उत्पत्ति ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • पवित्र बाईबल
अध्याय 33
1 याकूब ने जब अपनी आँखें ऊपर उठायीं तो उसने चार सौ आदमियों के साथ एसाव को आते देखा। उसने लेआ, राहेल और दोनों दासियों को उनके अपने-अपने बच्चे दे दिये।
2 उसने सब से आगे दासियों और उनके बच्चों को रखा, फिर अपने बच्चों के साथ लेआ को और सब के पीछे राहेल और यूसुफ़ को।
3 वह आगे बढ़ा और अपने भाई के पास पहुँच कर उसने उसे सात बार भूमि पर झुक कर प्रणाम किया।
4 उधर एसाव उस से मिलने को दौड़ा आया, उस को गले लगाया और उसका चुम्बन लिया। वे दोनों रोने लगे।
5 उसने अपनी आँखें उठा कर जब बच्चों के साथ स्त्रियों को देखा, तो पूछा, ”ये, जो तुम्हारे साथ हैं, कौन हैं?” उसने उत्तर दिया, ”ये वे बच्चे हैं, जिन को ईश्वर ने आपके दास को दिया है”।
6 फिर अपने-अपने बच्चों को ले कर दासियाँ पास आईं और उन्होंने उसे प्रणाम किया।
7 उसी प्रकार लेआ भी अपने बच्चों को ले कर पास आयी और प्रणाम किया। अन्त में यूसुफ़ और राहेल ने पास आ कर प्रणाम किया।
8 तब एसाव ने पूछा, ”जो झुण्ड रास्ते में मिले, उन से तुम्हारा क्या अभिप्राय है?” याकूब ने उत्तर दिया, ”वे मेरे स्वामी की कृपा प्राप्त करने के लिए थे”।
9 एसाव ने कहा, ”भाई! मेरे पास तो बहुत कुछ है। जो तुम्हारा है, उसे तुम अपने पास ही रखो।”
10 याकूब ने कहा, ”नहीं मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि यदि मुझ पर आपकी कृपा दृष्टि है, तो आप को मेरी इस भेंट को स्वीकार कर लेना चाहिए। मेरे लिए तो आपके दर्शन ईश्वर के दर्शनों के तुल्य है; क्योंकि आपने मेरा स्वागत किया है। मैं फिर आप से प्रार्थना करता हूँ
11 कि जो उपहार मैं आपके लिए लाया, आप उसे स्वीकार कीजिए, क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर बड़ी कृपा की है और मेरे पास बहुत है”। जब इस प्रकार याकूब ने उस से आग्रह किया, तो उसने उसकी भेंट स्वीकार कर ली।
12 तब एसाव ने कहा, ”हम शिविर उठा कर आगे चलें, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”
13 परन्तु याकूब ने उस से कहा, ”स्वामी आप जानते ही हैं कि बच्चे कमजोर हैं और मेरे साथ की दूध देने वाली भेड़ों, बकरियों और गायों की मुझे देखरेख करनी पड़ती है। यदि एक दिन के लिए भी वे जल्दी-जल्दी हाँकी जायेंगी, तो सब मर जायेंगी।
14 इसलिए, मेरे स्वामी अपने दास के आगे चलें और मैं अपने साथ के पशुओं और बच्चों की चाल के अनुसार पीछे से तब तक धीरे-धीरे आऊँगा, जब तक मैं अपने स्वामी के यहाँ सेईर तक पहुँच जाऊँ”।
15 एसाव ने कहा, ”मैं अपने आदमियों में से कुछ को तुम्हारे पास छोड़ जाता हूँ”। परन्तु उसने कहा ”क्यों? मुझे अपने स्वामी की कृपा दृष्टि प्राप्त है। यह बहुत है”।
16 इसलिए एसाव उसी दिन सेईर लौट गया।
17 याकूब सुक्कोत की ओर चला गया। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और पशुओं के लिए पशुशालाएँ बनवायीं। इसलिए उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ गया।
18 पद्दन-अराम से लौट कर याकूब कनान देश के सिखेम नामक नगर में सुरक्षित पहुँच गया और नगर के पास अपना तम्बू खड़ा किया।
19 उसने चाँदी के सौ सिक्के दे कर सिखेम के पिता हमोर के पुत्रों से उस भूमि-भाग को ख़रीद लिया और उस पर अपना तम्बू खड़ा कर दिया।
20 वहीं उसने एक वेदी भी बनायी और उसका नाम ‘इस्राएल का महान् ईश्वर’ रखा।