पास्का – काल
दूसरा सप्ताह

आज के संत: संत मार्टिन । पोप, शहीद

📒 पहला पाठ: प्रेरित – चरित 6 : 1 – 7

1  उन दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तो यूनानी-भाषियों ने इब्रानी-भाषियों के विरुद्ध यह शिकायत की कि रसद के दैनिक वितरण में उनकी विधवाओं की उपेक्षा हो रही है।

2  इसलिए बारहों ने शिष्यों की सभा बुला कर कहा, “यह उचित नहीं है कि हम भोजन परोसने के लिए ईश्वर का वचन छोड़ दे।

3  आप लोग अपने बीच से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण सात बुद्धिमान् तथा ईमानदार व्यक्तियों का चुनाव कीजिए। हम उन्हें इस कार्य के लिए नियुक्त करेंगे,

4  और हम लोग प्रार्थना और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।”

5  यह बात सबों को अच्छी लगी। उन्होंने विश्वास तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण स्तेफनुस के अतिरिक्त फिलिप, प्रोख़ोरुस, निकानोर, तिमोन, परमेनास और यहूदी धर्म में नवदीक्षित अन्ताखिया-निवासी निकोलास को चुना

6  और उन्हें प्रेरितों के सामने उपस्थित किया। प्रेरितों ने प्रार्थना करने के बाद उन पर अपने हाथ रखे।

7  ईश्वर का वचन फैलता गया, येरूसालेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ने लगी और बहुत-से याजकों ने विश्वास की अधीनता स्वीकार की।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 6 16 – 21

16 सन्ध्या हो जाने पर शिष्य समुद्र के तट पर आये।

17 वे नाव पर सवार हो कर कफरनाहूम की ओर समुद्र पार कर रहे थे। रात हो चली थी और ईसा अब तक उनके पास नहीं आये थे।

18 इस बीच समुद्र में लहरें उठ रही थी, क्योंकि हवा जोरों से चल रही थी।

19 कोई तीन-चार मील तक नाव खेने के बाद शिष्यों ने देखा कि ईसा समुद्र पर चलते हुए, नाव की ओर आगे बढ़ रहे हैं। वे डर गये,

20 किन्तु ईसा ने उन से कहा, “मैं ही हूँ। डरो मत।”

21 वे उन्हें चढ़ाना चाहते ही थे कि नाव तुरन्त उस किनारे, जहाँ वे जा रहे थे, लग गयी।