उत्पत्ति ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • पवित्र बाईबल
अध्याय 47
1 फिराउन के पास जा कर यूसुफ़ ने उस से कहा, ”मेरे पिता और मेरे भाई कनान से अपनी भेड़े, गायें और सारा समान ले कर गोशेन प्रान्त आ गये हैं।”
2 उसने अपने भाइयों में से पाँच को ले कर उन को फिराउन के सामने प्रस्तुत किया।
3 फिराउन ने उसके भाइयों से पूछा, ”तुम लोग क्या काम करते हों?” उन्होंने फिराउन को उत्तर दिया, ”हम, आपके दास, अपने पूर्वजों के समान पशु चराते हैं।”
4 फिर उन्होंने फिराउन से कहा, ”हम, इस देश में कुछ समय तक ही रहने आये हैं, क्योंकि आपके दासों के पशुओं के चरने के लिए वहाँ कोई चरागाह नहीं रह गया और कनान देश में ज़ोरों का अकाल पड़ रहा है। आप कृपा कर अपने इन दासों को गोशेन प्रान्त में बसने दें।”
5 फिराउन ने यूसुफ़ से कहा, ”तुम्हारे पिता और तुम्हारे भाई तुम्हारे पास आ गये हैं।
6 मिस्र देश तुम्हारे सामने है। देश के सर्वोत्तम भाग में अपने पिता और अपने भाइयों को बसा दो। वे गोशेन प्रान्त में बस जायें और तुम उन में से जिस को योग्य समझते हो, उन्हें मेरे पशुधन का अधिकारी नियुक्त कर दो।”
7 इसके बाद यूसुफ़ अपने पिता याकूब को अन्दर ले गया और फिराउन के सामने प्रस्तुत किया। याकूब ने फिराउन को आशीर्वाद दिया।
8 तब फिराउन ने याकूब से पूछा, ”आपकी उम्र क्या है?”
9.याकूब ने फिराउन को उत्तर दिया, ”मैं अपने जीवन के एक सौ तीस वर्ष पूरा कर चुका हूँ। मेरे जीवन के ये वर्ष बहुत अधिक नहीं हैं और कष्ट में बीतें हैं। ये मेरे पूर्वजों के जीवनकाल के बराबर नहीं हैं।”
10 याकूब ने फिराउन को फिर आशीर्वाद दिया और फिराउन से विदा ले कर चला आया।
11 इसके बाद यूसुफ़ ने फिराउन की आज्ञा के अनुसार अपने पिता और अपने भाइयों को मिस्र देश के सर्वोत्तम भाग, रामसेस प्रान्त में बसा दिया।
12 यूसुफ़ ने अपने पिता, अपने भाइयों तथा अपने पिता के सारे परिवार के लोगों के लिए, उनकी संख्या के अनुसार, भोजन आदि का प्रबन्ध कर दिया।
13 घोर अकाल के कारण उस समय सारे देश में अनाज की कमी थी और इसलिए मिस्र और कनान, दोनों अकाल के कारण त्रस्त थे।
14 लोगों द्वारा अनाज ख़रीदे जाने के कारण मिस्र और कनान देश का सारा रूपया-पैसा यूसुफ़ के पास इकट्ठा हो गया था। यूसुफ़ ने उसे फिराउन के कोश में जमा कर दिया।
15 जब मिस्र और कनान देश के रूपये समाप्त हो गये, तब सब मिस्री यूसुफ़ के पास आ कर कहने लगे, ”हमारे पास पैसा नहीं रहा, लेकिन हमें खाना दीजिए। क्या हमें आपके सामने मरना पड़ेगा?”
