आगमन काल
चौथा सप्ताह
आज के संत: संत आडेल मठाधीशा

📙 पहला पाठ: 2 समूएल 7: 1-5, 8-12, 14,16

1 जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,

2 तो राजा ने नबीनातान से कहा, “देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।”

3 नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, “आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।”

4 उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5 “मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो – प्रभु यह कहता है: क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?

8 इसलिए मेरे सेवक दाऊद से यह कहो – विश्वमण्डल का प्रभु कहता है: तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।

12 जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।

14 मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा। यदि वह बुराई करेगा, तो मैं उसे दूसरे लोगों की तरह बेंत और कोड़ों से दण्डित करूँगा।

16 इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।”


📕 सुसमाचार: संत लूकस 1: 67-79

67 उसका पिता पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया और उसने यह कहते हुए भविष्यवाणी की:

68 धन्य है प्रभु, इस्रिएल का ईश्वर! उसने अपनी प्रजा की सुध ली है और उसका उद्धार किया है।

69 उसने अपने दास दाऊद के वंश में हमारे लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता उत्पन्न किया है। 

70 वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन काल से यह कहता आया है

71 कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से हमें छुड़ायेगा 

72 और अपने पवित्र विधान को स्मरण कर हमारे पूर्वजों पर दया करेगा।

73 उसने शपथ खा कर हमारे पिता इब्राहीम से कहा था 

74 कि वह हम को शत्रुओं के हाथ से मुक्त करेगा, 

75 जिससे हम निर्भयता, पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर उसके सम्मुख उसकी सेवा कर सकें। 

76 बालक! तू सर्वोच्च ईश्वर का नबी कहलायेगा, क्योंकि प्रभु का मार्ग तैयार करने 

77 और उसकी प्रजा को उस मुक्ति का ज्ञान कराने के लिए, जो पापों की क्षमा द्वारा उसे मिलने वाली है, तू प्रभु का अग्रदूत बनेगा। 

78 हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया से हमें स्वर्ग से प्रकाश प्राप्त हुआ है,  

79 जिससे वह अन्धकार और मृत्यु की छाया में बैठने वालों को ज्योति प्रदान करे और हमारे चरणों को शान्ति-पथ पर अग्रसर करे।”