ख्रीस्त जयन्ती-अठवारा
पवित्र परिवार का पर्व
पवित्र परिवार
📙 पहला पाठ: 1 समूएल 1: 20-22, 24-28
20 अन्ना गर्भवती हो गयी। उसने पुत्र प्रसव किया और यह कह कर उसका नाम समूएल रखा, “क्योंकि मैंने उस को प्रभु से माँगा है।”
21 उसका पति एल्काना अपने सारे परिवार के साथ प्रभु को वार्षिक बलि चढ़ाने और अपनी मन्नत पूर्ण करने के लिए फिर गया।
22 इस बार अन्ना साथ नहीं गयी। उसने अपने पति से कहा, “जैसे ही मैं इस बालक का दूध छुड़ाऊँगी, मैं इसे वहाँ ले जाऊँगी, जिससे वह प्रभु के सामने उपस्थित हो और सदा के लिए वहीं रह जाये।”
24 जब अन्ना समूएल का दूध छुड़ा चुकी, तो उसने उसे अपने साथ कर लिया। वह तीन वर्ष का बछड़ा, आधा मन आटा और एक मषक अंगूरी ले गयी और समूएल को शिलो में प्रभु के मन्दिर के भीतर लायी। उस समय बालक छोटा था।
25 बछड़े की बलि चढ़ाने के बाद, वे बालक को एली के पास ले गये।
26 अन्ना ने कहा, “महोदय! क्षमा करें। महोदय! आपकी शपथ! मैं वही स्त्री हूँ, जो यहीं प्रभु से प्रार्थना करती हुई आपके सामने खड़ी थी।
27 मैंने इस बालक के लिए प्रार्थना की और प्रभु ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
28 इसलिए मैं इसे प्रभु को अर्पित करती हूँ। यह आजीवन प्रभु को अर्पित है।” और उन्होंने वहाँ प्रभु की आराधना की।
📘 दूसरा पाठ: 1 योहन 3: 1-2, 21-24
1 पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है।
2 प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है।
21 प्यारे भाइयो! यदि हमारा अन्तः करण हम पर दोष नहीं लगाता है, तो हम ईश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते हैं।
22 हम उस से जो कुछ माँगेंगे, वह हमें वहीं प्रदान करेगा; क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को पालन करते हैं और वही करते हैं, जो उसे अच्छा लगता है।
23 और उसकी आाज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र ईसा मसीह के नाम में विश्वास करें और एक दूसरे को प्यार करें, जैसा कि मसीह ने हमें आदेश दिया।
24 जो ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में और हम जानते हैं कि वह हम में निवास करता है; क्योंकि उसने हम को आपना आत्मा प्रदान किया है।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 2: 41-52
41 ईसा के माता-पिता प्रति वर्ष पास्का पर्व के लिए येरूसालेम जाया करते थे।
42 जब बालक बारह बरस का था, तो वे प्रथा के अनुसार पर्व के लिए येरूसालेम गये।
43 पर्व समाप्त हुआ और वे लौट पडे़; परन्तु बालक ईसा अपने माता-पिता के अनजाने में येरूसालेम में रह गया।
44 वे यह समझ रहे थे कि वह यात्रीदल के साथ है; इसलिए वे एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद ही उसे अपने कुटुम्बियों और परिचितों के बीच ढूँढ़ते रहे।
45 उन्होंने उसे नहीं पाया और वे उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते येरूसालेम लौटे।
46 तीन दिनों के बाद उन्होंने ईसा को मन्दिर में शास्त्रियों के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उन से प्रश्न करते पाया।
47 सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उसके उत्तरों पर चकित रह जाते थे।
48 उसके माता-पिता उसे देख कर अचम्भे में पड़ गये और उसकी माता ने उस से कहा “बेटा! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देखो तो, तुम्हारे पिता और मैं दुःखी हो कर तुम को ढूँढते रहे।“
49 उसने अपने माता-पिता से कहा, “मुझे ढूँढ़ने की ज़रूरत क्या थी? क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर होऊँगा?“
50 परन्तु ईसा का यह कथन उनकी समझ में नहीं आया।
51 ईसा उनके साथ नाज़रेत गये और उनके अधीन रहे। उनकी माता ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा।
52 ईसा की बुद्धि और शरीर का विकास होता गया। वह ईश्वर तथा मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ते गये।