सामान्य काल
वर्ष का चौबीसवाँ रविवार
आज के संत : मरियम के दुःखों की स्मृति
📙पहला पाठ: इसायाह 50: 5-9
5 प्रभु ने मेरे कान खोल दिये हैं; मैंने न तो उसका विरोध किया और न पीछे हटा।
6 मैंने मारने वालों के सामने अपनी पीठ कर दी और दाढ़ी नोचने वालों के सामने अपना गाल। मैंने अपमान करने और थूकने वालों से अपना मुख नहीं छिप़ाया।
7 प्रभु मेरी सहायता करता है; इसलिए मैं अपमान से विचलित नहीं हुआ। मैंने पत्थर की तरह अपना मुँह कड़ा कर लिया। मैं जानता हूँ कि अन्त में मुझे निराश नही होना पड़ेगा।
8 मेरा रक्षक निकट है, तो मेरा विरोधी कौन? हम एक दूसरे का सामना करें। मुझ पर अभियोग लगाने वाला कौन? वह आगे बढ़ने का साहस करे।
9 प्रभु-ईश्वर मेरी सहायता करता है, तो कौन मुझे दोषी ठहराने का साहस करेगा? मेरे सभी विरोधी वस्त्र की तरह जीर्ण हो जायेंगे, उन्हें कीड़े खा जायेंगे।
📘दूसरा पाठ: याकूब 2: 14-18
14 भाइयो! यदि कोई यह कहता है कि मैं विश्वास करता हूँ, किन्तु उसके अनुसार आचरण नहीं करता, तो इस से क्या लाभ? क्या विश्वास ही उसका उद्धार कर सकता है?
15 मान लीजिए कि किसी भाई या बहन के पास न पहनने के लिए कपड़े हों और न रोज-रोज खाने की चीजे़ं।
16 यदि आप लोगों में कोई उन से कहे, “खुशी से जाइए, गरम-गरम कपड़े पहनिए और भर पेट खाइए”, किन्तु वह उन्हें शरीर के लिए ज़रूरी चीजें नहीं दे, तो इस से क्या लाभ?
17 इसी तरह कर्मों के अभाव में विश्वास पूर्ण रूप से निर्जीव होता है।
18 और ऐसे मनुष्य से कोई कह सकता है, “तुम विश्वास करते हो, किन्तु मैं उसके अनुसार आचरण करता हूँ। मुझे अपना विश्वास दिखाओ, जिस पर तुम नहीं चलते और मैं अपने आचरण द्वारा तुम्हें अपने विश्वास का प्रमाण दूँगा।”
📕 सुसमाचार: संत मारकुस 8: 27-35
27 ईसा अपने शिष्यों के साथ कैसरिया फि़लिपी के गाँवों की ओर गये। रास्ते में उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा, “मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?”
28 उन्होंने उत्तर दिया, “योहन बपतिस्ता; कुछ लोग कहते हैं- एलियस, और कुछ लोग कहते हैं- नबियों में से कोई”।
29 इस पर ईसा ने पूछा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” पेत्रुस ने उत्तर दिया, “आप मसीह हैं”।
30 इस पर उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग मेरे विषय में किसी को भी नहीं बताना।
31 उस समय से ईसा अपने शिष्यों को स्पष्ट शब्दों में यह समझाने लगे कि मानव पुत्र को बहुत दुःख उठाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार डाला जाना और तीन दिन के बाद जी उठना होगा।
32 पेत्रुस ईसा को अलग ले जा कर फटकारने लगा,
33 किन्तु ईसा ने मुड़ कर अपने शिष्यों की ओर देखा, और पेत्रुस को डाँटते हुए कहा, “हट जाओ, शैतान! तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो”।
34 ईसा ने अपने शिष्यों के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी अपने पास बुला कर कहा, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले।
35 क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे तथा सुसमाचार के कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।