उत्पत्ति ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • पवित्र बाईबल
अध्याय 41
1 पूरे दो साल बाद फिराउन ने भी एक स्वप्न देखा। उसने उस में देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है।
2 इतने में नील नदी से सात सुन्दर, मोटी गायें निकलीं और कछार की घास चरने लगीं।
3 उनके पीछे फिर सात कुरूप और दुबली-पतली गायें नील नदी से निकलीं और उन गायों के पास नील नदी के किनारे खड़ी हो गयीं।
4 इसके बाद वे कुरूप, दुबली-पतली गायें उन सात सुन्दर, मोटी गायों को खा गयीं। इतने में फिराउन की आँखें खुलीं।
5 जब वह फिर सोया, तो उसने एक और स्वप्न देखाः एक ही डण्ठल में सात अच्छी भरी बालें फूट निकली हैं।
6 इनके बाद फिर पतली और पूर्वी हवा से झुलसी हुई सात बालें फूट निकली।
7 पतली बालें उन सात भरी-पूरी बालों को खा गयीं। तब फिराउन की नींद टूटी और उसे मालूम हुआ कि यह एक स्वप्न था।
8 प्रातःकाल उसका मन व्याकुल हो उठा। उसने मिस्र के सब जादूगरों और पण्डितों को बुलवाया। फिराउन ने उन्हें अपने स्वप्न कह सुनाये। परन्तु उन में कोई भी फिराउन को उनका अर्थ समझा न सका।
9 तब प्रधान साक़ी ने फिराउन से कहा, ”आज मुझे अपने अपराधों की फिर याद आ रही है।
10 फिराउन को किसी दिन अपने दासों पर क्रोध आया था और उन्होंने मुझे तथा प्रधान रसोइये को अंगरक्षकों के अध्यक्ष के यहाँ बन्दीगृह में डाल दिया था।
11 एक ही रात हम दोनों ने, उसने और मैंने, एक-एक स्वप्न देखा था, जिनका अपना-अपना अर्थ था।
12 वहाँ हमारे साथ अंग-रक्षकों के अध्यक्ष का एक दास, एक इब्रानी युवक था। हमने उसे अपने स्वप्न बतलाये और उसने हमारे स्वप्नों का अलग-अलग अर्थ बताया।
13 उसके बतलाये अर्थ के अनुसार ही हुआ। मुझे अपना पुराना पद मिल गया, परन्तु रसोइये को फ़ाँसी दी गयी।”
14 तब फिराउन ने यूसुफ़ को बुलवाया। वह शीघ्र ही बन्दीगृह से लाया गया। वह बाल मुड़वाने और वस्त्र बदलने के बाद फिराउन के सामने आया।
15 फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ”मैंने एक स्वप्न देखा, परन्तु उसका अर्थ कोई भी नहीं समझा सकता। मैंने तुम्हारे विषय में सुना है कि तुम स्वप्न सुनते ही उसका अर्थ समझा सकते हो।”
16 यूसुफ़ ने फिराउन को उत्तर दिया, ”मैं नहीं, ईश्वर ही फिराउन को सन्तोषजनक उत्तर देगा।”
17 फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ”मैंने अपने स्वप्न में देखा कि मैं नील नदी के किनारे खड़ा हूँ।
18 तब तक नील नदी से सात मोटी और सुन्दर गायें निकलीं और कछार की घास चरने लगीं।
19 उनके बाद सात दूसरी गायें निकलीं। वे कमज़ोर, बड़ी कुरूप और दुबली-पतली थीं। मैंने सारे मिस्र में पहले कभी ऐसी कुरूप गायें नहीं देखी थीं।
20 वे दुबली कुरूप गायें उन पहली मोटी गायों को खा गयीं।
21 उन्हें खा चुकने पर भी किसी को ऐसा नहीं मालूम पड़ सकता था कि वे उन्हें खा चुकी हैं; क्योंकि अब भी वे उतनी ही कुरूप दिखती थीं, जितनी पहले थीं। इसके बाद मैं जाग गया।
22 मैंने स्वप्न में एक डण्ठल में उगती हुई, भरी, अच्छी सात बालें भी देखीं
23 और इनके बाद पूर्वी हवा से झुलसी हुई, सूखी और पतली सात बालें निकलीं और
24 ये सात पतली बालें उन सात अच्छी बालों को निगल गयीं। मैंने जादूगरों से यह बताया, परन्तु उन में कोई ऐसा न निकला, जो मुझे इसका अर्थ समझा सके।”
25 इस पर यूसुफ़ ने फिराउन से कहा, ”फिराउन के दोनों स्वप्न एक ही हैं। ईश्वर ने फिराउन पर प्रकट कर दिया है कि वह क्या करने वाला है।
26 इन सातों अच्छी गायों का अर्थ है सात साल, और इन सातों अच्छी बालों का अर्थ भी है सात साल। इन स्वप्नों का अर्थ एक-सा होता है।
27 बाद में आने वाली दुबली और कुरूप गायों का भी अर्थ है, सात साल, और उन पतली और पूर्वी हवा से झुलसी हुई सातों बालों का भी अर्थ है, अकाल वाले सात साल।
28 मैंने फिराउन से वही कहा है : ईश्वर ने फिराउन पर प्रकट किया कि वह क्या करने वाला है।
29 देखिए, अब ऐसे सात साल आने वाला हैं, जब सारे मिस्र देश में सुकाल रहेगा।
30 परन्तु इनके बाद सात साल तक अकाल रहेगा। तब लोग मिस्र देश का सुकाल भूल जायेंगे।
31 अकाल सारे-के-सारे देश को खा जायेगा। बाद में आने वाले अकाल के कारण उस सुकाल का स्मरण ही नहीं रहेगा, क्योंकि वह बड़ा भारी अकाल होगा।
32 यह बात ईश्वर के द्वारा एकदम निश्चित कर ली गयी है और ईश्वर इसे जल्दी ही पूरा करेगा। यह समझाने के लिए फिराउन को दो बार स्वप्न दिखलायी दिये हैं।
33 “इसलिए फिराउन किसी समझदार और बुद्धिमान् व्यक्ति को चुनें और उसे मिस्र देश का प्रथान अधिकारी नियुक्त करें।
34 फिर फिराउन देश भर में ऐसे अधिकारियों को भी नियुक्त करें, जो सुकाल के सातों वर्ष मिस्र देश की उपज का पाँचवाँ भाग लिया करें।
35 इन आने वाले अच्छे वर्षों की पूरी उपज इकट्ठी की जाये और फिराउन के अधिकार में भोजन के लिए नगरों में सुरक्षित किये जाये।
36 तब मिस्र में आने वाले अकाल से सातों वर्ष के लिए काफ़ी अनाज हो जायेगा। इस से अकाल के समय देश सर्वनाश से बच जायेगा।”
37 यह परामर्श फिराउन और उसके सब पदाधिकारियों को अच्छा लगा।
38 फिराउन ने अपने दरबारियों से कहा, ”क्या हमें इस मनुष्य की तरह कोई ऐसा व्यक्ति मिल सकता है, जिस में ईश्वर का आत्मा विद्यमान है?”
