सामान्य काल
पच्चीसवाँ सप्ताह
आज के संत : रेइचेनाव के मठवासी संत हरमन


📙पहला पाठ: सूक्ति ग्रांथ 30: 5-9

5 ईश्वर की प्रत्येक प्रतिज्ञा विश्वसनीय है। ईश्वर अपने शरणार्थियों की ढाल है।

6 उसके वचनों में अपनी और से कुछ मत जोड़ो, कहीं ऐसा न हो कि वह तुम को डाँटे और झूठा प्रमाणित करे।

7 मैं तुझ से दो वरदान माँगता हूँ, उन्हें मेरे जीवनकाल में ही प्रदान कर।

8 मुझ से कपट और झूठ को दूर कर दे। मुझे न तो ग़रीबी दे और न अमीरी- मुझे आवश्यक भोजन मात्र प्रदान कर।

9 कहीं ऐसा न हो कि मैं धनी बन कर तुझे अस्वीकार करते हुए कहूँ “प्रभु कौन है?” अथवा दरिद्र बन कर चोरी करने लगूँ और अपने ईश्वर का नाम कलंकित कर दूँ।


📕 सुसमाचार: संत लूकस 9: 1-6

1 ईसा ने बारहों को बुला कर उन्हें सब अपदूतों पर सामर्थ्य तथा अधिकार दिया और रोगों को दूर करने की शक्ति प्रदान की।

2 तब ईसा ने उन्हें ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने और बीमारों को चंगा करने भेजा।

3 उन्होंने उन से कहा, “रास्ते के लिए कुछ भी न ले जाओ-न लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपया। अपने लिए दो कुरते भी न रखो।

4 जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो।

5 यदि लोग तुम्हारा स्वागत न करें, तो उनके नगर से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।”

6 वे चले गये और सुसमाचार सुनाते तथा लोगों को चंगा करते हुए गाँव-गाँव घूमते रहे।