सामान्य काल
वर्ष का छब्बीसवाँ रविवार
आज के संत : संत मिखाएल, रफ़ाएल और गाब्रिएल महादूत – पर्व


📙पहला पाठ: गणना 11: 25-29

25 तब प्रभु बादल में आ कर मूसा से बात करने लगा और उसने मूसा की शक्ति का कुछ अंश सत्तर वयोवृद्धों को प्रदान किया। इसके फलस्वरूप उन्हें एक दिव्य प्रेरणा का अनुभव हुआ और वे भविष्यवाणी करने लगे। बाद में उन्हें फिर ऐसा अनुभव नहीं हुआ।
26 दो पुरुष शिविर में रह गये थे। एक का नाम था एलदाद और दूसरे का, मेदाद। यद्यपि वे दर्शन-कक्ष में नहीं आये थे, तब भी उन्हें दिव्य प्रेरणा का अनुभव हुआ; क्योंकि वे चुने हुए वयोवृद्वों में से थे और वे शिविर में ही भविष्यवाणी करने लगे।
27 एक नवयुवक दौड़ कर मूसा से यह कहने आया – ”एलदाद और मेदाद शिविर में भविष्यवाणी कर रहे हैं”।
28 नून के पुत्र योशुआ ने, जो बचपन में मूसा की सेवा करता था, यह कह कर अनुरोध किया, ”मूसा! गुरुवर! उन्हें रोक दीजिए”।
29 इस पर मूसा ने उसे उत्तर दिया, ”क्या तुम मेरे कारण ईर्ष्या करते हो? अच्छा यही होता कि प्रभु सब को प्रेरणा प्रदान करता और प्रभु की सारी प्रजा भविष्यवाणी करती।”


📘दूसरा पाठ: याकूब 5: 1-6

1 धनियो! मेरी बात सुनो। आप लोगों को रोना और विलाप करना चाहिए, क्योंकि आप पर विपत्तियाँ पड़ने वाली हैं।

2 आपकी सम्पत्ति सड़ गयी है। आपके कपड़ों में कीड़े लग गये हैं।

3 आपकी सोना-चांदी पर मोरचा जम गया है। वह मोरचा आप को दोष देगा; वह आग की तरह आपका शरीर खा जायेगा। यह युग का अन्त है और आप लोगों ने धन का ढेर लगा लिया है।

4 मजदूरों ने आपके खेतों की फसल लुनी और आपने उन्हें मजदूरी नहीं दी। वह मजदूरी पुकार रही है और लुनने वालों की दुहाई विश्वमण्डल के प्रभु के कानों तक पहुँच गयी है।

5 आप लोगों ने पृथ्वी पर सुख और भोग-विलास का जीवन बिताया है और वध के दिन के लिए अपने को हष्ट-पुष्ट बना लिया है।

6 आपने धर्मी को दोषी ठहरा कर मार डाला है और उसने आपका कोई विरोध नहीं किया।


📕 सुसमाचार: संत मारकुस 9: 38-43, 45, 47-48

38 योहन ने उन से कहा, “गुरुवर! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता”।

39 परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, “उसे मत रोको; क्योंकि कोई ऐसा नहीं, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करें।

40 जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है।

41 “जो तुम्हें एक प्याला पानी इसलिए पिलायेगा कि तुम मसीह के शिष्य हो, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।

42 “जो इन विश्वास करने वाले नन्हों में किसी एक के लिए भी पाप का कारण बनता है, उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।

43 (43-44) और यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लुले हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों के रहते नरक की न बुझने वाली आग में न डाले जाओ।

45 (45-46) और यदि तुम्हारा पैर तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लँगड़े हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों पैरों के रहते नरक में न डाले जाओ।

47 और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल दो। अच्छा यही है कि तुम काने हो कर ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते नरक में न डाले जाओ,

48 जहाँ उन में पड़ा हुआ कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।