39 इसके बाद फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ”जब ईश्वर ने तुम्हीं पर सब कुछ प्रकट किया है, तो तुम्हारी तरह समझदार और बुद्धिमान् कहीं नहीं मिल सकता है।
40 तुम्हीं मेरे महल के प्रबन्धक होगे। मेरी सारी प्रजा तुम्हारी आज्ञाओं का पालन करेगी। राजसिंहासन के कारण ही मैं तुम से बड़ा होऊँगा।”
41 आगे फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ”अब मैं तुम्हें सारे मिस्र देश का शासक नियुक्त करता हूँ”।
42 फिराउन ने अपने हाथ से मुद्रा की अँगूठी उतारी और उसे यूसुफ़ की उँगली में पहना दिया। फिर उसे सुन्दर मलमल के वस्त्र पहना दिये और उसके गले में सोने की माला डाल दी।
43 उसने उसे अपने द्वितीय रथ में बिठा कर उसके सामने यह घोषणा करायी, ”इन को प्रणाम करो”। इस प्रकार उसने उसे सारे मिस्र देश का प्रशासक नियुक्त कर दिया।
44 इसके बाद फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ”फिराउन तो मैं हूँ, लेकिन तुम्हारी आज्ञा के बिना मिस्र देश भर में कोई कुछ न कर सकेगा।
45 फिराउन ने यूसुफ़ का ‘साफ-नत-पनेअह’ नाम रखा और ओन के याजक पोटी-फेरअ की पुत्री आसनत के साथ उसका विवाह करा दिया। यूसुफ़ समस्त मिस्र देश का निरीक्षण करने निकला।
46 जब यूसुफ़ मिस्र के राजा फिराउन की सेवा में नियुक्त हुआ, उसकी अवस्था तीस वर्ष की थी। यूसुफ़ फिराउन से विदा ले कर समस्त मिस्र देश का दौरा करने निकला।
47 सुकाल के सात वर्ष में भूमि से बहुत अनाज पैदा हुआ।
48 उसने इन सात वर्षों में मिस्र देश की सारी उपज इकट्ठी कर नगरों में जमा की। उसने प्रत्येक नगर में उसके आसपास के खेतों की फ़सल इकट्ठी की।
49 इस प्रकार यूसुफ़ ने समुद्रतट के रेतकणों की तरह इतना अनाज इकट्ठा कर लिया कि उसने उसका लेखा रखना छोड़ दिया, क्योंकि उसकी माप असम्भव थी।
50 अकाल पड़ने से पहले यूसुफ़ के दो पुत्र हुए। वे ओन के याजक पोटी-फेरअ की पुत्री आसनत से उत्पन्न हुए।
51 यूसुफ़ ने अपने पहलौठे पुत्र का नाम मनस्से रखा। उसने कहा, ”यह इसलिए हुआ कि प्रभु की कृपादृष्टि के कारण मैंने अपना सारा कष्ट और अपने पिता का घर भुला दिया है”।
52 उसने दूसरे पुत्र का नाम एफ्रईम रखा; उसने कहा, ”यह इसलिए हुआ कि जिस देश में मुझे विपत्तियाँ झेलनी पड़ीं, ईश्वर ने उसी में मुझे सन्तति प्रदान की है।”
53 मिस्र देश में सात वर्ष का सुकाल आया और बीत गया।
54 इसके बाद, जैसा कि यूसुफ़ ने कहा था, अकाल के सात वर्ष प्रारम्भ हुए। सब देशों में अकाल पड़ा। केवल मिस्र देश में खाने को मिलता रहा।
55 समस्त मिस्र देश में अकाल पड़ने लगा और लोग फिराउन से रोटी माँगने आये। फिराउन ने सभी मिस्रियों से कहा, ”यूसुफ़ के पास जाओ और वह जो कहें, वही करो”।
56 हर प्रदेश में अकाल था और यूसुफ़ ने सभी गोदामों को खुलवा कर मिस्रियों को अनाज बेच दिया। मिस्र देश में अकाल बढ़ता जा रहा था।
57 सभी देशों के लोग यूसुफ़ से अनाज ख़रीदने आये, क्योंकि पृथ्वी पर घोर अकाल पड़ने लगा था।