खिलाओ। मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद देना चाहता हूँ।”
5 रिबेका इसहाक और उसके पुत्र एसाव की बातचीत सुन रही थी।
6 इसी बीच रिबेका ने अपने पुत्र याकूब से कहा, ”मैंने सुना है कि तुम्हारे पिता तुम्हारे भाई एसाव से इस प्रकार कह रहे थे कि
7 तुम मेरे लिए शिकार ला कर स्वादिष्ट भोजन बनाओ और मुझे खिलाओ, जिससे मैं उसे खा कर मरने से पूर्व प्रभु के सामने तुम्हें आशीर्वाद दूँ।
8 इसलिए बेटा! मेरी बात मानो और वही करो, जो मैं कहती हूँ।
9 बकरियों के बाड़े में जा कर उनके दो अच्छे-अच्छे बच्चे मेरे पास ले आओ। मैं उन्हें पका कर तुम्हारे पिता की पसन्द का स्वादिष्ट भोजन तैयार करूँगी।
10 फिर तुम उसे ले जा कर अपने पिता को खिला देना, जिससे, वह मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद दे दें।”
11 इस पर याकूब ने अपनी माँ रिबेका से कहा, ”तुम्हें मालूम है कि मेरे भाई एसाव का शरीर रोयेंदार है, किन्तु मेरा तो रोमहीन है।
12 सम्भव है कि मेरे पिता मेरा स्पर्श करें, तो वह समझे कि मैं उन से छल-कपट कर रहा हूँ और आशीर्वाद के बदले अभिशाप मेरे सिर पड़ेगा।”
13 उसकी माता उस से बोली, ”बेटा! तुम्हारा अभिशाप मेरे सिर पड़े। तुम मेरी बात मानो और जा कर बकरी के दो बच्चे मुझे ला दो।”
14 इस पर वह गया और उन्हें ला कर अपनी माता को दिया। उसकी माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन तैयार किया।
15 रिबेका ने अपने ज्येष्ठ पुत्र के उत्तम वस्त्र, जो घर में उसके पास थे, ले लिये और अपने कनिष्ठ पुत्र याकूब को पहनाये।
16 उसने उसके हाथ और चिकनी गरदन पर बकरी का चमड़ा पहना दिया।
17 तब उसने अपने द्वारा पकाया भोजन और रोटी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी।
18 उसने अपने पिता इसहाक के पास जा कर कहा, ”पिताजी!” उसने उत्तर दिया, हाँ, बेटा! तुम कौन हो?”
19 याकूब ने अपने पिता से कहा, ”मैं आपका पहलौठा एसाव हूँ। मैंने वही किया, जो आपने कहा था। कृपा करके आइए, बैठ कर मेरा शिकार खाइए और मुझे आशीर्वाद दीजिए।”
20 इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, ”बेटा! तुम को कैसे यह इतने जल्दी मिल गया?” उसने उत्तर दिया, ”यह प्रभु, आपके ईश्वर, की कृपा है”।
21 इसहाक ने याकूब से कहा, ”बेटा! मेरे पास आओ। मैं टटोल कर जान लेना चाहता हूँ कि तुम सचमुच मेरे पुत्र एसाव हो।”
22 याकूब अपने पिता इसहाक के पास आया। इसने उसे टटोल कर कहा, ”आवाज तो याकूब की है लेकिन हाथ एसाव के है”।
23 वह याकूब को नहीं पहचान पाया, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई एसाव के हाथों की तरह रोयेदार थे और इसलिए उसने उसे आशीर्वाद दिया।
24 उसने कहा, ”क्या तुम सचमुच मेरे पुत्र एसाव हो?” उसने उत्तर दिया ”हाँ, मैं वही हूँ”।
25 तब इसहाक ने कहा, ”मुझे अपना शिकार ला कर खिलाओ और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा”। याकूब भोजन लाया और इसहाक खाने लगा। इसके बाद उसने अंगूरी ला कर इसहाक को पिलायी।
26 तब उसके पिता इसहाक ने कहा, ”बेटा! आओ और मुझे चुम्बन दो”।
27 उसने अपने पिता के पास आ कर उसका चुम्बन किया। इसहाक को उसके वस्त्रों की गन्ध मिली और उसने यह कहते हुए उसे आशीर्वाद दिया, ”ओह! मेरे पुत्र की गन्ध उस भूमि की गन्ध-जैसी है, जिसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त है।
28 ईश्वर तुम्हें आकाश की ओस, उपजाऊ भूमि और भरपूर अन्न तथा अंगूरी प्रदान करे।
