आगमन काल
पहला सप्ताह
आज के संत: दमासीन के संत जॉन पुरोहित, धर्माचार्य

📙 पहला पाठ: इसायाह 25: 6-10

6 विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7 वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,

8 श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।

9 उस दिन लोग कहेंगे – “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“

10 इस पर्वत पर प्रभु का हाथ बना रहेगा, किन्तु जिस तरह तिनके खाद के ढेर में रौंदे जाते हैं, उसी तरह मोआब प्रभु द्वारा रौंदा जायेगा।


📕 सुसमाचार: संत मत्ती 15: 29-37

29 ईसा वहाँ से चले गये और गलीलिया के समुद्र के तट पर पहुँच कर एक पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ बैठ गये।

30 भीड़-की-भीड़ उनके पास आने लगी। वे लँगड़े, लूले, अन्धे, गूँगे और बहुत-से दूसरे रोगियों को भी अपने साथ ला कर ईसा के चरणों में रख देते और ईसा उन्हें चंगा करते थे।

31 गूंगे बोलते हैं, लूले भले-चंगे हो रहे हैं, लँगड़े चलते और अन्धे देखते हैं- लोग यह देख कर बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने इस्राएल के ईश्वर की स्तुति की।

32 ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता। कहीं ऐसा न हो कि ये रास्ते में मूर्च्छित हो जायें”।

33 शिष्यों ने उन से कहा, “इस निर्जन स्थान में हमें इतनी रोटियाँ कहाँ से मिलेंगी कि इतनी बड़ी भीड़ को खिला सकें?”

34 ईसा ने उन से पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? उन्होंने कहा, “सात, और थोड़ी-सी छोटी मछलियाँ।”

35 ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया

36 और वे सात रोटियाँ और मछलियाँ ले कर उन्होंने धन्यवाद की प्राथना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये और शिष्य लोगों को।

37 सब ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकडों से सात टोकरे भर गये।