16 यूसुफ़ ने उत्तर दिया, ”यदि तुम्हारे पास पैसा नहीं रहा, तो मुझे अपना पशुधन दे दो। मैं पशुओं के बदले तुम लोगों को अनाज दूँगा।”
17 इसलिए वे यूसुफ़ के पास अपना पशुधन ले आये और यूसुफ़ ने उनके घोड़ों, भेड़-बकरियों, गायों और गधों के बदले उन्हें अनाज दिया। इस वर्ष उसने उनके सारे पशुधन के बदले अनाज दिया।
18 जब वह साल बीत गया, तो दूसरे साल वे फिर उसके पास आ कर कहने लगे, ”हम अपने स्वामी से यह बात नहीं छिपा सकते कि हमारा पैसा समाप्त हो गया हैं। हमारा पशुधन भी स्वामी को हो गया है। अब अपनी भूमि और शरीरों के सिवा हमारे पास और कुछ नहीं है।
19 क्या हम आपके सामने मर जायें और हमारी भूमि नष्ट हो जाये? आप अनाज के बदले हमें और हमारी भूमि ख़रीद लें। हम अपनी भूमि-सहित फिराउन के दास बन जायेंगे। हमें अन्न दीजिए, जिससे हम जीवित रह जायें, मरें नहीं और हमारी भूमि उजाड़ न हो जाये।”
20 यूसुफ़ ने फिराउन के लिए मिस्र की सारी भूमि ख़रीद ली, क्योंकि घोर अकाल पड़ने के कारण सब मिस्रवासियों ने अपने खेत बेच दिये। इस प्रकार सारी भूमि फिराउन की हो गयी।
21 उसने मिस्र के एक छोर से दूसरे छोर तक के सभी लोगों को दास बना लिया।
22 उसने केवल याजकों की भूमि नहीं ख़रीदी, क्योंकि याजकों को फिराउन से एक निश्चित राशि मिलती थी और वे फिराउन द्वारा निश्चित राशि से अपनी जीविका चलाते थे। इसलिए उन्हें अपनी भूमि नहीं बेचनी पड़ी।
23 यूसुफ़ ने लोगों से कहा, ”देखो, आज मैंने फिराउन के लिए तुम्हें अपनी भूमि-सहित ख़रीद लिया है। तुम्हें बीज दिया जायेगा और तुम उसे भूमि में बोओगे।
24 तुम्हें कटनी के समय फिराउन को पाँचवाँ भाग देना पड़ेगा। शेष चार भाग, तुम्हारे खेतों के बीज के लिए, तुम्हारे और तुम्हारे घर वालों तथा बाल-बच्चों को खिलाने-पिलाने के लिए तुम्हारे होंगे।”
25 इस पर उन्होंने कहा, ”आपने हमारे प्राण बचा लिये हैं। आपकी कृपा बनी रहे; हम फिराउन के दास बने रहेंगे।”
26 इसलिए मिस्र की भूमि के सम्बन्ध में यूसुफ़ ने एक नियम बनाया, जो आज तक प्रचलित है : उपज का पंचमांश फिराउन का है। केवल याजकों की भूमि फिराउन की नहीं हुई।
27 इस्राएली लोग मिस्र देश के गोशेन प्रान्त में बस गये। उन्होंने वहाँ ज़मीन-जायदाद प्राप्त कर ली; वे फलते-फूलते रहे और उनकी संख्या बहुत अधिक हो गयी।
28 याकूब मिस्र देश में सत्रह वर्ष और जीवित रहा। इस प्रकार याकूब कुल मिला कर एक सौ सैंतालीस वर्ष जीता रहा।
29 जब इस्राएल के मरने का समय निकट आया, तो उसने अपने पुत्र यूसुफ़ को बुलवा कर उस से कहा, ”यदि तुम्हारे हृदय में मेरे लिए स्थान है, तो मेरी जाँघ के नीचे अपना हाथ रख कर शपथ खाओ कि तुम मेरे प्रति ईमानदार और सच्चे बने रहोगे। तुम मुझे मिस्र में नहीं दफ़नाना।
30 जब मैं अपने पूर्वजों की तरह मर जाऊँ, तो मुझे मिस्र से ले जा कर उन्हीं के समाधि-स्थान में दफ़नाना।” उसने उत्तर दिया, ”आपने जैसा कहा है, वैसा ही करूँगा।”
31 उसने कहा, ”इसकी शपथ खाओ।” इस पर उसने शपथ खायी। फिर इस्राएल अपने पलंग के सिरहाने पर लेट गया।