सामान्य काल
चौबीसवाँ सप्ताह
आज के संत : कुपरटीनो के संत जोसेफ, रहस्य-साधक
📙पहला पाठ: 1 कुरिन्थियों 12: 31-13: 13
31 आप लोग उच्चतर वरदानों की अभिलाषा किया करें। मैं अब आप लोगों को सर्वोत्तम मार्ग दिखाता चाहता हूँ।
1 मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूं; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं खनखनाता घडि़याल या झनझनाती झाँझ मात्र हूँ।
2 मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हैं, तो मैं कुछ भी नहीं हूँ।
3 मैं भले ही अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँ और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो इस से मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
4 प्रेम सहनशील और दयालु है। प्रेम न तो ईर्ष्या करता है, न डींग मारता, न घमण्ड, करता है।
5 प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुंझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है।
6 वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है।
7 वह सब-कुछ ढाँक देता है, सब-कुछ पर विश्वास करता है, सब-कुछ की आशा करता है और सब-कुछ सह लेता है।
8 भविष्यवाणियाँ जाती रहेंगी, भाषाएँ मौन हो जायेंगी और ज्ञान मिट जायेगा, किन्तु प्रेम का कभी अन्त नहीं होगा;
9 क्योंकि हमारा ज्ञान तथा हमारी भविष्यवाणियाँ अपूर्ण हैं
10 और जब पूर्णता आ जायेगी, तो जो अपूर्ण है, वह जाता रहेगा।
11 मैं जब बच्चा था, तो बच्चों की तरह बोलता, सोचता और समझता था; किन्तु सयाना हो जाने पर मैंने बचकानी बातें छोड़ दीं।
12 अभी तो हमें आईने में धुँधला-सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊँगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।
13 अभी तो विश्वास, भरोसा और प्रेम-ये तीनों बने हुए हैं। किन्तु उनमें प्रेम ही सब से महान् हैं।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 7: 31-35
31 मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किस से करूँ? वे किसके सदृश हैं?
32 वे बाज़ार में बैठे हुए छोकरों के सदृश हैं, जो एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं: हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी और तुम नहीं नाचे, हमने विलाप किया और तुम नहीं रोये;
33 क्योंकि योहन बपतिस्ता आया, जो न रोटी खाता और न अंगूरी पीता है और तुम कहते हो-उसे अपदूत लगा है।
34 मानव पुत्र आया, जो खाता-पीता है और तुम कहते हो-देखो, यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है, नाकेदारों और पापियों का मित्र है।
35 किन्तु ईश्वर की प्रज्ञा उसकी प्रजा द्वारा सही प्रमाणित हुई है।”