29 अन्य जातियाँ तुम्हारी सेवा करें, राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें। तुम अपने भाइयों के स्वामी होओ और तुम्हारी माता के पुत्र तुम को दण्डवत् करें। जो तुम को अभिशाप दे, वह अभिशप्त हो और जो तुम को आशीर्वाद दे, उसे आशीर्वाद प्राप्त हो।”
30 जब इसहाक याकूब को आशीर्वाद दे चुका था और याकूब जैसे ही अपने पिता इसहाक के पास से जा रहा था, तो उसका भाई एसाव शिकार से लौटा।
31 उसने भी स्वादिष्ट भोजन तैयार किया और उसे अपने पिता के पास ला कर बोला, ”पिताजी! उठिए, अपने पुत्र का शिकार खाइए और मुझे आशीर्वाद दीजिए”।
32 उसके पिता इसहाक ने उस से पूछा, ”तुम कौन हो”? उसने उत्तर दिया, ”मैं आपका पुत्र, आपका पहलौठा पुत्र एसाव हूँ”।
33 यह सुन इसहाक को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह बोला, ”तो वह कौन था, जो शिकार का भोजन ले कर मेरे पास आया था? तुम्हारे आने से पहले मैंने उसका परोसा भोजन खाया और उसे आशीर्वाद दिया, और वह आशीर्वाद उस पर बना ही रहेगा।”
34 अपने पिता की बातें सुनते ही एसाव ने बड़े ऊँचे और दुःख भरे स्वर से पुकारते हुए अपने पिता से कहा, ”पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दीजिए”।
35 पर उसने कहा, ”तुम्हारे भाई ने आ कर मुझ से धोखे से तुम्हारा आशीर्वाद छीन लिया है”।
36 उसने कहा, ”उसका नाम याकूब ठीक ही तो रखा गया था। उसने मुझे दो बार धोखा दिया है। उसने पहले तो मेरा पहलौठा होने का अधिकार मुझ से छीन लिया था और अब उसने मेरा आशीर्वाद भी छीन लिया।” फिर उसने पूछा, ”क्या आपने मेरे लिए कोई भी आशीर्वाद शेष नहीं रख छोड़ा है?”
37 इसहाक ने उत्तर देते हुए एसाव से कहा, ”सुनो, मैंने उसे तुम्हारा स्वामी बना दिया है और उसके सब भाइयों को उसके अधीन किया है। मैंने अन्न और अंगूरी से उसे सम्पन्न कर दिया है। मेरे पुत्र! अब में तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?”
38 पर एसाव ने अपने पिता से कहा, ”पिताजी! क्या आपके पास एक ही आशीर्वाद है? पिताजी! मुझे भी आशीर्वाद दीजिए।” यह कह कर एसाव फूट-फूट कर रोने लगा।
39 तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा देखो पृथ्वी की उपजाऊ भूमि से दूर और ऊपर के आकाश की ओर से दूर तुम्हारा निवास स्थान होगा
40 तुम अपनी तलवार के बल पर जियोगे, पर अपने भाई के अधीन रहोगे। जब तुम्हारा असन्तोष बढ़ जायेगा, तो तुम अपनी गरदन का जूआ तोड़ कर फेंक दोगे।”
41 एसाव याकूब से बैर करता था, क्योंकि उसके पिता ने उस को आशीर्वाद दे दिया था। एसाव ने मन में कहा, ”अब हमारे पिता के लिए शोक मनाने के दिन जल्द ही आने को हैं। उसके बाद मैं अपने भाई याकूब को जान से मार डालूँगा।”
42 जब अपने बड़े बेटे एसाव की ये बातें रिबेका को मालूम हुईं, तो उसने अपने छोटे बेटे याकूब को बुला कर उस से कहा, ”सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम से बदला लेने के लिए तुम्हें मार डालना चाहता है।
43 बेटा! अब मेरी बात मानो। हारान देश में मेरे भाई लाबान के यहाँ शीघ्र भाग जाओ।
44 जब तक तुम्हारे भाई का क्रोध शान्त न हो जाये, तब तक कुछ समय तक उसी के यहाँ रहो।
45 जैसे ही तुम पर तुम्हारे भाई को क्रोध दूर हो जायेगा और वह भूल जायेगा कि तुमने उसके साथ क्या किया है, वैसे ही मैं किसी को भेज कर तुम्हें वहाँ से घर वापस बुलवा लूँगी। मैं एक ही दिन तुम दोनों को क्यों खो बैठूँ?
46 रिबेका ने इसहाक से कहा, ”इन हित्ती स्त्रियों के कारण तो मैं जीवन से ऊब गयी हूँ। यदि याकूब ने भी इस देश की किसी कन्या से, किसी हित्ती कन्या से, विवाह कर लिया, तो फिर जीने से मुझे क्या लाभ?”